Monday, October 29, 2018

जगमग दीप जले घर-बाहर


३० अक्तूबर २०१८ 
दीपावली का उत्सव दस्तक दे रहा है. राम के अयोध्या लौटने की ख़ुशी में लाखों वर्ष पूर्व जो दीपक जलाये गये थे, मानो आज भी वे अपने प्रकाश को बाँट रहे हैं. प्रकाश ज्ञान का प्रतीक है, ख़ुशी और जागरण का भी. राम का अर्थ है रोम-रोम में रमन करने वाला चैतन्य, जब उसका आगमन भीतर होता है, ज्ञान का प्रकाश छा ही जाता है. अयोध्या का अर्थ है जहाँ कोई युद्ध न लड़ा जाता हो. जिस मन में कोई द्वंद्व न बचा हो, जो मन समाहित हो गया हो, जहाँ अपना ही विरोधी स्वर न गूँजता हो, ऐसा मन ही अयोध्या है, जहाँ राम का आगमन होता है. दशरथ का अर्थ है दस इन्द्रियों वाला अर्थात देह, जब देहाध्यास छूट गया हो, तभी चैतन्य का अनुभव होता है. दीपावली का उत्सव यानि मिष्ठानों और पटाखों का उत्सव. चेतना जब शुद्ध होती है तब उससे मधुरता का सृजन होता है, आनंद का विस्फोट होता है, वही जो बाहर अनार व फुलझड़ी जलाने पर होता है. भारतीय संस्कृति में हर उत्सव के पीछे एक संदेश छुपा है. हमारे शास्त्रों का मुख्य स्वर है आत्मअनुभव, इसीलिए हर उत्सव अपने भीतर जाने की प्रेरणा देता प्रतीत होता है.


प्रकृति का सम्मान करे जो


२९ अक्तूबर २०१८ 
जीवन नित नये रूपों में ढल रहा है. हर साँझ एक नये अंदाज में संवरती है और हर रात्रि एक नयापन लेकर विश्राम के लिए निमन्त्रण देती है. किसी भी क्षण यदि कोई रुककर प्रकृति के इस विशाल आयोजन को देखे तो उसका मन विस्मय से भर जाता है. विशालकाय पर्वत, गरजते हुए जलप्रपात और हरी-भरी घाटियाँ जाने किस आगन्तुक की प्रतीक्षा में युगों से स्थित हैं. सम्भवतः जीवन की जिस ऊर्जा से वे स्पन्दित हैं, वही भीतर-भीतर उसका रसास्वादन कर रही है. एक नन्हे से जीव में जो ऊर्जा गति देती है, वही उसे जीवन के प्रति गहन प्रेम से भी भर देती है, उसे भी अपना जीवन प्रिय है. हमारे भीतर जो भी शुभ है, वह उसी प्रकृति से आया है, अशुभ विकृति है. प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन ही मानवीय मूल्यों पर आधारित जीवन हो सकता है. मानव जल, हवा व धरती को यदि शुद्ध नहीं रख पाया है तो इसका अर्थ है उसने अपने मूल्यों के विपरीत जीवनशैली को अपना लिया है.

Friday, October 26, 2018

सब कुछ भीतर बाहर नाहीं


 २६ अक्तूबर २०१८ 
हमें जो भी चाहिए पहले से ही मिला हुआ है, इसीलिए हमारी नजर उस तरफ नहीं जाती. जो प्रचुरता में उपलब्ध हो उसकी कीमत घट जाती है, जो दुर्लभ हो वह बेशकीमती बन जाता है. शिशु को जन्म के साथ सहज ही आनंदित रहने की सौगात मिलती है, किन्तु माँ-पिता जब उसे खिलौना लाकर देते हैं, उसे खुश होने का अभिनय करना सिखाते हैं. कुछ बड़ा होने पर छोटे से कृत्य पर ही उसे पुरस्कार देते हैं, लोभी बनाते हैं. व्यर्थ के गीतों पर उसे नृत्य करना सिखाते हैं, उसका सहज नृत्य खो जाता है. प्रतिस्पर्धा की दौड़ में उसे भागना सिखाते हैं. जीवन को बनावटी बनाने के सारे उपाय किये जाते हैं. किशोर होते-होते बालक की सारी स्वाभाविकता खो जाती है. कठिनाई यह है कि उनके माता-पिता ने भी कुछ ऐसा ही उनके साथ किया था. शास्त्र व गुरू हमें स्वभाव की ओर वापस ले जाते हैं. सहजता व सजगता से जीना सिखाते हैं. जीवन की परिपूर्णता का अनुभव करवाते हैं. जिस प्रेम की खोज में लोग जीवन भर भटकते हैं और निराशा ही हाथ लगती है, वे उस प्रेम को हमारे ही अंतर्मन की गहराई से पुष्प की सुगंध की तरह जग में बिखराने की कला सिखाते हैं.


