६ अक्तूबर २०१८
मौसम में बदलाव के लक्षण स्पष्ट नजर आ रहे हैं. धूप अब उतनी
नहीं चुभती, शामें शीतल हो गयी हैं और सुबह हल्का सा कोहरा लिए आती है. प्रकृति
अपनी चाल से चलती रहती है, वर्ष दर वर्ष..और जीवन भी बहता रहता है. मन रूपी चन्द्रमा
भी तन रूपी धरती के चक्कर लगाता रहता है, आत्मा रूपी सूर्य से प्रकाशित मन रूपी
चन्द्रमा यदि इस बात को याद रखे कि उसका ज्ञान उपहार का है, सूर्य से मिला है, उसका
अपना नहीं है, तो वह कृतघ्न नहीं होगा. तब पूर्णिमा के दिन जब पूर्ण चन्द्रमा
प्रकाशित होता है, और अमावस्या के दिन जब वह अप्रकाशित रह जाता है, दोनों ही
स्थितियों में वह विचलित नहीं होगा. जब तन और आत्मा के बिलकुल मध्य में मन आ जाता
है, सूर्य ग्रहण भी तभी लगता है, अर्थात जब हम मन में ही जीने लगते हैं, आत्मा का
विकास रुक जाता है. इसी प्रकार जब मन और आत्मा के मध्य तन आ जाता है, तब चन्द्र
ग्रहण लगता है, अर्थात जब हम देह में जीते हैं, तब मन विकसित नहीं हो पाता. कितने
सुंदर हैं ये प्रतीक और कितना गहन अर्थ इनमें छुपा है.
वाह जी
ReplyDeleteआपकी डायरी से हर दम कुछ न कुछ नया मिल ही जाता है.
नाफ़ प्याला याद आता है क्यों? (गजल 5)
स्वागत व आभार रोहितास जी !
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