Friday, March 31, 2023

प्रेम गली अति सांकरी

प्रेम गली अति सांकरी जामे दो न समाए’ जीवन में यदि द्वंद्व है तो दुःख रहेगा ही. द्वैत का शिकार होते ही मन द्वेष करता है, थोड़ी सी भी नकारात्मकता  अथवा आग्रह उसे समता की स्थिति से डिगा देता है. भीतर जब एक समरसता की धारा बहेगी, तब शांति तथा आनन्द फूल की खुशबू की तरह अस्तित्व को समो लेंगे. आकाश से बहती जलधार जब धरा को सराबोर करती है तो उसका कण-कण भीग जाता है, इसी तरह भीतर जब समता का अमृत स्रोत खुल जाता है तो प्रेम व आनन्द की धारा बहती है. मन का ठहराव ही आत्मा की जागृति है. आत्मा में स्थित होकर जीने का ढंग यदि सध जाये तो कुछ अप्राप्य नहीं है। हमारा भीतर जब तक बिगड़ा है, बाहर भी बिगड़ा रहेगा. झुंझलाहट, अहंकार, कठोर वाणी, ये सारे अवगुण बाहर दिखाई देते हैं पर इनका स्रोत भीतर है, भीतर का रस सूख गया है, समता का पानी डालने से भक्ति की बेल हरी-भरी होगी फिर रसीले फल लगेंगे ही. संसार का चिन्तन अधिक होगा तो उसी के अनुपात में तीन ताप भी अधिक जलाएंगे. प्रभु का चिन्तन होगा तो माधुर्य, संतोष, ऐश्वर्य तथा आत्मिक सौन्दर्य रूपी फूल खिलेंगे. कितना सीधा-सीधा हिसाब है. 


Thursday, March 23, 2023

कर्ता भाव से मुक्त हुआ जो

जब हम घटनाओं के साक्षी बन जाते हैं, तो मुक्ति का अहसास  सहज ही होता है। हम सभी ने यह अनुभव किया है। कई बार हम क्रोध करना नहीं चाहते थे लेकिन किसी बात से क्रोधित हो गए और खुद पर आश्चर्य हुआ।यह क्रोध हमारे भीतर संस्कार रूप से मौजूद था और जब तक वह संस्कार बना रहेगा, हमारे न चाहने पर भी क्रोध आएगा। सुबह से रात्रि तक इस सृष्टि में सब कुछ हो रहा है।कोई उन्हें  कर नहीं रहा है। कोई चित्रकार किसी दिन एक चित्र बना लेता है और कवि किसी दिन बहुत अच्छी कविता लिखता है। उनसे कोई पूछे, तो वे आश्चर्य करते हैं कि यह कैसे हुआ! उनके मन की गहराई में वे सब मौजूद है, जो उचित समय आने पर व्यक्त हो जाता है । जीवन ने हमें कदम-कदम पर सिखाया है कि यहाँ सब कुछ हो रहा है। हम कर्ता नहीं हैं। बड़े से बड़ा अपराधी भी कहता है, उसने अपराध नहीं किया, किसी क्षण में यह उससे हो गया। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मनुष्य अब भी इसे कैसे नहीं देख पाता कि वह कई कार्य स्वभाव वश ही करता है ! मनुष्य सोचता भर है कि वह स्वयं निर्णय लेकर रहा है। कोई कह सकता है कि यदि उसने प्रयास न किया होता तो उसके जीवन में वह सब न होता जो आज है। पर जीवन में हमें जहाँ जन्म मिला, जैसे परिस्थितियाँ मिलीं, उनमें हमारा क्या हाथ था, हमारे पास उस स्थिति में वही प्रयास करने के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं था। किन्हीं कारणों हमारा जीवन एक विशेष दिशा ले ले लेता है और उस दिशा में बहने लगता है। 


