अनंत काल से यह सृष्टि चल रही है, लाखों मानव आये और चले गये, कितने नक्षत्र बने और टूटे. कितनी विचार धाराएँ पनपी और बिखर गयीं. कितने देश बने और लुप्त हो गये. इतिहास की नजर जहाँ तक जाती है सृष्टि उससे भी पुरानी है, फिर एक मानव का सत्तर-अस्सी वर्ष का छोटा सा जीवन क्या एक बूंद जैसा नहीं लगता इस महासागर में, व्यर्थ की चिंताओं में फंसकर वह इसे बोझिल बना लेता है. हर प्रातः जैसे एक नया जन्म होता है, दिनभर क्रीड़ा करने के बाद जैसे एक बालक निशंक माँ की गोद में सो जाता है, वैसे ही हर जीव प्रकृति की गोद में सुरक्षित है. यदि जीवन में एक सादगी हो, आवश्यकताएं कम हों और हृदय परम के प्रति श्रद्धा से भरा हो तो हर दिन एक उत्सव है और हर रात्रि परम विश्रांति का अवसर ! हर बार नया वर्ष आकर हमें इस सत्य से अवगत कराता है कि जीवन का लक्ष्य भीतर के आनंद को पाना और उसे जगत में लुटाना मात्र है।
Friday, December 31, 2021
Sunday, December 26, 2021
सहनशील चेतना हो जिसकी
जीवन क्या है ? क्या निरंतर कुछ न कुछ अनुभव करते रहने की ललक का ही दूसरा नाम जीवन नहीं है। शिशु के जन्म लेते ही यह प्रक्रिया आरम्भ हो जाती है। जब तक देहाध्यास नहीं छूटता, इंद्रियों से अनुभव लेने की कामना का नाश नहीं होता। हर नए प्रातः में हमारा पदार्पण यदि सजगता पूर्ण हो तो इन अनुभवों को ग्रहण करते हुए भी जीवन के मूल्यों को हम किसी भी क्षण विस्मृत नहीं करेंगे। हमारा अंतर स्वप्नशील हो जिसमें एक शिव संकल्प जलता रहे जो सदा प्रेरित करे। राह में यदि कांटे हों, अनदेखा करके कोई खुद को बचा कर निकल जाता है, पर संवेदनशील कांटे बीनता है और राह को अन्यों के लिए कंटक विहीन बना देता है ! जो सहनशील होगा वही अपनी चेतना को विकसित कर सकता है, नित नया सृजन करता है. जैसे प्रकृति नित नई है, यदि मन हर दिन कोई नया विचार, कोई नया गीत रचे। यह अनादि सत्य है कि सनातन मूल्यों को पकड़ कर ही नया सृजन होता है, वैसे ही जैसे मूल को पकड़ कर ही नया फूल खिलता है.
Wednesday, December 15, 2021
तमसो मा ज्योतिर्गमय
तमसो मा ज्योतिर्गमय नामक वैदिक मंत्र में अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की प्रार्थना की गयी है। अंधकार में टकराने का भय है, सर्प आदि जंतुओं का डर भी है। अपने वास्तविक स्वरूप का अज्ञान ही अंधकार है, जिसके कारण जगत में सुख-दुःख, हानि-लाभ, मान-अपमान से टकराना पड़ता है। क्रोध, लोभ, मोह आदि के सर्प, बिच्छू आदि के काटने का डर बना रहता है। जैसे ही स्वयं का बोध होता है, अर्थात् ज्ञान का दीपक जलता है, तो ये सभी स्पष्ट दिखाई पड़ने लगते हैं। इनसे बचकर रहा जा सकता है, क्योंकि स्वयं के भीतर समता का वह स्थान प्राप्त हो जाता है जहाँ से आनंद, शांति और प्रेम की अबाध धारा निरंतर बहती रहती है। अज्ञान काल में ही राग-द्वेष सताते हैं, क्रोध आदि शत्रु जलाते हैं, जब आत्मबोध होता है तब इनकी सत्ता उसी तरह विलीन हो जाती है जैसे दिया जलते ही अंधकार दूर हो जाता है। जैसे स्वप्न में होने वाली हानि को हम हानि नहीं मानते वैसे ही ज्ञान होने पर जगत में होने वाले सुख-दुःख,लाभ-हानि आदि स्वप्नवत ही प्रतीत होते हैं।
Saturday, December 11, 2021
ज्ञान वही जो समता लाये
Monday, December 6, 2021
दिव्य प्रेम के रूप अनेक
Sunday, December 5, 2021
तोरा मन दर्पण कहलाये
Friday, December 3, 2021
तीन के जो भी पार हुआ है
जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति तीनों जिस पृष्ठभूमि पर घटते हैं वह एक रस अवस्था है. बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था तीनों को जो कोई एक अनुभव करता है वह इन तीनों से परे है. भौतिक, दैविक और आध्यात्मिक इन तीनों प्रकार के दुखों का जो साक्षी है वह इनसे परे है. मन, बुद्धि और संस्कार इन तीनों के भी परे है, सत्व, रज और तम इन तीन गुणों से भी वह अतीत है. यह सब हम शास्त्रों में पढ़ते हैं किन्तु इस पर कभी चिंतन नहीं करते. जागते हुए जो संसार हम देखते हैं वह स्वप्न और नींद में विलीन हो जाता है, स्वप्न में जो दुनिया दिखाई देती है वह आँख खुलते ही गायब हो जाती है, और गहरी नींद में तो व्यक्ति को यह भी ज्ञान नहीं रहता कि वह कौन है ? लेकिन हमारे भीतर कोई एक है जो पीछे रहकर सब देखता रहता है. जो कुछ हम जाग कर करते हैं, या स्वप्न में या नींद गहरी थी या हल्की, वह सब जानता है. बचपन से लेकर वर्तमान की स्मृतियों को जो अनुभव कर रहा है वह मन तो रोज बदल जाता है पर कोई इसके पीछे है जो कभी नहीं बदलता. आज तक न जाने कितने सुख दुःख के पल जीवन में आये, जो इनसे प्रभावित नहीं हुआ वह चैतन्य ही गुणातीत है. ध्यान में जब मन व बुद्धि शांत हो जाते हैं, तब जो केवल अपने होने मात्र का अनुभव होता है, वह उसी के कारण होता है. वह अनुभव शांति और आनंद से मन को भर देता है. इसीलिए हर धर्म में ध्यान को इतनी महत्ता दी गयी है.