जीवन में किसी भी कर्म को करने का निर्णय लेने से पहले हमें यह ध्यान रखना होगा कि क्या इस कर्म का परिणाम हमें केवल अल्पकालीन आनंद देगा । यदि थोड़े से सुख के लिए हम भविष्य के लिए दुःख का इंतज़ाम कर रहे हैं तो ऐसा कर्म किसी भी तरह करणीय नहीं है। यदि किसी कर्म से हमें थोड़ा कष्ट भी उठाना पड़े किंतु उसका परिणाम बाद में अच्छा हो तो वह कर्म अवश्य करना चाहिए। सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए जीवन को स्वीकार भाव से जीना हमें सफलता के मार्ग पर ले जाता है।एक बार जब हम किसी भी लक्ष्य को तय कर लें अथवा किसी कार्य के प्रति प्रतिबद्ध हों तो उसे प्राप्त किए बिना छोड़ना नहीं चाहिए। जीवन का मार्ग अपने उत्तरदायित्वों पर आधारित हो न कि भावनाओं पर, जो सदा बदलती रहती हैं। उत्तरदायित्व के प्रति निष्ठा से आत्मिक शक्ति प्रकट होती है। भावनाओं से मुक्ति मन को स्वतंत्रता का आभास कराती है। जीवन अनिश्चितताओं से भरा है। यहाँ सदा उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इनके मध्य भी जो सदा आनंदित व उत्साहित रहना सीख ले वही सफल कहा जाता है।
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