Thursday, October 25, 2018

जीवन जब उत्सव बन जाए


२५ अक्तूबर २०१८ 
जीवन हर पल हमें बुलाता है, यहाँ अवसरों की कमी नहीं है. छोटे से छोटे सा पल भी अपने भीतर एक अनंत को धारण किये है, जैसे छोटा सा परमाणु असीम ऊर्जा को अपने भीतर छिपाए है. संत कहते हैं, वास्तव में जीवन एक दर्पण है जिसमें हम वही देख लेते हैं जो देखना चाहते हैं. हमारा अंतर्मन ही हमारे व्यवहार में झलकता है और हमारी प्रतिक्रियाओं में भी, यदि भीतर भय है तो अँधेरे में हर वस्तु हमें भयभीत करने वाली नजर आयेगी. यदि भीतर क्रोध है तो छोटी-छोटी बातों पर झुंझलाहट के रूप में वह व्यक्त होगा. यदि भीतर अहंकार है तो हर कोई अपना प्रतिद्वन्दी दिखाई देगा. जीवन का हर अनुभव हमें स्वयं को परखने का जानने का एक अवसर देने के लिए है. जिस दिन भीतर कुछ नहीं रहेगा, जगत जैसा है वैसा अपने शुद्ध रूप में पहली बार दिखाई देगा. क्या सारे उत्सव इसी अंतर परिवर्तन की ओर इशारा करते प्रतीत नहीं होते हैं ? हर उत्सव में पूजा को जोड़ दिया गया है, इसका अर्थ है कि परमात्मा की आराधना करके भीतर की शक्ति को जगाना है ताकि प्रमाद, क्रोध, अहंकार अदि दानवों का नाश हो और हम अपने शुद्ध स्वरूप का अनुभव कर सकें.


Tuesday, October 16, 2018

जाके हृदय सांच है


१६ अक्तूबर २०१८ 
पंचभूतों से यह सारी सृष्टि बनी है और हमारा शरीर भी इन्हीं से बना है. पृथ्वी तत्व ठोस है, जल द्रवीय, वायु गैसीय और अग्नि इनमें से कोई भी नहीं, आकाश इन सबसे परे है जो सदा शुद्ध है.  अग्नि तत्व भी कभी अशुद्ध नहीं होता, इसकी मंदता या अधिकता हो सकती है. देह में सत्तर प्रतिशत से अधिक है जल तत्व, यदि यह अशुद्ध हो जाये तो शरीर स्वस्थ कैसे रह सकता है. आज वायु भी प्रदूषित हो चुकी है, पृथ्वी में अति रासायनिक तत्व मिला दिए गये हैं. शास्त्र कहते हैं, यदि चेतना शुद्ध हो तो उसका प्रभाव इन भौतिक तत्वों को परिवर्तित कर सकता है. चेतना को शुद्ध करना योग साधना द्वारा ही सम्भव है. पांच यमों - सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय तथा पांच नियमों - शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय और ईश्वर प्रणिधान में से किसी एक के भी पालन से मन स्वस्थ रहता है तथा आसन, प्राणायाम व प्रत्याहार से देह को स्वस्थ रखा जा सकता है. तत्पश्चात धारणा, ध्यान व समाधि के द्वारा जीवन की पूर्णता को अनुभव किया जा सकता है.