Monday, March 20, 2023

नवरात्रि का हुआ आगमन

वर्ष में चार बार नवरात्रों का आगमन होता है लेकिन इनमें से चैत्र शुक्ल पक्ष एवं आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक आने वाले नवरात्रों का विशेष महत्व है। वासंतिक नवरात्र से ही भारतीय नववर्ष शुरू होता है। भारत में प्रचलित सभी काल गणनाओं के अनुसार सभी संवतों का प्रथम दिन भी चैत्र शुक्ल प्रथमा ही है।नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व शक्ति साधना का पर्व कहलाता है। देवी माँ के नौ रूप इस प्रकार हैं- शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्मांडा, स्कन्द माता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी एवं सिद्ध दात्री। नवरात्रों में किये गये देवी पूजन, हवन, धूप-दीप आदि से घर का वातावरण पावन होता है और मन एक अपूर्व शक्ति एवं शुद्धि का अनुभव करता है।वैज्ञानिक दृष्टि से जिस समय नवरात्र आते हैं वह काल संक्रमण काल कहलाता है। शारदीय नवरात्र के अवसर पर जहाँ शीत ऋतु का आरम्भ होता है वहीं वासंतिक नवरात्र पर ग्रीष्म ऋतु शुरू होती है। दोनों ही समय वातावरण में विशेष परिवर्तन होता है। जिसमें अनेक प्रकार की बीमारियां होने की संभावना रहती है। ऐसे में हल्का भोजन लेने अथवा उपवास करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।


Sunday, March 19, 2023

हर अभाव से मुक्त हुआ जो

हम अपने ज्ञान का अनादर न करें तो ज़रूरत से ज़्यादा ज्ञान हमारे पास है; जो एक जन्म नहीं कई जन्मों में हमें राह दिखा सकता है। हम जानते हैं कि सीधे सरल जीवन के लिए ज़्यादा ताम-झम की आवश्यकता नहीं है। साफ़-सुथरा वातावरण, हृदय में शांति, पौष्टिक आहार, हमारी क्षमता के अनुसार काम और ईश्वर का भजन एक सुखमय जीवन के लिए पर्याप्त हैं। हमारी ख़ुशी इन्हीं में है पर हमने आकाश के तारे तोड़ लाने ज़िद ही यदि ठान रखी है तो जीवन को संघर्ष बनने से भला कौन रोक सकता है। अपने अहंकार को पोषित करने में हम अपनी आत्मा को भूल जाते हैं, जो भीतर हमारी राह देख रही है। जिसके पास ही वह अनंत प्रेम व आनंद है जो वास्तव में हम तलाश रहे हैं पर उसे ढूँढ नहीं पाते। यह जीवन किसी भी दिन समाप्त हो जाएगा और उससे पूर्व ही हमें पूर्णता की अनुभूति कर लेनी है ताकि देह छोड़ते समय कोई अभाव न खले।

Friday, March 17, 2023

जीवन जब उत्सव बन जाए

पल भर की चूक से सड़क पर दुर्घटना घट जाती है। थोड़ी सी असावधानी हमें भारी पड़ सकती है।। हम जीवन को अपने लिए उपहार भी बना सकते हैं और बोझ भी। दो तरह के गीत सुनने को मिलते हैं, पहली तरह हैं, दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा ! और दूसरी तरफ़ उत्साह से भरा यह गीत, ज़िंदगी इक सफ़र है सुहाना ! या ज़िंदगी प्यार का गीत है, इसे हर दिल को गाना पड़ेगा ! हम जीवन के सफ़र को हल्का बना लें या बोझिल, यह चुनाव हमें ही करना है। योग इसी कला का नाम है। परमात्मा से हमारी पहचान हो जाए तो जैसे बड़े आदमी से पहचान होते ही आदमी निश्चिंत हो जाता है, हमें कोई भय नहीं रहता। हम संसार की दलदल में नहीं फँसते, सदा कमल की तरह जल के ऊपर तिरते रहते हैं। 


Monday, March 13, 2023

सर्वम कृष्णाअर्पणम अस्तु

हम इस जगत को अपना मानकर रहेंगे तो इससे सुख-दुःख लेने-देने का व्यापार ख़त्म हो जाएगा; वरना यह लेन-देन अनंत काल तक चल सकता है। हर बार चाहे हमें कोई दुःख दे या हम किसी को कुछ कहें, पीड़ा एक ही चेतना को होती है। जैसे सारी पूजाएँ एक को ही समर्पित हो जाती हैं, वैसे ही सारी निंदाएँ भी अंतत:एक को ही पीड़ित करती हैं। वह एक हम स्वयं हैं। जगत जैसा है उसके लिए हम ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि वह हमारा ही विस्तार है , उसमें सुधार लाना, उसे सही करना उतना ही सहज होना चाहिए जैसे कोई अपने शरीर का कोई रोग दूर करने का प्रयास करता है या घर की मरम्मत करवाता है। यह जग हमारा बड़ा घर है और यहाँ के प्राणी हमारा बड़ा शरीर, जिसमें पशु-पक्षी, पौधे सभी आते हैं। यह सारा जगत हमारे भीतर ही है, आँखों व मन द्वारा हम सब कुछ अपने भीतर ही देखते हैं। कृष्ण के विश्वरूप का संभवतः यही अर्थ है। 


