श्री श्री कहते हैं, चंड-मुंड, मधु-कैटभ, शुंभ-निशुंभ तथा रक्त बीज आदि सभी असुर हमारे भीतर हैं. हृदय और मस्तिष्क ही चंड-मुंड बन जाते हैं, यदि ह्रदय अति भावुक है और मस्तिष्क अति बौद्धिक है।ऐसी स्थिति में दोनों असुर की भाँति हमें दुख में पहुँचाते हैं। भावुकता और बौद्धिकता का संतुलित मेल ही हमारे जीवन को सुंदर बनाता है. मन में क्षण-क्षण जन्मने वाले राग-द्वेष ही मधु-कैटभ हैं और उनसे मुक्ति तब तक नहीं मिल सकती जब तक हमारी चेतना प्रेम में विश्राम न पा ले. जन्मों-जन्मों के संस्कार जो रक्त-बीज के रूप में हमारे भीतर पड़े हैं, उनसे भी तभी मुक्त हुआ जा सकता है जब दैवी शक्ति भीतर जागे, हमारी सुप्त चेतना मुक्त हो. अभी तो तन, मन व चेतना तीनों एक-दूसरे से चिपके हुए हैं, एक को पीड़ा हो तो दूसरा उसे अपनी पीड़ा मान लेता है, एक को हर्ष हो तो दूसरा उसे अपना हर्ष मान लेता है और होता यह है कि जगत में रहते हुए तन या मन को तो सुख-दुःख का अनुभव होता ही है, तो हर वक्त बेचारी चेतना कभी परेशान कभी दुखी या ख़ुशी में फूली हुई रहती है, उसे कभी मन के साथ अतीत में जाकर पछताना पड़ता है तो कभी भविष्य में जाकर आशंकित होना पड़ता है, वह कभी चैन से रह ही नहीं पाती, नींद में भी मन उसे स्वप्न की झूठी दुनिया में ले जाता है. उसकी मुक्ति ही हर साधना का लक्ष्य है।
Monday, December 18, 2023
Thursday, December 14, 2023
मेरी डोरी तेरे हाथ
जब हमारी बागडोर परमात्मा के हाथों में आ जाती है तो हम निश्चिंत हो जाते हैं। वह हमें अनेक रास्तों से ले जाता हुआ लक्ष्य तक ले जायेगा, ऐसा विश्वास दृढ़ होने लगता है। यदि हमें किसी के घर जाना है तो उसका पता उससे ही तो पूछेंगे। परमात्मा से मिलना हो तो उसे ही अपने घर का मार्ग बताने देना होगा। बस, पूर्ण भरोसा करना होगा, वह स्वयं ही मार्ग पर ले आएगा। जीवन में ऐसी परिस्थितियों का निर्माण होगा कि सब कुछ एक दिन स्पष्ट हो जाएगा। जब पहाड़ की चोटी पर चढ़ना हो तो मार्ग में उतार-चढ़ाव तो आते ही ही हैं। जो सर्वोच्च है, वहाँ जाने का मार्ग भी सीधा नहीं हो सकता। घुमावदार, उतराई-चढ़ाई वाला मार्ग ही होगा, पर उस पर कोई दृढ़ता से चलता चले तो एक दिन स्वयं को उसके निकट पाएगा। शास्त्र और गुरु के रूप में वह हमारे पास मार्गदर्शक भी भेजता है, जो पल-पल इस पथ पर साधक की सहायता करते हैं।
Sunday, November 26, 2023
जिस पल में मन मुक्त हुआ
संत कहते हैं और यह हमारा अनुभव भी है कि ज्ञान मन को मुक्त कर देता है. जब तक हमें किसी बात की पूरी जानकारी नहीं है, मन में संशय बने रहते हैं, पर ज्ञान होते ही मन ठहर जाता है। ठहरे हुए मन में अपने आप ही आनंद का अनुभव होता है, क्योंकि मन का मूल अथवा आत्मा आनंदस्वरूप ही है। आत्मा का ज्ञान पाकर ही बुद्धि भी वास्तव में बुद्धि कहलाने की अधिकारिणी है. उसके पहले मन तो अज्ञान के पाश में बंधा होता है, बुद्धि भी एक अधीनता का जीवन जीती है. बुद्धि मन की आधीन, इन्द्रियों की आधीन, धन, प्रसिद्धि, प्रशंसा की आधीन, मोह, क्रोध, अहंकार की आधीन होती है। इसके अतिरिक्त अवचेतन मन की सुप्त प्रवृत्तियों की अधीनता भी उसे स्वीकारनी पड़ती है. किन्तु आत्मा का ज्ञान होने के बाद जैसे कोई परदा उठ जाता है. मन, बुद्धि स्वयं को हल्का महसूस करते हैं.
