Friday, September 30, 2022

गांधी जी ने यही कहा था

बापू के जीवन से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। वह सत्य और अहिंसा के प्रति पूर्ण समर्पित थे। वह समय के पाबंद थे, नियमित भ्रमण करते थे, शाम को उनके सत्संग का भी समय निश्चित था। वह सात्विक व शाकाहारी भोजन के हिमायती थे। उनके आश्रमों के नियम बहुत कठोर थे और उस समय के लिए संभवतः आवश्यक भी थे। देश की आज़ादी के लिए लड़ने वाले कार्यकर्ताओं को उन्हें गढ़ना था। वह वस्तुओं का समुचित उपयोग करना चाहते थे, काग़ज़ का एक टुकड़ा हो या पैर रगड़ने वाला छोटा सा पत्थर, उनके लिए महत्वपूर्ण थे। उन्होंने अपने लिए अनेक मर्यादाओं को तय किया और उनका पालन किया। सत्य या ईश्वर की खोज उनके जीवन में उतना ही महत्वपूर्ण स्थान रखती थी जितना देश को आज़ाद कराना। उन्होंने सविनय अवज्ञा व सत्याग्रह आदि जितने आंदोलन किए, अपने आदर्शों को सदा आगे रखा। दक्षिण अफ़्रीका में भारतीयों की दशा देखकर उन्होंने अपनी राजनीतिक यात्रा का आरंभ किया, आज भी वहाँ उन्हें आदर से याद किया जाता है और नेल्सन मंडेला के उनके रास्ते पर चलकर अपने देश को आज़ाद कराया। गांधी जी ने अस्पृश्यता जैसे सामाजिक रोग को दूर करने के लिए बहुत कार्य किया। नारियों की शक्ति को पहचान कर उन्हें शिक्षा प्राप्त करने व सामाजिक कार्यों में भाग लेने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं और गांधी वांग्मय नाम से उनके लिखे लेखों, भाषणों व पत्रों का एक विशाल भंडार है जो आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित कर सकता है। वह भारत में रामराज्य की स्थापना करना चाहते थे। सभी धर्मों के प्रति उनके मन में आदर था। अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति को आगे लाना उनकी प्राथमिकता थी। विश्व के हर कोने में गांधी जी को सम्मान मिला। वर्तमान में कुछ लोग भले ही कुछ बातों के लिए उनका विरोध करते हों, पर उनके असाधारण कार्यों के लिए सभी के दिल में उनके लिए अपार आदर है। 


Thursday, September 29, 2022

सोहम का जो मर्म जानता

 हरेक मानव को अपने होने का आभास होता है। स्वयं के होने में किसी को संदेह नहीं है। जड़ वस्तु स्वयं को नहीं जान सकती। पर्वत नहीं जानता कि वह पर्वत है। केवल चेतन ही खुद को  जान सकता है। परमात्मा पूर्ण चैतन्य है। चेतना का स्वभाव एक ही है, जैसे बूँद हो या सागर दोनों में जल एक सा है। वही चेतना हर सजीव के भीतर उपस्थित है जो परमात्मा के भीतर है। इस तरह जीव और परमात्मा एक तत्व से निर्मित हैं। जीव यानी हम उससे पृथक हो ही नहीं सकते। शास्त्रों में ‘सोहम’ इसीलिए गाया है, अर्थात हम वही हैं। किंतु यदि हम स्वयं को जड़ देह अथवा मन मानते हैं तो हमारी आस्था का केंद्र भी भौतिक व दैविक होगा। अधिकतर मानव जड़ वस्तुओं की पूजा करते हैं या देवी-देवताओं से मन्नत माँगते हैं। शुद्ध चैतन्य के रूप में परमात्मा, स्वयं को चेतन जानने से प्रकट होता है; जिसे जानने के बाद जीवन से भय, असुरक्षा, अभाव, विषाद आदि जो कुछ भी जड़ता के साथ जुड़ा हुआ है, वह समाप्त हो जाता है। पुराने संस्कारों के अनुसार देह व मन से कर्म होते हैं पर आत्मा उनसे बंधती नहीं है। वह स्वयं के शुद्ध स्वरूप तथा परमात्मा से निकटता का अनुभव करती है।   

