Wednesday, March 8, 2023

द्वंद्वों के जो पार हो गया

जीवन में सत्य के प्रति निष्ठा जगे तभी हमारा जीवन स्फटिक की भाँति निर्मल होगा। हमारे वचनों, कृत्यों और भावों में समानता है तभी हम सत्य के अधिकारी बन सकते हैं। यदि कथनी व करनी में अंतर होगा तो हम अपनी ही दृष्टि में खड़े नहीं रह पाएँगे। यदि मन में प्रेम हो और वचनों में कठोरता तो जीवन एक संघर्ष बन जाता है। यदि मन में उदारता हो और व्यवहार में कृपणता हो तो भी हम सच्चे साधक नहीं कहला सकते। मन, बुद्धि व संस्कार जब एक ही तत्व से जुड़कर एक ही का आश्रय लेते हैं, तब जीवन में निष्ठा का जन्म होता है। श्रद्धा का अर्थ भी यही है कि भीतर द्वंद्व न रहे, हम जो सोचें वही कहें , जो कहें वही करें। जब भीतर एकत्व सध जाता है, तब बाहर भी व्यवहार अपने आप सहज होने लगता है। हम सत्य के पुजारी बनें, अद्वैत को अपने जीवन में उतारें, इसके लिए भीतर एकनिष्ठ होना बहुत ज़रूरी है। 


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