Wednesday, September 20, 2023
गुरु बिन ज्ञान कहाँ से पाएँ
गुरु व ज्ञान पर्यायवाची शब्द हैं, यदि ऐसा कहें अतिशयोक्ति नहीं होगी। गुरु का हर शब्द गहरे चिंतन-मनन के बाद हुए दर्शन से प्रकटता है। वह जीवन की गुत्थियों को पल में हल कर देता है। चीजें उनके आगे अपने गुहतम स्वरूप में प्रकट होती हैं। शास्त्र उनके ही वचनों से बने हैं। वे ईश्वर के प्रतिनिधि हैं। ईश्वर ने हमें सिरजा है, वह इस जगत का आधार है, वह नहीं चाहता कि आनंद स्वरूप बनाने के बाद मानसिक दुख की हल्की सी रेखा भी हमें छू जाये। वह भीतर से हमें प्रेरित करता है और गुरुज्ञान का अधिकारी बनाता है। मानव को जब अपने अंतर में प्रकाश का अनुभव होता है तो उसे जगत ढक न ले, इसकी व्यवस्था गुरु सिखाता है। नियमित साधना, श्रवण तथा मनन का अभ्यास ही समरसता को बनाये रखने में सहायक है।
Tuesday, September 5, 2023
कृष्ण जन्माष्टमी पर हार्दिक शुभकामनाएँ
शिक्षक दिवस पर शुभकामनाएँ
सृष्टि में ज्ञान के आदान-प्रदान का क्रम आदि काल से चला आ रहा है।सर्वप्रथम आदिगुरु शिव ने ऋषियों को जगत का ज्ञान दिया था। इसके बाद ब्रह्मा ने प्रजापति को ज्ञान दिया जिसके द्वारा मनुष्यों के सुखद जीवन के लिए नियम आदि बनाये गये। जब बच्चा जन्म लेता है, उसे कुछ भी बोध नहीं होता, माँ उसकी पहली गुरु होती है। इसके बाद विद्यालय में वह जीवन के लिए आवश्यक ज्ञान प्राप्त करता है। शिक्षक और विद्यार्थियों के मध्य जो संबंध है, उसकी मिसाल किसी से नहीं दी जा सकती। यह रिश्ता बहुत अनोखा है जिसमें दोनों तरफ़ से निःस्वार्थ प्रेम की एक धारा बहती है। एक शिक्षक अपने जीवन में अनेक विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं, पर उनका उत्साह और प्रेम कभी चुकता नहीं।वे सदा-सर्वदा उनका हित चाहते हैं। विद्यार्थी उन्हें अपना आदर्श मानते हैं, उनकी वाणी पर अटूट विश्वास करते हैं। उनका स्नेह भरा मार्गदर्शन जीवन भर साथ रहता है। शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो जिसे अपने प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों का नाम याद नहीं है। आज उन सभी शिक्षकों को प्रणाम करने का दिन है, जिनसे कभी न कभी हमने शिक्षा ग्रहण की है।
Wednesday, August 23, 2023
पुरुषार्थ का करे जो साधन
भारतीय प्राचीन शास्त्रों के अनुसार मानव के चार पुरुषार्थ हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष। चारों की प्राप्ति के लिए किए गये प्रयत्न हमें परमात्मा की ओर ले जाते हैं। भगवान कृष्ण ने गीता में ज्ञान को भगवद प्राप्ति का एक मार्ग बताया है। धर्म का पालन करते हुए ही मानव अंततः ज्ञान का अधिकारी बनता है।परमात्मा आनंद स्वरूप है और ज्ञान से बढ़कर आनंद का प्रदाता और कौन हो सकता है। ज्ञान चाहे जगत के रहस्यों का हो या मन की गहराई में छिपे अपने स्वरूप का हो, दोनों ही मन को प्रेम और शांति से भर देते हैं। दूसरा पुरुषार्थ है अर्थ, जिसकी प्राप्ति श्रम पूर्वक कर्म करने से होती है। यह कर्मयोग का मार्ग बन सकता है। यदि मानव धर्म पूर्वक अर्थ का उपार्जन करे तो समाज-संसार में अन्यों के लिए व अपने लिए भी वह आनंद प्राप्ति का कारण बन सकता है। बड़े-बड़े धनपति हों या कोई भी व्यक्ति जो अपने भीतर जिस विशालता का अनुभव करते हैं, और अपने धन का उपयोग समाज की भलाई के लिए करते हैं, वह उन्हें परम की निकटता अनुभव कराता है। उन्हें लगता है सारा संसार ही उनका अपना हो गया है। तीसरे पुरुषार्थ काम का मार्ग भक्ति का मार्ग है। यहाँ साधक प्रकृति के सृष्टि चक्र में सहायता करने हेतु गृहस्थ धर्म का पालन करते हुए सात्विक उपायों से धन का उपार्जन करता है।एक ऐसा घर जहां सन्तान वात्सलय, प्रेम, स्नेह, आदर सभी का अनुभव करते हुए बड़ी होती है, भक्ति के पथ पर अपने आप ही पहुँच जाती है।अपने व दूसरों के हित के लिए की गई कामनाओं की पूर्ति आनंद प्रदान करती है, और परमात्मा आनंद स्वरूप है। कोई भी व्यक्ति अंतिम साधन मोक्ष तक तभी पहुँचता है जब पहले के तीनों का अनुभव कर चुका हो।जीवन में रहते हुए भी कमलवत् साक्षी भाव में रहना ही जीते जी मोक्ष प्राप्त करना है। यह आनंद की सहज अवस्था है।
Wednesday, August 9, 2023
जीवन पग-पग पर सिखलाये
जीवन एक पाठशाला ही तो है, जहां हर कदम पर हमें सीखना होता है। किसी की उम्र चाहे कितनी हो, वह बालक हो या वृद्ध, सीखने की यह प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है। कोई भी यहाँ पूर्ण नहीं है, पूर्णता की ओर बढ़ रहा है। अहंकार का स्वभाव है वह स्वयं को पूर्ण मानता है, अत: व्यक्ति सीखना बंद कर देता है; और अपने को मिथ्या ही पूर्ण मानता है। ऐसे में उसके भीतर एक कटुता, कठोरता तथा दुख का जन्म होता है। सीखते रहने की प्रवृत्ति उसे बालसुलभ कोमलता प्रदान करती है। बच्चे जैसा लचीला स्वभाव हो तभी हम आनंद के राज्य में प्रवेश पा सकते हैं। प्रकृति या अस्तित्त्व हमें ऐसी परिस्थितियों में रखते हैं, जहां अहंकार को चोट पहुँचे। यदि दुख का अनुभव अब भी होता है, शिकायत का भाव बना हुआ है अहंकार का साम्राज्य बना हुआ है। स्वाभिमान जगा नहीं है। स्वाभिमान में व्यक्ति अपने प्रेमस्वरूप होने का अनुभव करता है। वहाँ कोई दूसरा है ही नहीं। कृतज्ञता की भावना से वह भरा रहता है। जो उसे कटु वचन कह रहा है मानो वह उसकी परीक्षा ले रहा है, मानो परमात्मा ने उसे वहाँ रखा हुआ है। जब मन कृतज्ञता से भरा हो तो उसमें कैसी पीड़ा ! हर श्वास जब परमात्मा की कृपा से मिली है तब जिस परिस्थिति में रखा जाये वह किसी बड़ी योजना का भाग है ऐसा मानना होगा। यह सृष्टि किसी विशाल आयोजन की तरह किसी शक्ति द्वारा चलायी जा रही है, यहाँ यदि हम स्वयं को जानकर उसमें परमात्मा के सहायक बनना चाहते हैं तो हमें विनम्र होना सीखना होगा, यह पहली सीढ़ी है।
Monday, July 31, 2023
आनंद की जब चाह जगे