Friday, September 23, 2022

खुद को जिसने चेतन जाना

हरेक मानव को अपने होने का आभास होता है। स्वयं के होने में किसी को संदेह नहीं है। जड़ वस्तु स्वयं को नहीं जान सकती। पर्वत नहीं जानता कि वह पर्वत है। केवल चेतन ही खुद को  जान सकता है। परमात्मा पूर्ण चैतन्य है। चेतना का स्वभाव एक ही है, जैसे बूँद हो या सागर दोनों में जल एक सा है। वही चेतना हर सजीव के भीतर उपस्थित है जो परमात्मा के भीतर है। इस तरह जीव और परमात्मा एक तत्व से निर्मित हैं। जीव यानी हम उससे पृथक हो ही नहीं सकते। शास्त्रों में ‘सोहम’ इसीलिए गाया है, अर्थात हम वही हैं। किंतु यदि हम स्वयं को जड़ देह अथवा मन मानते हैं तो हमारी आस्था का केंद्र भी भौतिक व दैविक होगा। अधिकतर मानव जड़ वस्तुओं की पूजा करते हैं या देवी-देवताओं से मन्नत माँगते हैं। शुद्ध चैतन्य के रूप में परमात्मा, स्वयं को चेतन जानने से प्रकट होता है; जिसे जानने के बाद जीवन से भय, असुरक्षा, अभाव, विषाद आदि जो कुछ भी जड़ता के साथ जुड़ा हुआ है, वह समाप्त हो जाता है। पुराने संस्कारों के अनुसार देह व मन से कर्म होते हैं पर आत्मा उनसे बंधती नहीं है। वह स्वयं के शुद्ध स्वरूप तथा परमात्मा से निकटता का अनुभव करती है।   


Thursday, September 22, 2022

जीवन इक उपहार अनोखा

सेवा के रूप में किए गए कृत्य हमें वर्तमान में बनाए रखते हैं क्योंकि हमें उनसे भविष्य में कुछ भी पाने की चाह नहीं होती। जब हम जीवन को साक्षी भाव से देखते हैं तो चीजें स्पष्ट दिखायी देती हैं। जितना हम सामान्य बातों से ऊपर उठ जाते हैं तो वे बातें जो पहले बड़ी लगती थीं, अपना महत्व खो देती हैं। हमें यह जीवन उपहार स्वरूप दिया गया है, मन में इसके लिए अस्तित्त्व के प्रति कृतज्ञता जगे तो कभी किसी अभाव का अनुभव नहीं होता। नियमित साधना, सेवा तथा जाप करने से मन तृप्त रहता है। जितना-जितना हम साधना के लिये समर्पित होंगे, आंतरिक ऊर्जा बढ़ती रहेगी और सहज उत्साह बना रहेगा। ऐसी स्थिति में हमारा हर कार्य भीतर के आनंद की अभिव्यक्ति के लिए होगा न कि भविष्य में आनंद पाने की लालसा में किया गया होगा। इसके लिए समय का उचित प्रबंधन और हर क्षेत्र में संयमित रहना है। संबंधों में मधुरता तभी बनी राह सकती है जब वे प्रेम बाँटने के लिए बने हों न कि प्रेम की माँग करने के लिए। 


Tuesday, September 20, 2022

लक्ष्य साध ले जो जीवन का

जीवन में किसी भी कर्म को करने का निर्णय लेने से पहले हमें यह ध्यान रखना होगा कि क्या इस कर्म का परिणाम हमें केवल अल्पकालीन आनंद देगा । यदि थोड़े से सुख के लिए हम भविष्य के लिए दुःख का इंतज़ाम कर रहे हैं तो ऐसा कर्म किसी भी तरह करणीय नहीं है। यदि किसी कर्म से हमें थोड़ा कष्ट भी उठाना पड़े किंतु उसका परिणाम बाद में अच्छा हो तो वह कर्म अवश्य करना चाहिए। सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए जीवन को स्वीकार भाव से जीना हमें सफलता के मार्ग पर ले जाता है।एक बार जब हम किसी भी लक्ष्य को तय कर लें अथवा किसी कार्य के प्रति प्रतिबद्ध हों तो उसे प्राप्त किए बिना छोड़ना नहीं चाहिए। जीवन का मार्ग अपने उत्तरदायित्वों पर आधारित हो न कि भावनाओं पर, जो सदा बदलती रहती हैं। उत्तरदायित्व के प्रति निष्ठा से आत्मिक शक्ति प्रकट होती है। भावनाओं से मुक्ति मन को स्वतंत्रता का आभास कराती है। जीवन अनिश्चितताओं से भरा है। यहाँ सदा उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इनके मध्य भी जो सदा आनंदित व  उत्साहित रहना सीख ले वही सफल कहा जाता है। 


