अप्रैल २००९
जिसने एक को
अपना बना लिया है, जिसके लिए यह सारा जगत अपना हो गया है, वह भक्त है. प्रेम और
भरोसे के मिश्रण से भावना बनती है और जहाँ यह भावना टिक जाती है, वही भक्त है.
परमात्मा पर भरोसा और परमात्मा से प्रेम हो और निंदा में जिसकी रूचि न हो, वह भक्त
है. बात को घटाकर बोलना निंदा है, बढ़ाकर बोलना खुशामद है. हम ज्यादातर अधूरा सत्य
बोलते हैं, या तो घटाकर या बढ़ाकर. हम दूसरों की निंदा सुनकर और अपनी प्रशंसा सुनकर
खुश होते हैं, जो अपनी निंदा सुनकर और दूसरों की प्रशंसा सुनकर खुश हो वही भक्त
है. निंदा सदा अपने से ज्यादा आगे रहने वाले की होती है. निंदा सुनके यदि कोई दुखी
हो तो स्पष्ट है की उसमें यह बुराइयाँ थीं, वरना दुखी होने का कोई भी तो कारण नहीं
है. बुरे को बुरा कहना निंदा नहीं है, अच्छे को बुरा कहना निंदा है. निंदक को पाकर
भक्त कहता है यह हमारे मैले कपड़े धोता है, मन की चादर को रसना से धोता है.