जीवन यात्रा में चलते हुए मानव के सम्मुख लक्ष्य यदि स्पष्ट हो और सार्थक हो तो यात्रा सुगम हो जाती है। योग के साधक के लिए मन की समता प्राप्त करना सबसे बड़ा लक्ष्य हो सकता है और भक्त के लिए परमात्मा के साथ अभिन्नता अनुभव करना. कर्मयोगी अपने कर्मों से समाज को उन्नत व सुखी देखना चाहता है. मन की समता बनी रहे तो भीतर का आनंद सहज ही प्रकट होता है. परमात्मा तो सुख का सागर है ही, और निष्काम कर्मों के द्वारा कर्मयोगी कर्मों के बंधन से मुक्त हो जाता है, जिससे सुख का अनुभव होता है, अर्थात तीनों का अंतिम लक्ष्य तो एक ही है, वह है आनंद और शांति की प्राप्ति. सांसारिक व्यक्ति भी हर प्रयत्न सुख के लिए ही करते हैं, किन्तु दुःख से मुक्त नहीं हो पाते क्योंकि जगत का यह नियम है कि सुख-दुख यहाँ एक साथ मिलते हैं, अर्थात जो वस्तु आज सुख दे रही है, वही कल दुख देने वाली है। साधक, भक्त व कर्मयोगी तीनों को इस बात का ज्ञान हो जाता है, तभी वह साधना के पथ पर कदम रखते हैं; और सदा के लिए दुखों से मुक्त हो जाते हैं।
Tuesday, July 25, 2023
‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’
आदिगुरु शंकराचार्य उसी तरह कहते हैं, ‘ब्रह्म सत्यं जगत मिथ्या’. जैसे कोई कहे वस्त्र सत्य है उस पर पड़ी सिलवटें मिथ्या हैं, धागा सत्य है उस पर पड़ी गाँठ मिथ्या है अथवा तो सागर सत्य है, उसमें उठने वाली लहरें, झाग व बूंदें मिथ्या हैं। सिलवटें, गाठें, लहरें और बूंदें पहले नहीं थीं, बाद में भी नहीं रहेंगी, वस्त्र, धागा और सागर पहले भी थे और बाद में भी हैं. इसी तरह हम कह सकते हैं, मन सत्य है उसमें उठने वाले विचार, कल्पनाएँ, स्मृतियाँ मिथ्या हैं, जो पल भर पहले नहीं थीं और पल भर में ही खो जाने वाली हैं. विचार की उम्र कितनी अल्प होती है यह कोई कवि ही जानता है, एक क्षण पहले जो मन में जीवंत था, न लिखो तो ओस की बूंद की तरह ही खो जाता है. आनंदपूर्ण जीवन के लिए हमें सत्य को देखना है, इस बदलते रहने वाले संसार के पीछे छिपे सत्य परमात्मा को अपना अराध्य बनाना है.
Thursday, July 20, 2023
ढाई आखर प्रेम के
गंगा सागर से भी जुड़ी है और हिमालय से भी।दोनों छोरों पर वह स्थिर है और मध्य में गतिमान है। हिमालय में हिम के रूप में रूप बदल कर रहती है और सागर की गहराई में अदृश्य हो जाती है। सारी हलचल उसके कर्मक्षेत्र में है। गंगा की महानता उसके हिमालय से प्रवाहित होने के कारण भी है और सागर में मिलने के कारण भी। बहते समय वह अनेक छोटी जल धाराओं, नदियों को अपने में समा लेती है व कई पदार्थों के कारण दूषित होती है। इसी प्रकार आत्मा जन्म के पूर्व अव्यक्त है, मृत्यु के बाद भी उसका पता नहीं, केवल मध्य में जीवन दिखाई देता है। जैसे कोई जुगनू पल भर को चमके और बुझ जाये। इस छोटे से जीवन को यदि मानव प्रेम और ज्ञान से भर ले तो आनंद उसका नित्य सहचर बन सकता है। प्रेम से बढ़कर आनंद का कोई दूसरा स्रोत नहीं है। स्वयं का ज्ञान हुए बिना प्रेम संभव नहीं है। प्रेम ही सृष्टि के तत्त्वों को आपस में जोड़े हुए है। प्रेम ही एक व्यक्ति के ह्रदय को इतना विशाल बना देता है कि वह सारे विश्व को अपना मानने लगता है।
Wednesday, July 19, 2023
जाने क्या है राज अनोखा
Saturday, July 15, 2023
जब विवेक सधे जीवन में
हमारे जीवन की बागडोर हमने विवेक के हाथों में सौंपी है या मन के, इसकी खबर हमें तब मिलती है, जब जीवन में व्यर्थ के कष्ट आते हैं। दिनचर्या यदि सुव्यवस्थित नहीं रखी, अनुशासन का पालन नहीं किया, स्वाद के वशीभूत होकर अखाद्य पदार्थों का सेवन किया। रात्रि को देर तक जागरण किया। समय को व्यर्थ गँवाया। अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं किया। अपनी ख़ुशी के लिए संसार से उम्मीदें रखीं, जो पूरी नहीं हुईं तो उसका अफ़सोस किया। ये सब बातें विवेक के विपरीत हैं। हम अपने आप को भूले न रहें। देह, मन, बुद्धि आदि की सेवा में ही न लगे रहें, बल्कि ऐसा विवेक जगायें जो आत्मा के सानिध्य में ले जाये। विवेक का अर्थ है यह ज्ञान कि संसार उसी का नाम है जो निरंतर बदल रहा है। जो नित्य-अनित्य, सांत-अनंत में भेद करना सिखाये वही विवेक है।नित्य और अनंत के साथ एकत्व का अनुभव किए बिना कोई मुक्त नहीं हो सकता।
Tuesday, July 11, 2023
सत्यं शिवं सुंदरं
जीवन का हर पक्ष सुंदर हो, साधक को सदा इस बात का बोध रहना चाहिए। सौंदर्य की परख भी प्रेम, शांति तथा आनंद की भाँति मन की गहराई में जाकर मिलती है। शुद्ध चैतन्य को 'सत्यं शिवं सुंदरं' कहा गया है, जिससे जुड़कर साधक को सूक्ष्म व अरूप सौंदर्य की झलक मिलती है। जो अपने भीतर गया है वही प्रकृति के भीतर छिपे उस अनाम सौंदर्य से जुड़ सकता है। वायु का स्पर्श, आकाश की अनंतता, अग्नि की लपटों का आकर्षक रूप, बहाते हुए जल का कलकल नाद, उसमें उठती हुई तरंगें, धरती पर पर्वत, घाटियाँ, जंगल, आदि उसे सौंदर्य की ख़ान के रूप में दिखायी देते हैं। इस असीम सुंदरता को संरक्षित व सुरक्षित रखने की भावना सहज ही भीतर जगती है। उन्हें प्रदूषित करने का विचार भी उसके मन में नहीं आ सकता। यदि नई पीढ़ी को बचपन से ही ध्यान सिखाया जाये तो वे इस गुण को सहज ही अपना लेंगे और अपने आस-पास एक सुंदर वातावरण का निर्माण करेंगे।
Thursday, July 6, 2023
तोरा मन दर्पण कहलाये
मन उसी का नाम है जो सदा डांवाडोल रहता है, तभी मन को पंछी भी कहते हैं हिरन भी और वानर भी..आत्मा रूपी वृक्ष के आश्रय में बैठकर टिकना यदि इसे आ जाये तो इसमें भी स्थिरता आने लगती है, वास्तव में वह स्थिरता होती आत्मा की है प्रतीत होती है मन में, जैसे सारी हलचल होती बाहर की है प्रतीत होती है मन में।मन तो दर्पण ही है जैसा उसके आस-पास होता है झलक जाता है. संगीत की लहरियों में डूबकर यह मस्त हो जाता है और किसी उपन्यास के भावुक दृश्य में भावुक।ऐसे मन का चाहे वह अपना हो या अन्यों का क्या रूठना और क्या मनाना।क्यों न हर सुबह मन को समझते हुए प्रवेश करें ताकि न किसी से मनमुटाव हो और न किसी का मन टूटे. आत्मा रूपी वृक्ष पर कुसुम की तरह खिला रहे सबका मन.