Thursday, September 15, 2022

दुःख में सुमिरन सब करें

जीवन में जब सब कुछ ठीक चल रहा होता है, कोई अभाव नहीं खटक रहा होता. शरीर स्वस्थ होता है और कोई आर्थिक समस्या भी नहीं होती तब मानव ईश्वर को याद नहीं करता. वह यदि नित्य की पूजा में बैठता भी है तो उसकी प्रार्थनाओं में गहराई नहीं होती. वह फूल भी अर्पित करता है और उसके मन्दिर में घन्टा भी बजा देता है पर उसके मन में कोई कोई आतुरता नहीं होती. दुःख में की गयी प्रार्थना हृदय की गहराई से निकलती है. दुःख व्यक्ति को अपने करीब ले आता है, वह ईश्वर से जुड़ना चाहता है. वह उसकी कृपा का भागी होना चाहता है; किंतु उसका संबंध क्योंकि आत्मीय नहीं बना है, उसे आश्वासन मिलता हुआ प्रतीत नहीं होता। सन्त कहते हैं, सुख या दुःख दोनों के पार है परम सत्य, उसे अपने जीवन का आधार मानते हुए हर पल उसके प्रति कृतज्ञता की भावना रखनी चाहिए. उसकी उपस्थिति से ही हमारे प्राण जीवित हैं, रक्त प्रवाहित हो रहा है. हमें वाणी मिली है. हमारा होना ही उससे है. जीवन में आने वाले सुख-दुःख हमारे स्वयं के कर्मों के परिणाम हैं. वह साक्षी मात्र है. जब हमारे जीवन का केंद्र उसके प्रति कृतज्ञता के निकट स्थित होगा तब मन के सजगता पूर्ण होने के कारण कर्म सहज होंगे और उनका परिणाम भी दुखदायी नहीं होगा. सुख-दुःख तब समान हो जाएंगे और जीवन एक खेल की भांति प्रतीत होगा. 


Tuesday, September 13, 2022

हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है


हिंदी एक सरल, सुंदर, सहज व समृद्धभाषा है, इसका शब्दकोश अति विशाल है। हिंदी साहित्य की परंपरा अति प्राचीन काल से आरंभ होती है । समय के साथ-साथ हिंदी के रूप  बदलते रहे हों पर या एक विस्तृत धारा की तरह अनेक भाषाओं के शब्दों को सहेजती, परिवर्तित करती बहती आयी है। यह भारत के विभिन्न प्रदेशों को जोड़ने वाली संपर्क भाषा है और एक दिन सारे विश्व को आपस में जोड़ने वाली सम्पर्क भाषा बनने की क्षमता इसमें है। यह भारत की राजभाषा होने के साथ-साथ उत्तर भारत के नौ राज्यों की भी आधिकारिक भाषा है।विश्व के अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ायी जाती है; वहाँ हिंदी में साहित्य भी रचा जाता है। इंटर्नेट के इस युग में हिंदी में लिखने वाले ब्लॉगर्स की संख्या भी बढ़ती जा रही है। सोशल मीडिया के हर रूप में हिंदी का प्रयोग बढ़ रहा है। यह सब देखकर लगता है हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है। ऐसे में हिंदी भाषियों का दायित्व हो जाता है कि वे अधिक से अधिक शुद्ध हिंदी का प्रयोग करें , उसे सिखाएँ, प्रचार करें तथा उसके साहित्य का अध्ययन करें। 


