मार्च २००९
ध्यान बाहर की
तरफ जाये तो केंद्र अहंकार है, ध्यान भीतर जाये तो केंद्र निरंकार है. बाहर जाना
सरल है, भीतर जाना कठिन है. देह की मृत्यु अहंकार की मृत्यु नहीं है. अहंकार कानून
की पकड़ में नहीं आता, केवल चेतना की पकड़ में आता है. हम जो भी करते हैं, सोचते
हैं, आत्मा सब जानती है. वह हमारे सब कर्मों की साक्षी है. साधना का ताप ही अहंकार
को जलाता है. शरीर चिता पर रखकर जलाया जाये उसके पूर्व ही योग की अग्नि में अपने
संस्कारों को जलाया जा सकता है. जन्म जन्मान्तरों के पाप ब्रह्म अग्नि में जल जाते
हैं.
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