Tuesday, July 4, 2023
मर्म गुरु का जाना जिसने
जब किसी के जीवन में गुरु का पदार्पण होने वाला होता है, उसके पूर्व उसके मन में ईश्वर के प्रति प्रेम जागृत होता है। वह ईश्वर से प्रार्थना करता है कि उसे कोई पथ प्रदर्शक भेज दे। वह मार्ग ढूँढ रहा होता है पर उसे मार्ग दर्शक नहीं मिलता। तब अस्तित्त्व या परमेश्वर ही गुरु को भेजते हैं। गुरु, आत्मा और ईश्वर एक ही हैं। जब पुकार आत्मा की गहराई से उठती है, अंतर्यामी परमात्मा उसे सुन लेता है और उससे एक हुए गुरु तक वह पहुँच जाती है। दिल की गहराई से की गई कोई प्रार्थना व्यर्थ नहीं जाती, वह अवश्य फलीभूत होती है। हमारी प्यास यदि सच्ची है तो जल वहीं छलक जाता है।जीवन में जैसे उजाला हो जाता है, गुरु का अर्थ ही है जो अंधकार को दूर करे और प्रकाश फैलाए। कोई एक सदगुरु करोड़ों लोगों के जीवन में ज्ञान का प्रकाश फैला सकते हैं । वह आत्मा की गहराई में वैसे ही जुड़े हैं जैसे परमात्मा सर्वव्याप्त है। वह भी अंतर्यामी हैं, उनके मन व बुद्धि गंगाजल की तरह पवित्र और कैलास स्थित मानसरोवर के हंस के समान नीर-क्षीर विवेकी हैं। वह शुद्धता की कसौटी पर सच्चे मोती की तरह हैं, वह निसंग, निर्द्वंद, निरंजन हैं। वह निरन्तर समाधि का अनुभव करते हैं। वह उस तत्व से जुड़े हैं जो अविनाशी, अजर, अमर है, वह उस ज्ञान की पराकाष्ठा हैं जो हृदय को आनंद व प्रेम से भर देता है।
Sunday, July 2, 2023
गुरु ज्ञान जीवन में आये
Thursday, June 29, 2023
जीवन में जब आये योग
शास्त्रों के अनुसार हमार शरीर एक रथ है अथवा तो एक वाहन है। आत्मा इसमें यात्री है, बुद्धि सारथि अथवा वाहन चालक है। मन लगाम या स्टीयरिंग है। इंद्रियाँ घोड़े अथवा पहिये हैं। सामान्य तौर पर यात्री को जहां जाना है वह सारथी से कहता है और अपने गंतव्य पर पहुँच जाता है। किंतु इस आत्मा रूपी सवार को अपना ही बोध नहीं है, इसलिए उसे कहाँ जाना है इसका बोध कैसे रहेगा।चालक का भी लगाम पर नियंत्रण नहीं है, घोड़े भी मनमानी करते हैं। कोई उत्तर जाना चाहता है, जहां से सुंदर ध्वनियाँ आ रही हैं, कोई दक्षिण, जहां से सुंदर गंध आ रही है। इंद्रियाँ ऐसे ही मन को भटकाती हैं, बुद्धि मन के पीछे लगी है। आत्मा कहीं भी पहुँच नहीं पाती, हिचकोले खाती, उन्हीं दायरों में घूमती रहती है। कभी दुर्घटना हो जाती है तो वह चौंक कर जागती है, वाहन को दुरस्त कराती है, योग का जीवन में प्रवेश होता है। सारथि को लगाम पकड़ना सिखाना ही मन का नियंत्रण करना है। सारथि रूपी बुद्धि का ज्ञान से योग होता है तो जीवन की गाड़ी सही मार्ग पर चलने लगती है। मार्ग में सुंदर प्रदेशों के दर्शन करते हुए वह अन्यों का भी सहयोग करती है। जीवन का एक नया अध्याय आरंभ होता है।
Tuesday, June 27, 2023
जिसने भेद स्वयं का जाना
संत व शास्त्र कहते हैं, विद्यामाया विशिष्ट चेतन के कारण ब्रह्म ईश्वर की उपाधि ग्रहण करता है और अविद्यामाया विशिष्ट चेतन के कारण ब्रह्म जीव की उपाधि ग्रहण करता है। जीव और ईश्वर का एकत्व उनके ब्रह्म होने में है और भेद विद्या और अविद्या के कारण है। ईश्वर माया का अधिपति है और जीव माया का सेवक है। ईश्वर योगमाया का उपयोग करके जगत का कल्याण करता है, जीव महामाया के वशीभूत होकर विकारों से ग्रस्त हो जाता है। ईश्वर सदा अपने चैतन्य स्वरूप को जानता है, जीव स्वयं को जड़ देह और मन आदि मान लेता है। जिस क्षण जीव को अपने ब्रह्म होने का भान हो जाता है, वह ईश्वर से जुड़ जाता है।
Sunday, June 25, 2023
जब स्वीकार जगे अंतर में
यह जगत ईश्वर का ही साकार स्वरूप है। जड़-चेतन सबका आधार एक ब्रह्म है। एक ही ऊर्जा भिन्न-भिन्न रूपों में अभिव्यक्त हो रही है। जीव और ब्रह्म में मूलतः भेद नहीं है, सारे भेद ऊपर के हैं। अंत:करण में चैतन्य का आभास होने से बुद्धि स्वयं को चेतन मानने लगती है, और मिथ्या अहंकार का जन्म होता है।अहंकार हरेक को पृथकत्व का बोध कराता है, यह अलगाव ही जगत में दुख का कारण है। जो व्यर्थ तुलना और स्पृहा के कारण व्यथित हो जाये, जो नाशवान वस्तुओं के कारण स्वयं को गर्वित अनुभव करे, उस अहंकार का भोजन दुख ही है। मन, बुद्धि आदि जड़ होने के कारण स्वतंत्र नहीं है, प्रकृति के गुणों के अधीन हैं।जैसे कोई खिलौना स्वयं को गतिशील देखकर चेतन मान ले ऐसे ही चिदाभास या प्रतिबिंबित चेतना स्वयं को कर्ता मान लेती है। मानव सदा एकरस, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त चैतन्य आत्मा है।वह पूर्ण है, प्रेमस्वरूप है, आनंद उसका स्वभाव है। प्रेम तथा आनंद को व्यक्त करना दैवीय गुण हैं। आत्मा में रहना सदा स्वीकार भाव में होने का नाम है।
