हृदय में परम भक्ति का उदय होना एक अनोखी घटना है. जो भी किसी कामना से भगवान की पूजा करते हैं, मन्दिर जाते हैं, वे यदि सोचें कि उनके भीतर ईश्वर के प्रति भक्ति है तो यह गौणी भक्ति कही जा सकती है. एक और भक्ति है जो उस अनुभव के बाद उत्पन्न होती है जब भक्त और भगवान आत्मिक स्तर पर जुड़ जाते हैं. भौतिक दूरी तब कोई महत्व नहीं रखती. मीरा हजारों साल के अंतराल के बाद भी कृष्ण का दर्शन कर लेती है. शिष्य हजारों मील दूर होते हुए भी गुरू की कृपा का अनुभव करते हैं. बुद्धि और भावनाओं से भी परे जाकर उस अलौकिक भक्ति को पाया जा सकता है. मानव देह में घटने वाली यह सर्वोत्तम घटता कही जा सकती है. कृष्ण कहते हैं, मुझे ज्ञानी भक्त प्रिय है क्योंकि वह मेरा ही स्वरूप है. ऐसा महात्मा साक्षात ईश्वर स्वरूप ही हो जाता है. वह संसार को अपने जीवन से अनमोल ज्ञान, प्रेम और शांति देता है. वह दुखी, तनाव ग्रस्त लोगों को जीने का मार्ग दिखाता है. उसका होना ही जगत के लिए एक वरदान बन जाता है. जब मन हर तरह के स्वार्थ से ऊपर उठ चुका हो और केवल लोक संग्रह ही एक मात्र उद्देश्य रह जाये तब इस भक्ति का जन्म होता है. भरत देश में समय-समय पर ऐसी महान आत्माएं जन्म लेती हैं जो भक्ति के परम स्वरूप को प्रकट करती हैं.
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