Monday, October 15, 2018

भाव जगे जब निज स्वरूप का


१५ अक्तूबर २०१८ 
संत कहते हैं, “न अभाव में रहो, न प्रभाव में रहो, मात्र निज स्वभाव में रहो” यह छोटा सा सूत्र जीवन में परिवर्तन लाने के लिए अति सहायक सिद्ध हो सकता है. शांति, प्रेम, आनंद, पवित्रता, उत्साह, उदारता, सृजनात्मकता, कृतज्ञता, सजगता आदि हमारे सहज स्वाभाविक गुण हैं, जब हम इनमें या इनमें से किसी के भी साथ होते हैं, हमें न कोई अभाव प्रतीत होता है, न ही किसी वस्तु, व्यक्ति अथवा परिस्थिति का प्रभाव हम पर पड़ता है. अभाव का अनुभव करते ही हम तत्क्षण स्वभाव से दूर चले जाते हैं. इसी प्रकार किसी के गुणों, वैभव आदि से प्रभावित होते ही भीतर हलचल होने लगती है, शांति खो जाती है. शास्त्र हमें समझाते हैं, हमारा निज स्वभाव अनंत शांति से भरा है, वह परमात्मा से अभिन्न है. हर जीव उसी परमशक्ति का अंश है, उसे भला किस वस्तु का अभाव हो सकता है. देह एक साधन है, जिसे बनाये रखने के लिए पर्याप्त संपदा हमें प्राप्त है. जिन्हें भोजन, वस्त्र और निवास प्राप्त हैं, उन्हें यदि कोई अभाव सताता है तो यह अज्ञान से ही उत्पन्न हुआ है.


Saturday, October 13, 2018

जागो जागो माँ


१३ अक्तूबर २०१८ 
जैसे अग्नि में दाहिका शक्ति अभिन्न रूप से स्थित है, वैसे ही परमात्मा और उसकी प्रकृति रूपा शक्ति भी अभिन्न है. नवरात्रि में हम शक्ति की आराधना करते हैं, जो चैतन्य स्वरूप परमात्मा की चिति शक्ति ही है. इसलिए योगीजन परमात्मा और प्रकृति में भेद नहीं करते बल्कि सब ब्रह्म है ऐसा ही देखते हैं. धी, श्री, कांति, क्षमा, शांति, श्रद्धा, मेधा धृति और स्मृति ये सभी शक्ति के ही नाम हैं. सत्व स्वरूप महालक्ष्मी धन-धान्य की अधिष्ठात्री हैं. भगवती सरस्वती वाणी, बुद्धि, ज्ञान एवं विद्या की प्रदाता हैं. वे मानवों को कवित्व शक्ति, मेधा, प्रतिभा और स्मृति प्रदान करती हैं. देवी दुर्गा शिवप्रिया हैं जो बल व शक्ति प्रदान करती हैं. वे महामाया हैं, जगत की सृष्टि करना उनका स्वभाव है. नवरात्रि का पावन पर्व इन शक्तियों के जागरण से परमात्मा की अनुभूति कराने वाला है.

Thursday, October 11, 2018

शक्ति जगाएं तन-मन में हम


११ अक्तूबर २०१८ 
शारदीय नवरात्रि का उत्सव अपने आप में एक अनोखा संदेश लिए हर वर्ष हमें जगाने आता है. दिन की गहमागहमी में जो मन थक जाता है, वह रात्रि की गोद में विश्राम पाता है. इस प्रकार हर रात्रि हमें पुनर्शक्ति से भर देती है. इन नौ रात्रियों में ब्रह्मांड की ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है, इसीलिए साधना के लिए इन्हें उत्तम माना गया है. शिव की शक्ति अनंत है, उसमें से जिसकी जितनी सामर्थ्य हो वह उतनी पा सकता है. इस शक्ति का उपयोग अपने ज्ञान के अनुसार शुभ अथवा अशुभ कर्मों में कर सकता है. हमारे भीतर क्रिया, ज्ञान और इच्छा शक्ति विधान के द्वारा प्रदान की गयी है, जो लक्ष्मी, सरस्वती व दुर्गा के प्रतीक द्वारा पूजी जाती है. शक्ति को जगाने का अर्थ है, इसका समुचित उपयोग करना. देवी के विभिन्न रूपों की आराधना करके हम विवेक से उत्पन्न शुभ कामनाओं के द्वारा अपने कर्मों को शुद्ध कर सकते हैं, जिनसे वे बंधनकारी नहीं होंगे और अंततः हम पूर्ण स्वाधीनता का अनुभव कर सकेंगे.    