Monday, June 19, 2023
चले योग की राह पर जो भी
आज के समय में लोग बाहर इतना उलझ गये हैं कि अपने भीतर जाने की राह नहीं मिलती। कहीं कोई प्रकाश का स्रोत मिल जाये तो वे उसके पास जमा हो जाना चाहते हैं। आश्रमों में भीड़ बढ़ती जा रही है। कथाओं, मंदिरों, सत्संगों में भी भीड़ ज्यादा है। जनसंख्या बढ़ती जा रही है यह कारण तो है ही, पर सामान्य जीवन में इतना दुख, इतनी अशांति है कि लोग कुछ और पाना चाहते हैं। संत कहते हैं, साधना करो, भीतर जाओ, अंतर्मुखी बनो, पर ऐसा कोई-कोई ही करते हैं। अधिकतर तो भगवान को भी बाहर ही पाना चाहते हैं। कोई प्रार्थना की विधि पूछते हैं तो कोई भगवान पर भी मानवीय गुणों को आरोपित कर उसे बात-बात पर क्रोध करने वाला बना देते हैं। कुछ रिश्तों के जाल में उलझ गये हैं। वे उससे बाहर नहीं निकल पाते, कोई जाति, धर्म, लिंग भेद में धंस गये हैं । स्त्री-पुरुष के मध्य समानता के नारे लगाये जाते हैं, पर स्त्रियों के प्रति होने वाले अपराधों की संख्या बढ़ती जा रही है।ऐसे में जब तक योग व अध्यात्म को जीवन का एक आवश्यक अंग बनाकर उसकी शिक्षा नहीं दी जाती, मानव जीवन में अशांति को दूर नहीं किया जा सकता।
Monday, June 12, 2023
सत्व बढ़ेगा जब जीवन में
सृष्टि का आधार सच्चिदानंद है, अर्थात् जो सदा है, ज्ञान स्वरूप है और आनंद से परिपूर्ण है। जड़-चेतन जो भी पदार्थ हमें दृष्टिगोचर होते हैं, वे रूप बदलते रहते हैं; किंतु उनका कभी नाश नहीं होता। यहाँ पदार्थ ऊर्जा में और ऊर्जा पदार्थ में निरन्तर बदल रही है।हम जो भोजन करते हैं उसका सूक्ष्म अंश ही मन बन जाता है, इसलिए सात्विक भोजन का इतना महत्व है। राजसिक भोजन मन को चंचल बनाता है और तामसिक भोजन प्रमाद से भर देता है। शरीर में आलस्य, भारीपन तथा बेवजह की थकान भी गरिष्ठ भोजन से होती है। इतना ही नहीं पाँचों इंद्रियों से हम जो भी ग्रहण करते हैं, मन पर उसका प्रभाव पड़ता है। यदि हम चाहते हैं कि मन सदा उत्साह से भरा हो, सहज हो तो इसे सत्व को धारण करना होगा और अंततः उसके भी पार जाकर अनंत में विलीन होना होगा। मन जब स्वयं को समर्पित कर देता है तो भीतर शुद्ध अहंकार का जन्म होता है, जो सदा ही पावन है।
Tuesday, June 6, 2023
जिस पल भी मन ठहरेगा
जीवन परम विश्रांति का साधन बन सकता है, यदि कोई अंतर्मुखी होकर अपने भीतर झांके। तीव्र गति से भागते हुए दरिया से मन को आहिस्ता-आहिस्ता बांध लगाये, फिर थिर पानी में स्वयं की गहराई का अनुभव करे। उस शांत ठहरे हुए मन की गहराई में पहली बार ख़ुद की झलक मिलती है। कोमल, स्निग्ध, शांति का अनुभव होता है। वह कितनी भी क्षणिक क्यों न हो, उसकी स्मृति सदा के लिए मन पर अंकित हो जाती है; फिर कभी ऊहापोह में फँसा मन उसी की याद करता है, उसे लगन लग जाती है। भक्ति का जन्म होता है। उसके प्रति आकर्षण कम नहीं होता, बढ़ता ही जाता है। इसमें चाहे कितना ही समय लग जाये, वर्षों का अंतराल हो पर एक न एक दिन वह स्वयं को अस्तित्व से जुड़ा हुआ जानता है। यही समाधि का क्षण है।
Sunday, June 4, 2023
विश्व पर्यावरण दिवस पर शुभकामनाएँ
पर्यावरण शुद्ध रहे, यह सभी चाहते हैं। नदी, पहाड़, घाटी, पठार सभी स्वच्छ रहें तो उनमें बसने वाले जीव भी स्वस्थ होंगे। जल-वायु शुद्ध हों तो मानवों का स्वास्थ्य भी अच्छा होगा। किंतु यह सब तभी संभव है जब हम गंदगी के निस्तारण की सुव्यवस्था कर सकें। आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या कचरे के इस महासुर से धरा की रक्षा करना है। समुद्र की गहराई हो या अंतरिक्ष, धरती के सुदूर प्रदेश हों या नदियाँ, हर जगह इसके कारण प्रदूषण फैल रहा है। इसे रीसाइकिल करके पुन: उपयोग में लाने योग्य बनाने से समस्या काफ़ी हद तक हल हो सकती है।छोटे स्तर पर ही सही हम सभी अपने घर से ही इसकी शुरुआत कर सकते हैं। सर्वप्रथम सूखे कचरे व गीले कचरे को अलग-अलग रखना होगा। सब्ज़ियों के छिलकों से खाद बनायी जा सकती है। वस्तुतों को जल्दी-जल्दी न बदलें, उन्हें पूरी तरह इस्तेमाल करें। प्लास्टिक के थैलों का उपयोग बंद करें। अधिक से अधिक पेड़-पौधे लगायें।
हरा-भरा हो आलम सारा
हरियाली नयनों को भाती,
मेघा वहीं बरस जाते हैं
जहाँ पुकार धरा से आती !
