६ जून २०१८
संत कहते हैं, हमारे मन का आकाश यदि विचार रूपी बादलों से ढका न हो तो अपने निर्मल
स्वभाव को सहज ही प्राप्त हो सकता है. जब भीतर कोई भय न हो, तनाव या संशय न हो और
न ही कोई इच्छा हो, कुछ त्यागने या ग्रहण करने की प्रवृति भी न हो, तभी मानना होगा
कि मन खाली है. इस खालीपन को चैतन्य से भरने की आकांक्षा भी न हो, तब जो अनुभूति
होगी उसे अनुभव करने वाला भी वहाँ कोई नहीं होगा, मात्र अनुभव ही जब शेष रह जाता
है तब जीवन का मर्म समझ में आता है.
माया से दूर कहाँ रह पाता है इंसान ...
ReplyDeleteकोई न कोई बादल छाए रहते हैं ...
स्वागत व आभार दिगम्बर जी ! यदि सचमुच दिल में इच्छा हो तो मायापति की शरण में जाकर ही उससे पार जाया जा सकता है..
ReplyDelete