Sunday, October 7, 2018

छाया से जो डरे नहीं


८ अक्तूबर २०१८ 
जो अहंकार मानव के दुःख का कारण है, आपसी द्वेष को जन्म देता है, एक छाया मात्र ही है. वास्तव में हम प्रकाश स्वरूप दिव्य आत्मा हैं. यह प्रकाश जब प्रकृति रूपी मन, बुद्धि आदि पर पड़ता है, तो अवरोध के कारण जो छाया बनती है, वही अहंकार है. जब मन  खाली होता है, जल की तरह बहता रहता है, मान्यताओं और पूर्वाग्रहों से युक्त होकर कठोर नहीं होता, तब गहरी छाया भी नहीं बनती. इसीलिए बुद्धि को निर्मल बनाने पर संत और शास्त्र इतना जोर देते रहे हैं. अहंकार का भोजन दुःख है, वह राग-द्वेष से पोषित होता है, आत्मा आनंद से बनी है, वह आनन्द ही चाहती है, लेकिन अहंकार इसमें बाधक बनता है, यही द्वंद्व मानव को सुखी होने से रोकता है. यह सुनकर साधक अहंकार को मिटाने का प्रयत्न करने लगते हैं, किन्तु छाया से भयभीत होना ही सबसे बड़ा अज्ञान है, क्योंकि छाया का अपना कोई अस्तित्त्व नहीं है. छाया को मिटाया भी नहीं जा सकता, हाँ, प्रकाश के बिलकुल नीचे खड़े होकर छाया को बनने से रोका जा सकता है.

Friday, October 5, 2018

अनुपम है यह जीवन का क्रम


६ अक्तूबर २०१८ 
मौसम में बदलाव के लक्षण स्पष्ट नजर आ रहे हैं. धूप अब उतनी नहीं चुभती, शामें शीतल हो गयी हैं और सुबह हल्का सा कोहरा लिए आती है. प्रकृति अपनी चाल से चलती रहती है, वर्ष दर वर्ष..और जीवन भी बहता रहता है. मन रूपी चन्द्रमा भी तन रूपी धरती के चक्कर लगाता रहता है, आत्मा रूपी सूर्य से प्रकाशित मन रूपी चन्द्रमा यदि इस बात को याद रखे कि उसका ज्ञान उपहार का है, सूर्य से मिला है, उसका अपना नहीं है, तो वह कृतघ्न नहीं होगा. तब पूर्णिमा के दिन जब पूर्ण चन्द्रमा प्रकाशित होता है, और अमावस्या के दिन जब वह अप्रकाशित रह जाता है, दोनों ही स्थितियों में वह विचलित नहीं होगा. जब तन और आत्मा के बिलकुल मध्य में मन आ जाता है, सूर्य ग्रहण भी तभी लगता है, अर्थात जब हम मन में ही जीने लगते हैं, आत्मा का विकास रुक जाता है. इसी प्रकार जब मन और आत्मा के मध्य तन आ जाता है, तब चन्द्र ग्रहण लगता है, अर्थात जब हम देह में जीते हैं, तब मन विकसित नहीं हो पाता. कितने सुंदर हैं ये प्रतीक और कितना गहन अर्थ इनमें छुपा है.