मरुथल मरुथल पेड़ लगायें
हरे भरे वन जंगल पाएँ,
बादल पंछी मृग शावक सब
कुदरत देख-देख हर्षाये !
परायवर्ण हमारी थाती
रक्षा करें सभी मिलजुल कर,
जीवन वहीं फले-फूलेगा
जहाँ बहेंगे श्रम के सीकर !
Sunday, May 21, 2023
जीवन जब उपहार बनेगा
Saturday, April 22, 2023
कृतज्ञता का भाव जगे जब
भोर से रात तक धन्यवाद देने, कृतज्ञ होने के अनेक अवसर हमें प्राप्त होते हैं। उठते ही सबसे पहले एक और नये दिन में आँखें खोलने का अवसर देने के लिए अस्तित्त्व का आभार ! परिवार साथ है, सिर पर छत है, देश में शांति है, इसके लिए भी ईश्वर का आभार ! आहार के लिए किसानों व दुकानदारों का, आजीविका देने के लिए सरकार या उद्योग पतियों का कृतज्ञ होना भी ज़रूरी है। वर्तमान काल में सोशल मीडिया का, जिस पर अपनी बात रखी जा सकती है, औरों की सुनी जा सकती है। न्याय पालिका, शासन व्यवस्था, सेना, लेखकों, पत्रकारों आदि उन सभी का धन्यवाद किया जा सकता है, जो हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। रिश्तेदारों, मित्रों, जान-पहचान के लोगों और बच्चों के प्रति जब मन में कृतज्ञता का भाव बना रहे तो मन फूल सा हल्का रहता है। जहां धन्यवाद नहीं वहाँ शिकायत घेर लेती है । नकारात्मक भाव आते ही मन एक चक्र में फँस जाता है। तब यह भी याद नहीं रहता कि शिकायत किसके प्रति है। कृतज्ञता का भाव मन की गहराई से आता है, जो अनंत से जुड़ी है। शिकायत मन की ऊपरी सतह से आती है, जो हमें अस्त-व्यस्त कर देती है।
Thursday, April 20, 2023
सच की राह चले जो धीर
श्वास एक भी व्यर्थ न जाये, काम किसी के आये,
गुरु की वाणी है अनमोल, पग-पग राह दिखाए !
समय तब व्यर्थ जाता है जब हम दुनियादारी में फँसकर अपने सच्चे स्वरूप की स्मृति को भुला देते हैं।सही-ग़लत में भेद करना छोड़ देते हैं। समाज में चल रहे ग़लत रीति-रिवाजों को सही न मानते हुए भी उनमें अपना मूक समर्थन देते रहते हैं। किसी न किसी को खुश करने के लिए ऐसी बातें भी मान लेते हैं, जिनके प्रति हमारा ह्रदय गवाही नहीं देता। हम अन्याय का प्रतिकार नहीं करते, ताकि ऊपरी सुख-शांति बनी रहे, चाहे गहराई में असंतुष्टि बनी रहे। जीवन चाहता है हम प्रामाणिक बनें। सत्यवान हों, चाहे उसके लिए कितने ही विरोधों का सामना क्यों न करना पड़े।
Sunday, April 16, 2023
स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
Thursday, April 6, 2023
ज़िंदगी इक सफ़र है सुहाना
जीवन एक यात्रा है, इसका अर्थ हुआ कि इस यात्रा का कोई उद्देश्य भी होगा और कोई लक्ष्य भी अवश्य होगा। जैसे यदि हमें कश्मीर की यात्रा पर जाना है तो हमारा लक्ष्य है कश्मीर और उद्देश्य है कश्मीर की सुंदरता को देखकर आनंदित होना।यदि हमारे जीवन का उद्देश्य भी इस जगत की सुंदरता को देखकर आनंदित होना बन जाए तो लक्ष्य तो पहले से ही प्राप्त हो चुका है, अर्थात हम मानव जन्म लेकर इस धरती पर आ चुके हैं। अब जैसे कश्मीर की यात्रा में हमें सहयात्री भी मिलेंगे, जिनसे हम प्रसन्न होकर बात करेंगे; कुछ बाधाएँ भी आ सकती हैं, जिन्हें यात्रा में आने वाली छोटी-मोटी दिक़्क़त समझकर हम नज़र अंदाज़ कर देंगे। जीवन की इस यात्रा में भी हमें परिवार, मित्र, समाज के रूप में सहयात्री मिलते हैं। कभी कोई कष्ट भी सहने पड़ते हैं। इनके बावजूद यदि हम अपना उद्देश्य सदा याद रखें तो हर पल आनंद का अनुभव कर सकते हैं। कश्मीर की यात्रा से हमारे कारण कुछ लोगों का रोज़गार चलेगा और हमारा ज्ञान बढ़ेगा, सहनशक्ति बढ़ेगी और देश में विभिन्न राज्यों के लोगों में भाईचारा और आपसी विश्वास भी बढ़ेगा। ऐसे ही जीवन में हमारा अल्पकाल का वास दूसरों के लिए लाभ का कारण बने, समाज में प्रेम का संदेश फैले, और हमारा व्यवहार ऐसा हो कि आपसी विश्वास को ठेस न पहुँचे तो आनंद पाने का हमारा उद्देश्य सहज ही पूर्ण हो जाएगा।
Friday, March 31, 2023
प्रेम गली अति सांकरी