Wednesday, March 8, 2023

द्वंद्वों के जो पार हो गया

जीवन में सत्य के प्रति निष्ठा जगे तभी हमारा जीवन स्फटिक की भाँति निर्मल होगा। हमारे वचनों, कृत्यों और भावों में समानता है तभी हम सत्य के अधिकारी बन सकते हैं। यदि कथनी व करनी में अंतर होगा तो हम अपनी ही दृष्टि में खड़े नहीं रह पाएँगे। यदि मन में प्रेम हो और वचनों में कठोरता तो जीवन एक संघर्ष बन जाता है। यदि मन में उदारता हो और व्यवहार में कृपणता हो तो भी हम सच्चे साधक नहीं कहला सकते। मन, बुद्धि व संस्कार जब एक ही तत्व से जुड़कर एक ही का आश्रय लेते हैं, तब जीवन में निष्ठा का जन्म होता है। श्रद्धा का अर्थ भी यही है कि भीतर द्वंद्व न रहे, हम जो सोचें वही कहें , जो कहें वही करें। जब भीतर एकत्व सध जाता है, तब बाहर भी व्यवहार अपने आप सहज होने लगता है। हम सत्य के पुजारी बनें, अद्वैत को अपने जीवन में उतारें, इसके लिए भीतर एकनिष्ठ होना बहुत ज़रूरी है। 


Monday, March 6, 2023

होली के दिन दिल मिल जाते हैं

होली का उत्सव यानि प्रेम का उत्सव !  होली रंगों में भीग कर सबके साथ एक हो जाने का उत्सव है, छोटे-बड़े का भेद भुलाकर समानता का अनुभव करने का उत्सव है. हर पुरानी कड़वाहट को मिटाकर गुझिया की मिठास बांटने का उत्सव है. होली जैसा अनोखा उत्सव और कोई नहीं, जिसमें एक दिन के लिए मन अतीव उल्लास से भर जाता है. जान-पहचान हो या न हो सभी को रंग लगाने का अपने आनंद में शामिल करने का जिसमें सहज ही प्रयास होता है. मन विशाल हो जाता है, किन्तु इसे भी कुछ लोग अहंकार के कारण चूक जाते हैं. हमारे आपसी मतभेद और टकराहटें जब समष्टि के इतने बड़े आयोजन को देखकर भी दूर नहीं होते तब उनके मिटने का और कोई उपाय नजर नहीं आता.

Wednesday, March 1, 2023

द्रष्टा में जो रहना सीखे

 परमात्मा ही वास्तव में ज्ञाता-द्रष्टा है, मन में उसका प्रतिबिम्ब पड़ने से जीवात्मा की उत्पत्ति होती है। जैसे चंद्रमा पर सूर्य की रोशनी पड़ती है तो ज्योत्सना का जन्म होता है। वह अपना स्वतंत्र अस्तित्त्व मानक प्रकृति  पर अपना अधिकार जताना चाहता है, पर सदा से विफल होता आया है।  परमात्मा स्वयं को विभिन्न रुपों में प्रकट करना चाहता है। उसके अनंत गुण हैं, जिनका प्रकटीकरण एक से नहीं हो सकता, वह हज़ार रुपों में अपनी विभूतियों  और शक्तियों को प्रकट करना चाहता है; जीवात्मा उन्हें निज सम्पत्ति मान लेता है, वह उनका सुख लेना चाहता है, अहंकार का पोषण करना चाहता है पर उससे दुःख ही पाता है। यदि कलाकार अपनी कला का अभिमान करे तो दुखी होने ही वाला है।यदि वरदान समझकर जगत में अन्य लोगों को उससे सुख पहुँचाए तो वह परमात्मा का सहयोगी बन जाता है। जब कोई इंद्रियों के द्वारा जगत का सुख लेना चाहता है तो उसकी क़ीमत शक्ति का व्यय करके चुकानी पड़ती है। देह दुर्बल होती है, इंद्रियाँ कमजोर होती हैं और एक दिन जीवन का अंत आ जाता है। यदि जीते जी ही इनके प्रति आकर्षण से मुक्त होना सीख लें तो सचेत होकर मृत्यु का वरण किया जा सकता है तथा जब तक जग में हैं आनंद का अनुभव सहज ही होता है।