Thursday, May 26, 2022

नित्य-अनित्य का भेद जो जाने

यह जगत जैसा दिखाई देता है वैसा है नहीं. मन भी जगत का ही एक भाग है, निकट जाकर देखने पर यह विलीन हो जाता है. इसे देखने वाला चैतन्य ही सत्य है, शास्त्रों की यह उक्ति तभी सत्य सिद्ध होती है। सागर में हज़ार लहरें उठती हैं, छोटी-बड़ी, ऊँची-नीची लहरें, पर उनका अस्तित्त्व ज़्यादा देर नहीं टिकता। सागर जिस पानी से बना है वह पानी कभी नहीं मिटता। यदि पानी चेतन होता और स्वयं को लहर मानता तो वह भी स्वयं को मिटता हुआ मान सकता था। हम स्वयं को जानकर ही उस शाश्वत पूर्णता का अनुभव कर सकते हैं, जो व्यर्थ ही वस्तुओं और संबंधों में ढूँढते हैं। जाति, संप्रदाय, धर्म आदि ऊपर-ऊपर के भेदों  को छोड़कर भीतर आत्मा के स्तर पर ही शुद्ध प्रेम का अनुभव किया जा सकता है। परमात्मा निरंजन व असंग है, वह पूर्ण है, मुक्त है, चैतन्य है,  जब-जब वह राम, कृष्ण या किसी सद्गुरू के रूप में धरती पर आता है, उसी ने जल में कमलवत रहने का ढंग सिखाया है। बुद्ध ने कहा था जिस क्षण मुझे ज्ञान हुआ, मैंने हर प्राणी के भीतर बुद्धत्व को देखा। सबके साथ आत्मीयता और एक्य का अनुभव आत्मज्ञान के बिना हो ही नहीं सकता। 


Tuesday, May 24, 2022

भक्ति करे कोई सूरमा

 हृदय में परम भक्ति का उदय होना एक अनोखी घटना है. जो भी किसी कामना से भगवान की पूजा करते हैं, मन्दिर जाते हैं, वे यदि सोचें कि उनके भीतर ईश्वर के प्रति भक्ति है तो यह गौणी भक्ति कही जा सकती है. एक और भक्ति है जो उस अनुभव के बाद उत्पन्न होती है जब भक्त और भगवान आत्मिक स्तर पर जुड़ जाते हैं. भौतिक दूरी तब कोई महत्व नहीं रखती. मीरा हजारों साल के अंतराल के बाद भी कृष्ण का दर्शन कर लेती है. शिष्य हजारों मील दूर होते हुए भी गुरू की कृपा का अनुभव करते हैं. बुद्धि और भावनाओं से भी परे जाकर उस अलौकिक भक्ति को पाया जा सकता है. मानव देह में घटने वाली यह सर्वोत्तम घटता कही जा सकती है. कृष्ण कहते हैं, मुझे ज्ञानी भक्त प्रिय है क्योंकि वह मेरा ही स्वरूप है. ऐसा महात्मा साक्षात ईश्वर स्वरूप ही हो जाता है. वह संसार को अपने जीवन से अनमोल ज्ञान, प्रेम और शांति देता है. वह दुखी, तनाव ग्रस्त लोगों को जीने का मार्ग दिखाता है. उसका होना ही जगत के लिए एक वरदान बन जाता है. जब मन हर तरह के स्वार्थ से ऊपर उठ चुका हो और केवल लोक संग्रह ही एक मात्र उद्देश्य रह जाये तब इस भक्ति का जन्म होता है. भरत देश में समय-समय पर ऐसी महान आत्माएं जन्म लेती हैं जो भक्ति के परम स्वरूप को प्रकट करती हैं. 

Sunday, May 22, 2022

गुह्यतम ज्ञान सुनाये कान्हा

 देह देवालय है, देह में आत्मरूप से वही परमात्मा विद्यमान है. हम अहंकार के वशीभूत होकर इस सच से आँखें मूँदे रहते हैं. सदगुरू इस राज से पर्दा उठाते हैं और एक नयी दुनिया में हम कदम रखते हैं. जहाँ प्रेम का ही साम्राज्य है, जहाँ एक की ही सत्ता है, जहां अद्वैत मात्र सिद्धांत नहीं वास्तविकता है. जहाँ अपूर्व शांति है जहाँ जीवन अपने कोमलतम शुद्ध रूप में आँखें खोलता है.  वह अनुपम लोक जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, जहाँ नेति-नेति कहकर ही शास्त्र इशारा करते हैं. ऐसा एक लोक हमारे भीतर है, सदगुरू इसका भेद बताते हैं. कृष्ण इसे ही गुह्यतम ज्ञान कहते हैं. 


Saturday, May 21, 2022

कैसे हाथ बंटाए जग में

 यह जगत तब तक ही जगत जैसा दिखायी देता है, जब तक स्वयं को जगत से पृथक मानते हैं. जब हम भीतर एक को जान लेते हैं तब इस जगत से पृथकता का अनुभव नहीं करते. एक ही चेतना हर जगह व्याप्त है, जो भिन्न-भिन्न रूप धारण कर रही है; तब न किसी को पाने की इच्छा, न खोने का भय, जीवन से स्वार्थ सिद्धि लुप्त हो जाती है. स्व में सारा जगत समा जाता है. तब किसी के दोष देखने की प्रवृत्ति का भी नाश हो जाता है, क्योंकि आत्मरूप से सब एक में ही स्थित हैं और जगत रूप से सभी कुछ परिवर्तित हो रहा है. जैसे स्वयं के मन, बुद्धि आदि विकारों का शिकार होते हैं, वैसे सभी के साथ होता है. जगत परमात्मा का क्रीड़ा स्थल है, यहाँ उसके इस आयोजन में अपना हाथ बंटाना भर है, अपना नया खेल आरंभ नहीं करना है ! 