‘प्रेम गली अति सांकरी जामे दो न समाए’ जीवन में यदि द्वंद्व है तो दुःख रहेगा ही. द्वैत का शिकार होते ही मन द्वेष करता है, थोड़ी सी भी नकारात्मकता अथवा आग्रह उसे समता की स्थिति से डिगा देता है. भीतर जब एक समरसता की धारा बहेगी, तब शांति तथा आनन्द फूल की खुशबू की तरह अस्तित्व को समो लेंगे. आकाश से बहती जलधार जब धरा को सराबोर करती है तो उसका कण-कण भीग जाता है, इसी तरह भीतर जब समता का अमृत स्रोत खुल जाता है तो प्रेम व आनन्द की धारा बहती है. मन का ठहराव ही आत्मा की जागृति है. आत्मा में स्थित होकर जीने का ढंग यदि सध जाये तो कुछ अप्राप्य नहीं है। हमारा भीतर जब तक बिगड़ा है, बाहर भी बिगड़ा रहेगा. झुंझलाहट, अहंकार, कठोर वाणी, ये सारे अवगुण बाहर दिखाई देते हैं पर इनका स्रोत भीतर है, भीतर का रस सूख गया है, समता का पानी डालने से भक्ति की बेल हरी-भरी होगी फिर रसीले फल लगेंगे ही. संसार का चिन्तन अधिक होगा तो उसी के अनुपात में तीन ताप भी अधिक जलाएंगे. प्रभु का चिन्तन होगा तो माधुर्य, संतोष, ऐश्वर्य तथा आत्मिक सौन्दर्य रूपी फूल खिलेंगे. कितना सीधा-सीधा हिसाब है.
Thursday, March 23, 2023
कर्ता भाव से मुक्त हुआ जो
जब हम घटनाओं के साक्षी बन जाते हैं, तो मुक्ति का अहसास सहज ही होता है। हम सभी ने यह अनुभव किया है। कई बार हम क्रोध करना नहीं चाहते थे लेकिन किसी बात से क्रोधित हो गए और खुद पर आश्चर्य हुआ।यह क्रोध हमारे भीतर संस्कार रूप से मौजूद था और जब तक वह संस्कार बना रहेगा, हमारे न चाहने पर भी क्रोध आएगा। सुबह से रात्रि तक इस सृष्टि में सब कुछ हो रहा है।कोई उन्हें कर नहीं रहा है। कोई चित्रकार किसी दिन एक चित्र बना लेता है और कवि किसी दिन बहुत अच्छी कविता लिखता है। उनसे कोई पूछे, तो वे आश्चर्य करते हैं कि यह कैसे हुआ! उनके मन की गहराई में वे सब मौजूद है, जो उचित समय आने पर व्यक्त हो जाता है । जीवन ने हमें कदम-कदम पर सिखाया है कि यहाँ सब कुछ हो रहा है। हम कर्ता नहीं हैं। बड़े से बड़ा अपराधी भी कहता है, उसने अपराध नहीं किया, किसी क्षण में यह उससे हो गया। सबसे बड़ा आश्चर्य यह है कि मनुष्य अब भी इसे कैसे नहीं देख पाता कि वह कई कार्य स्वभाव वश ही करता है ! मनुष्य सोचता भर है कि वह स्वयं निर्णय लेकर रहा है। कोई कह सकता है कि यदि उसने प्रयास न किया होता तो उसके जीवन में वह सब न होता जो आज है। पर जीवन में हमें जहाँ जन्म मिला, जैसे परिस्थितियाँ मिलीं, उनमें हमारा क्या हाथ था, हमारे पास उस स्थिति में वही प्रयास करने के अलावा कोई अन्य विकल्प ही नहीं था। किन्हीं कारणों हमारा जीवन एक विशेष दिशा ले ले लेता है और उस दिशा में बहने लगता है।
Monday, March 20, 2023
नवरात्रि का हुआ आगमन
वर्ष में चार बार नवरात्रों का आगमन होता है लेकिन इनमें से चैत्र शुक्ल पक्ष एवं आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक आने वाले नवरात्रों का विशेष महत्व है। वासंतिक नवरात्र से ही भारतीय नववर्ष शुरू होता है। भारत में प्रचलित सभी काल गणनाओं के अनुसार सभी संवतों का प्रथम दिन भी चैत्र शुक्ल प्रथमा ही है।नवरात्रि में देवी के नौ रूपों की पूजा का विशेष महत्व है। यह पर्व शक्ति साधना का पर्व कहलाता है। देवी माँ के नौ रूप इस प्रकार हैं- शैल पुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्मांडा, स्कन्द माता, कात्यायनी, कालरात्री, महागौरी एवं सिद्ध दात्री। नवरात्रों में किये गये देवी पूजन, हवन, धूप-दीप आदि से घर का वातावरण पावन होता है और मन एक अपूर्व शक्ति एवं शुद्धि का अनुभव करता है।वैज्ञानिक दृष्टि से जिस समय नवरात्र आते हैं वह काल संक्रमण काल कहलाता है। शारदीय नवरात्र के अवसर पर जहाँ शीत ऋतु का आरम्भ होता है वहीं वासंतिक नवरात्र पर ग्रीष्म ऋतु शुरू होती है। दोनों ही समय वातावरण में विशेष परिवर्तन होता है। जिसमें अनेक प्रकार की बीमारियां होने की संभावना रहती है। ऐसे में हल्का भोजन लेने अथवा उपवास करने से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती है।
Sunday, March 19, 2023
हर अभाव से मुक्त हुआ जो
Friday, March 17, 2023
जीवन जब उत्सव बन जाए
पल भर की चूक से सड़क पर दुर्घटना घट जाती है। थोड़ी सी असावधानी हमें भारी पड़ सकती है।। हम जीवन को अपने लिए उपहार भी बना सकते हैं और बोझ भी। दो तरह के गीत सुनने को मिलते हैं, पहली तरह हैं, दुनिया में हम आए हैं तो जीना ही पड़ेगा, जीवन है अगर ज़हर तो पीना ही पड़ेगा ! और दूसरी तरफ़ उत्साह से भरा यह गीत, ज़िंदगी इक सफ़र है सुहाना ! या ज़िंदगी प्यार का गीत है, इसे हर दिल को गाना पड़ेगा ! हम जीवन के सफ़र को हल्का बना लें या बोझिल, यह चुनाव हमें ही करना है। योग इसी कला का नाम है। परमात्मा से हमारी पहचान हो जाए तो जैसे बड़े आदमी से पहचान होते ही आदमी निश्चिंत हो जाता है, हमें कोई भय नहीं रहता। हम संसार की दलदल में नहीं फँसते, सदा कमल की तरह जल के ऊपर तिरते रहते हैं।