Thursday, September 8, 2022

प्रकृति का सम्मान करें हम

जीवन जिस स्रोत से आया है और जिसमें एक दिन समा जाएगा, जिससे सब कुछ हुआ है, जो पंच भूतों का स्वामी  है, जो जगत का कारण है, उसे ही जानना है। यहाँ जो भी हो रहा है, उन सब कारणों का जो  कारण है। जो हमारे जीवन का आधार है। हवा, पानी, अग्नि, आकाश का जो जनक है, मानव ने उसे भुला दिया और दिशा विहीन सा आज भटक रहा है। मानव ने केवल अपने सुख-सुविधा को महत्व दिया। केवल शरीर को आराम देने के लिए बड़ी-बड़ी इमारतें बना कर रहने लगा। प्रकृति से दूर हो गया। कुछ दूर चलने के लिए भी वाहन का इस्तेमाल करने लगा, जो वायु प्रदूषण करते हैं। जल को दूषित किया। भोजन के लिए हज़ारों का जीवों का नाश किया। हिंसा को प्रश्रय देने वाला मानव आज स्वयं प्रकृति की विनाश लीला का सामना कर रहा है। मौसम की मार से बचने के लिए किए गए उपाय आज काम नहीं आ रहे हैं। कहीं जंगलों में आग लगी है, धरती का तापमान बढ़ता जा रहा है,  अतिवृष्टि, बाढ़, तूफ़ान और भूकम्प आज सामान्य घटना बनते जा रहे हैं। वैज्ञानिकों की दी चेतावनी आज सत्य सिद्ध हो रही है। मानव को चेतना होगा कि जीवन को बनाए रखने के लिए प्रकृति के साथ सामंजस्य बनकर जीना ही उसके लिए एक मात्र उपाय है । 


Sunday, September 4, 2022

शिक्षक का सम्मान करे जो

नदी पर्वत से निकलती है तो पतली धार की तरह होती है, मार्ग में अन्य जल धाराएँ उसमें मिलती जाती हैं और धीरे-धीरे वह वृहद रूप धर लेती है. अनेकों बाधाओं को पार करके सागर से जब उसका मिलन होता है, वह अपना नाम और रूप दोनों खोकर सागर ही हो जाती है. जहाँ से वह पुनः वाष्पित होगी और पर्वत पर हिम बनकर प्रवाहित होगी. जीवन भी ऐसा ही है, शिशु का मन जन्म के समय कोरी स्लेट की तरह होता है।पहले माता-पिता उसके शिक्षक बनकर फिर विद्यालय में  शिक्षक और गुरूजन उसके मन को गढ़ने में अपना योगदान देते हैं. अच्छे मार्गदर्शन को पाकर एक व्यक्ति जीवन में अपार सफलता प्राप्त करने में सक्षम हो पाता है। एक शिक्षक का अंत:करण अनेक विचारों, मान्यताओं व धारणाओं को  अपने भीतर समेटे होता है. वह शिष्यों की योग्यता का अनुमान लगाकर उन्हने उनकी क्षमता के अनुसार आगे बढ़ने का अवसर देता है। वह स्वयं भी जीवन भर सीखता रहता है और सदा उत्साहित बना रहता है।  ऐसा तभी सम्भव है जब मन भी नदी की भांति निरंतर बहता रहे, किसी पोखरी की भांति उसका जल स्थिर न हो जाये. ऐसा मन जब ज्ञान के अपार सागर में खोकर  अहंकार को विलीन कर दे तभी महान शिष्यों का निर्माण कर सकता है।  


Friday, September 2, 2022

चाह ज्ञान की जगे निरंतर

जीवन अनुभवों का दूसरा नाम है। हर अनुभव हमें कुछ न कुछ सिखाता है। यदि हम सीखने को सदा जारी रखें तो जीवन एक सुंदर यात्रा बन जाता है। यदि कोई कुछ सीखना न चाहे तो उसके लिए जीवन एक संघर्ष बन जाएगा। बच्चा सीखता है, इसलिए उसका मन ताज़ा बना रहता है। विद्यार्थी सीखता है और नए-नए विषयों को जानकर चमत्कृत होता है। प्रौढ़ होते-होते जैसे-जैसे सीखने की चाहत कम होती जाती है और तब सीमित ज्ञान के सहारे जीवन को चलाए जाने में  सुरक्षा महसूस होती है। धीरे-धीरे जीवन से रस और आनंद सूखने लगता है। यह दुनिया अति विशाल है, इसके बारे में हम कितना कम जानते हैं। अपनी रुचि के अनुसार ज्ञान का कोई भी क्षेत्र लेकर हम उसके बारे में पढ़ें, सोचें व मनन करें तो कई नई बातों की ओर हमारा ध्यान अनायास ही जाएगा। कई ऐसी बातें हमें नज़र आ सकती हैं जो पहले नज़र अन्दाज़ कर देते थे।  नियमित ध्यान इसमें अति सहायक है। ध्यान हमें एक विषय पर केंद्रित रहने की कला सिखाता है। ज्ञान अनंत है और हमारी चेतना में ही निहित है। उसमें प्रवेश करने का तरीक़ा ध्यान, अध्ययन व मनन ही हो सकता है।