तमसो मा ज्योतिर्गमय नामक वैदिक मंत्र में अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की प्रार्थना की गयी है। अंधकार में टकराने का भय है, सर्प आदि जंतुओं का डर भी है। अपने वास्तविक स्वरूप का अज्ञान ही अंधकार है, जिसके कारण जगत में सुख-दुःख, हानि-लाभ, मान-अपमान से टकराना पड़ता है। क्रोध, लोभ, मोह आदि के सर्प, बिच्छू आदि के काटने का डर बना रहता है। जैसे ही स्वयं का बोध होता है, अर्थात् ज्ञान का दीपक जलता है, तो ये सभी स्पष्ट दिखाई पड़ने लगते हैं। इनसे बचकर रहा जा सकता है, क्योंकि स्वयं के भीतर समता का वह स्थान प्राप्त हो जाता है जहाँ से आनंद, शांति और प्रेम की अबाध धारा निरंतर बहती रहती है। अज्ञान काल में ही राग-द्वेष सताते हैं, क्रोध आदि शत्रु जलाते हैं, जब आत्मबोध होता है तब इनकी सत्ता उसी तरह विलीन हो जाती है जैसे दिया जलते ही अंधकार दूर हो जाता है। जैसे स्वप्न में होने वाली हानि को हम हानि नहीं मानते वैसे ही ज्ञान होने पर जगत में होने वाले सुख-दुःख,लाभ-हानि आदि स्वप्नवत ही प्रतीत होते हैं।
"जब आत्मबोध होता है तब इनकी सत्ता उसी तरह विलीन हो जाती है जैसे दिया जलते ही अंधकार दूर हो जाता है।"
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा आपने। ज्ञान ही मुक्ति है, बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया अनीता जी 🙏