Tuesday, May 17, 2022

जीवन का आधार वही है

जीवन अमूल्य है, परमात्मा का उपहार है, वही इसका आधार भी है. हमें उसे ही जानना है जो इस देह और मन के भीतर ज्योति जलाकर बैठा है. यह जगत शरीर को चलाने और परमात्मा का ज्ञान पाने के लिए एक साधन है. परमात्मा सद्गुरु के रूप में बार-बार धरा पर अवतरित होते हैं. कृपा की फुहार बरसाते हैं. कृपा का अनुभव होते ही साधक का जीवन एक उत्सव बन जाता है. गूंगे की मिठाई की तरह यह अनुभव अंतर को रस से भर देता है. तब भीतर उजाला ही उजाला भर जाता है, जिसमें सभी कुछ स्पष्ट हो जाता है, कहीं कोई संशय नहीं रहता. यदि हम उसे अपने जीवन रूपी रथ को हांकने के लिए कहें तो वह तत्क्षण तैयार हो जाते हैं. वह हमारी चेतना की मूर्छा को दूर करते हैं. जीवात्मा रूपी अर्जुन जब-जब परमात्मा रूपी कृष्ण को अपना गुरु बनाता है तो वह उसे प्रेरित करते हैं, ज्ञान प्रदान करते हैं, ध्यान की विधि बताते हैं. अनेकों उपायों से वह साधक की सुप्त चेतना को जागृत करते हैं. अहंकार का आवरण दूर होते ही सत्य का साक्षात्कार होता है. 

Sunday, May 15, 2022

जीवन एक यात्रा सुंदर


 जैसे जमीन की गहराई में पानी तथा तेल छिपा होता है, गहरी खुदाई करके निकला जाता है, वैसे ही शरीर की गहराई में आत्मा की अनंत शक्ति छिपी है जिसे उजागर करने पर स्वास्थ्य सहज ही मिलता है.  खिडकियों पर भारी पर्दे लगे हों तो कमरे में प्रकाश मद्धिम सा ही दीख पड़ता है वैसे ही यदि मन पर प्रमाद छा जाये तो आत्मा की शक्ति ढक जाती है व तन अस्वस्थ हो जाता है. किसी संस्थान को सुचारू रूप से चलाने के लिये अनुशासन बहुत जरूरी है वैसे ही शरीर रूपी संस्थान ठीक रहे इसके लिये सोने, जगने व्यायाम, भोजन का अनुशासन बहुत जरूरी है. प्रकृति में एक गति है, लय है, रात-दिन तथा ऋतु परिवर्तन उसी लय के अनुसार होते हैं वैसे ही तन, श्वास तथा मन में भी एक लय है रिदम है जिसके बिगड़ने पर रोग हो सकते हैं. कार के भीतर ड्राइवर स्टीयरिंग पर से कंट्रोल छोड़ दे तो दुर्घटना होगी ही वैसे ही तन रूपी रथ की सारथी बुद्धि, मन रूपी घोड़े को खुला छोड़ दे, भोजन, नींद, व्यायाम में संयम, तथा सही मात्रा व सही समय का ध्यान न रखे तो हम स्वस्थ कैसे रह सकते हैं.शरीर के भीतर स्वयं को स्वस्थ रखने का पूरा प्रबंध है बस उसे हमारा सहयोग चाहिए जरूरत से ज्यादा उसे थकाएं भी नहीं और आराम भी न दें.नम वातावरण में, गीले मौसम में ठंडी चीजें नुकसान करती हैं, इनसे दूर ही रहें.जैसे हम रेल यात्रा करने जाएँ तो हमारी सीट, कूपा तथा सहयात्री सभी पहले से तय होते हैं वैसे ही जीवन यात्रा में हमें जहाँ-जहाँ जो मिलेगा वह पूर्व निर्धारित है, जैसे हम रेल यात्रा को सुखद बनाना जानते हैं, वैसे ही सही दृष्टिकोण रखकर हम जीवन यात्रा को सुखद बना सकते हैं.

Monday, May 2, 2022

समाधान जो चाहे पाना

मानव को यदि अपनी उलझनों का समाधान चाहिए तो भीतर मिलेगा। मन की गहराई में जो शुद्ध चैतन्य है, जो सत् है, आनंद है, उसके सान्निध्य में मिलेगा। बाहर जगत में उलझाव है, प्रतिस्पर्धा है, तनाव है, बाहर सब कुछ निरंतर बदल रहा है। सागर में उठी लहरों की तरह जग निरंतर विनाश को प्राप्त हो रहा है। भीतर एक अवस्था ऐसी है जो सदा एकरस है, उसमें टिके बिना पूर्ण विश्रांति नहीं मिलती। वहाँ जाने में बाधा क्या है ? स्वयं के और दूसरों के बारे में हमारी धारणाएँ, मान्यताएँ और विचार ही सबसे बड़ी बाधा हैं। वह निर्विकल्प अवस्था है, मन कल्पनाओं का घर है। वहाँ प्रेम का साम्राज्य है, मन जगत में दोष देखता है। जब हम जगत को जैसा वह है पूर्ण रूप से वैसा ही स्वीकार करके मन को कुछ समय के लिए ख़ाली कर देते हैं तब उस शांति का अनुभव अपने भीतर करते हैं।