Wednesday, October 3, 2018

माता भूमि: पुत्रोहं पृथिव्या:


४ अक्तूबर २०१८ 

भारत के प्रधानमन्त्री माननीय मोदी जी को चैम्पियन ऑफ़ द अर्थ पुरस्कार मिला है, हर भारतीय का मस्तक गर्व से ऊंचा हुआ है. ‘यथा राजा तथा प्रजा’ के सूत्र के अनुसार हम सभी इस धरती का रक्षक बनने की क्षमता रखते हैं. हम यदि अपने समय और ऊर्जा का अल्प भाग भी अपने वातावरण के प्रति सजग होकर लगायें तो देखते ही देखते भारत भी विकसित देशों की तरह अपनी स्वच्छता पर गर्व कर सकता है. अवश्य ही बाधाएँ आएँगी किन्तु उन्हें दूर करने की हिम्मत भी साथ ही आएगी. समस्या-समाधान भी रात-दिन की तरह जोड़े में ही रहते हैं. इससे आने वाली पीढ़ी भी बचपन से ही इस भाव से संस्कारित होगी. यदि हम छोटा सा ही सही एक बगीचा लगायें, या गमलों में ही कुछ पौधे उगायें. हफ्ते में एक बार अपनी गली और मोहल्ले की सफाई में भाग लें. आस-पड़ोस के बच्चों को इकठ्ठा करके उन्हें स्वच्छ रहने के लाभ बताएं और इस विषय पर चित्र आदि बनवाएं, कितने ही उपाय हैं जिनके द्वारा हम लघु अंश में ही सही धरती माँ का ऋण उतार सकते हैं.  

सत्यं शिवं सुन्दरम्


३ अक्तूबर २०१८ 
ईश्वर सत्य है, शिव है और सुंदर है, हम सबने यह सुना है. सत्य का जो अर्थ शास्त्र बताते हैं, वह है - जो सदा है और एक सा है, वही सत्य है. जो पुष्प आज सुंदर है, कल मुरझा जायेगा, उसका सौन्दर्य क्षणिक है, अतः वह सत्य नहीं है. जो अस्तित्त्व उसे सत्ता दे रहा है, उसमें सौन्दर्य भर रहा है, वह कल भी रहेगा, किसी और फूल को खिलायेगा, वही सत्य है. शिव का अर्थ है, निराकार कल्याणमयी सत्ता. जो होकर भी नहीं जैसा है, उसकी सुन्दरता कभी घट नहीं सकती. उसकी सुन्दरता को महसूस करना हो तो ध्यान में उतरना पड़ेगा. बुद्ध या महावीर के चेहरे पर जो शांत सौन्दर्य दिखाई पड़ता है, वह उसी एकरस निराकार सत्ता का है. योग का अंतिम लक्ष्य उसी शांति को स्वयं के भीतर अनुभव करना है.    

Monday, October 1, 2018

बापू का पैगाम सुनें

१ अक्तूबर २०१८  
कल दो अक्तूबर है, महात्मा गाँधी की एक सौ उनचासवीं जयंती ! आज समय-समय पर पढ़े उनके संदेश याद आ रहे हैं. उनकी बातें एक सूत्र के रूप में कितना गहरा अर्थ छुपाये होती थीं. उनके चेहरे पर पोपले मुख की मुस्कान इसकी साक्षी है जब वह कहते थे, हंसी मन की गांठे बड़ी आसानी से खोल देती है  जहाँ प्रेम है वहाँ जीवन है । उनका जीवन सत्य पर किया गया एक प्रयोग है, जिससे उन्होंने जाना कि क्रोध एक प्रकार का क्षणिक पागलपन है । उन्हें किताबों से बहुत प्रेम था. उनके अनुसार, पुस्तकें मन के लिए साबुन का काम करती है, क्योंकि वे मानते थे कि ज्ञान का अंतिम लक्ष्य चरित्र निर्माण है । देह से दुबले पतले होते हुए भी बापू भीतर से निडर थे, उन्हें ब्रिटिश सरकार की हुकूमत झुका नहीं पायी, वह कहते थे, डर शरीर का रोग नहीं है यह आत्मा को मारता है । कुछ लोग कहते हैं, बापू को सौन्दर्य बोध नहीं था, पर उनके अनुसार वास्तविक सौंदर्य हृदय की पवित्रता में है । वह पेशे से वकील होते हुए भी कहते हैं, दिमाग को हमेशा दिल की सुननी चाहिए ।