Thursday, July 28, 2016

कर्म में ही आनंद छिपा है

२८ जुलाई २०१६ 
हम जिस समय जो भी कार्य कर रहे होते हैं उस समय उसका कोई मूल्य हमारी नजर में नहीं होता, बल्कि भविष्य में जो कुछ उस कर्म से मिलेगा उसे ही मूल्य देते हैं. जैसे कोई नौकरी कर रहा है तो महीने के अंत में मिलने वाले धन में उसका मूल्य देखता है, फिर जब धन मिलता है तो उसका मूल्य भी उन वस्तुओं में देखता है जो उससे खरीदी जाएँगी, और वस्तुओं का मूल्य तब होगा, जब वह मिलने वाले को प्रसन्न करेंगी, और इस तरह हम एक चक्र में घूमते रहते हैं. जीवन हमें अर्थहीन लगने लगता है, यदि हर पल ऐसा हो कि जो भी हम कर रहे हों अपने आप में ही मूल्यवान हो, तो जीवन उत्सव बन जाता है. 

Tuesday, July 26, 2016

सजगता ही ध्यान है

जुलाई २०१६ 
एक बार एक व्यक्ति एक संत के पास गया अपने जीवन की परेशानियाँ कहीं और उनसे शांति का मार्ग पूछा. संत ने कहा,  ध्यान ! उस व्यक्ति ने कहा एक शब्द में आपने मेरे इतने सारे सवालों का जवाब दे दिया, कुछ और कहें, संत ने दो बार कहा, ध्यान, ध्यान. पुनः उस व्यक्ति ने कहा, विस्तार से कहें. संत ने तीन बार कहा, ध्यान, ध्यान, ध्यान. ध्यान से ही सजगता आती है. असजगता ही दुःख है और सजगता ही सुख है.

Wednesday, July 20, 2016

मन हुआ जब सहज संतोषी

२१ जुलाई २०१६ 
हमें अपनी प्राथमिकताओं को समझना होगा. जीवन में हम क्या चाहते हैं, क्या सुख-सुविधा जुटाना ही हमारा एकमात्र लक्ष्य है. स्वयं को स्वस्थ व सुरक्षित बनाये रखने में ही क्या हमारी सारी ऊर्जा व्यय होती है. इन सबको प्राप्त करते हुए क्या भीतर तनाव भी होता है. यदि हाँ, तो हम जो चाहते हैं हमारे कर्म उसके विपरीत हैं, वे हमें अपने लक्ष्य से दूर ही ले जायेंगे. जीवन स्वयं में आनन्द है, जीवन मात्र ही अनंत सुख का स्रोत है, क्या इसका अनुभव होने पर कोई अभाव रहेगा. संतोष तब सहज स्वभाव बन जायेगा और स्वास्थ्य तब प्राप्त करना नहीं होगा, हम स्व में ही स्थित रहेंगे.  

Tuesday, July 19, 2016

बिन गुरू ज्ञान न होए

१९ जुलाई २०१६ 
सद्गुरु कहते हैं जीवन गुरूतत्व से सदा ही घिरा है. गुरु ज्ञान का ही दूसरा नाम है. अपने जीवन पर प्रकाश डालकर हमें ज्ञान का सम्मान करना है, अर्थात सही-गलत का भेद जानकर जीवन में आने वाले दुखों से सीखकर ज्ञान को धारण करना है, ताकि पुनः वे दुःख न झेलने पड़ें. मन ही माया को रचता है और अपने बनाये हुए लेंस से दुनिया को देखता है. साधक वह है जो कोई आग्रह नहीं रखता न ही प्रदर्शन करता है. देने वाला दिए जा रहा है, झोली भरती ही जाती है. हमें वाणी का वरदान भी मिला है और मेधा भी बांटी है उसने. यदि उसे सेवा में लगायें जीवन तब सार्थक होता जाता है. भक्ति और कृतज्ञता के भाव पुष्प जब भीतर खिलते हैं, मन चन्द्रमा सा खिल जाता है, गुरु पूर्णिमा तब मनती है. 

Friday, July 15, 2016

टिक जाएँ निज स्वभाव में


सतयुग में कोई ध्यान नहीं करता क्योंकि कोई मानसिक रूप से बेचैन नहीं होता। कोई ईश्वर की पूजा नहीं करता क्योंकि किसी को कोई भी अभाव नहीं होता।  ज्ञान की साधना नहीं होती क्योंकि कोई अज्ञानी नहीं होता। कोई संत नहीं होता क्योंकि कोई असंत नहीं होता। आज समाज में जितना ज्ञान बढ़ रहा है उतना ही पाखंड  भी बढ़ रहा है. जितना लोग होशियार हो रहे हैं उतने ही चालाक भी हो रहे हैं. इसका अर्थ हुआ जब तक कोई द्व्न्द्वों के पार नहीं चला जाता तब तक उनसे मुक्त नहीं हो सकता। अच्छे बने रहने का आग्रह बुरे से पीछा छुड़ाने देता।  मन के पार आत्मा में स्थित रहकर ही  कोई दोनों के पार जा सकता है. स्वभाव में टिकना आ जाये तो ही सुख-दुःख दोनों से मुक्त हुआ जा सकता है.

Monday, July 11, 2016

दूर हटेगी जब हर बाधा

११ जुलाई २०१६ 
परमात्मा और हमारे बीच मल, विक्षेप व आवरण तीन बाधाएँ हैं. संचित पाप तथा देह के विकार ही मल हैं, मन की चंचलता व दुर्गुण ही विक्षेप है तथा मोह व अज्ञान का आवरण है. ये सभी दूर हो जाएँ तो परमात्मा हमारे सम्मुख ही है. हमारी प्राणशक्ति जितनी अधिक होगी भीतर उत्साह रहेगा, समाधान रहेगा, प्राणशक्ति घटते ही रोग भी घेर लेते हैं तथा मन भी संदेहों से भर जाता है. देह में हल्कापन लगे तो प्राणशक्ति अधिक है, भारीपन लगे तो शक्ति कम है.  

Thursday, July 7, 2016

भक्ति करे कोई सूरमा

७ जुलाई २०१६  
तेरी बज्म तक तो आऊँ, जो यह आना रास आए
यह सुना है जो भी लौटे, वे उदास आए !


गुरु की दृष्टि, उसकी वाणी, उसका स्पर्श और उसका चिन्तन भी साधक के भीतर जागृति ले आता है. तब एक भिन्न तरह की उदासी उसे घेर लेती है, जो अब इस दुनिया में उसे चैन नहीं लेने देती. वह भी प्रेम के पंख लगाकर अनंत गगन में उड़ान भरना चाहता है. भक्ति मार्ग सहज भी है और कठिन भी. ‘प्यार सभी का काम नहीं, आंसू सबका आम नहीं’ ! सद्गुरु की उदारता ही परमात्मा की कृपा करवाती है, साधक की पात्रता नहीं.