Monday, March 13, 2023
सर्वम कृष्णाअर्पणम अस्तु
हम इस जगत को अपना मानकर रहेंगे तो इससे सुख-दुःख लेने-देने का व्यापार ख़त्म हो जाएगा; वरना यह लेन-देन अनंत काल तक चल सकता है। हर बार चाहे हमें कोई दुःख दे या हम किसी को कुछ कहें, पीड़ा एक ही चेतना को होती है। जैसे सारी पूजाएँ एक को ही समर्पित हो जाती हैं, वैसे ही सारी निंदाएँ भी अंतत:एक को ही पीड़ित करती हैं। वह एक हम स्वयं हैं। जगत जैसा है उसके लिए हम ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि वह हमारा ही विस्तार है , उसमें सुधार लाना, उसे सही करना उतना ही सहज होना चाहिए जैसे कोई अपने शरीर का कोई रोग दूर करने का प्रयास करता है या घर की मरम्मत करवाता है। यह जग हमारा बड़ा घर है और यहाँ के प्राणी हमारा बड़ा शरीर, जिसमें पशु-पक्षी, पौधे सभी आते हैं। यह सारा जगत हमारे भीतर ही है, आँखों व मन द्वारा हम सब कुछ अपने भीतर ही देखते हैं। कृष्ण के विश्वरूप का संभवतः यही अर्थ है।
Wednesday, March 8, 2023
द्वंद्वों के जो पार हो गया
जीवन में सत्य के प्रति निष्ठा जगे तभी हमारा जीवन स्फटिक की भाँति निर्मल होगा। हमारे वचनों, कृत्यों और भावों में समानता है तभी हम सत्य के अधिकारी बन सकते हैं। यदि कथनी व करनी में अंतर होगा तो हम अपनी ही दृष्टि में खड़े नहीं रह पाएँगे। यदि मन में प्रेम हो और वचनों में कठोरता तो जीवन एक संघर्ष बन जाता है। यदि मन में उदारता हो और व्यवहार में कृपणता हो तो भी हम सच्चे साधक नहीं कहला सकते। मन, बुद्धि व संस्कार जब एक ही तत्व से जुड़कर एक ही का आश्रय लेते हैं, तब जीवन में निष्ठा का जन्म होता है। श्रद्धा का अर्थ भी यही है कि भीतर द्वंद्व न रहे, हम जो सोचें वही कहें , जो कहें वही करें। जब भीतर एकत्व सध जाता है, तब बाहर भी व्यवहार अपने आप सहज होने लगता है। हम सत्य के पुजारी बनें, अद्वैत को अपने जीवन में उतारें, इसके लिए भीतर एकनिष्ठ होना बहुत ज़रूरी है।
Monday, March 6, 2023
होली के दिन दिल मिल जाते हैं
Wednesday, March 1, 2023
द्रष्टा में जो रहना सीखे
Saturday, February 25, 2023
ध्यान को जिसने साध लिया है
Tuesday, February 21, 2023
जीना यहाँ मरना यहाँ
उपनिषद कहते हैं सृष्टि पूर्ण है, पूर्ण ब्रह्म से उपजी है और उसके उपजने के बाद भी ब्रह्म पूर्ण ही शेष रहता है, सृष्टि ब्रह्म के लिए ही है. इस बात को यदि हम जीवन में देखें तो समझ सकते हैं मन पूर्ण है, पूर्ण आत्मा से उपजा है अर्थात विचार जहाँ से आते हैं वह स्रोत सदा पूर्ण ही रहता है, मन आत्मा के लिए है. विचार ही कर्म में परिणित होते हैं और कर्म का फल ही आत्मा के सुख-दुःख का कारण है. यदि आत्मा स्वयं में ही पूर्ण है तो उसे कर्मों से क्या लेना-देना, वह उसके लिए क्रीड़ा मात्र है. हम इस सत्य को जानते नहीं इसीलिए मात्र 'होने' से सन्तुष्ट न होकर दिन-रात कुछ न कुछ करने की फ़िक्र में रहते हैं. जहाँ हमें जाना है वहाँ हम पहुँचे ही हुए हैं. जैसे मछली सागर में है, पंछी हवा में है आत्मा परमात्मा में है. मछली को पता नहीं वह सागर में है, पंछी को ज्ञात नहीं वह पवन के बिना नहीं हो सकता, वैसे ही आत्मा को पता नहीं वह शांति के सागर में है. मीन और पंछी को इसे जानने की न जरूरत है न ही साधन हैं उनके पास पर मानव क्योंकि स्वयं को परमात्मा से दूर मान लेता है और उसके पास ज्ञान के साधन हैं, वह इस सत्य को जान सकता है. यही आध्यात्मिकता है, यही धार्मिकता है, यही साधना का लक्ष्य है. प्रतिपल जीवन यह याद दिलाता है, अनन्त ऊर्जा का एक स्रोत चारों और विद्यमान है. कितने ही लोग सूर्य ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं और कितने ही पवन ऊर्जा का. युगों से ये स्रोत मानव के पास थे पर उसे वह उपाय नहीं ज्ञात था जिसके द्वारा मानव इनका लाभ ले सकता था. इसी तरह ज्ञान, प्रेम, शांति, सुख की अनन्त ऊर्जा भी परमात्मा के रूप में हर स्थान पर विद्यमान है पर कोई जानकार ही उसका अनुभव कर पाता है.
Wednesday, February 15, 2023
शिव-पार्वती पुरातन प्रेमी
प्रेम एक वरदान की तरह जीवन में घटता है। वह अनमोल हीरे की तरह है, पर वक्त के साथ हर हीरे की चमक फीकी पड़ जाती है। दुनियादारी की धूल उस पर जमती जाती है। युवा धीरे-धीरे उस प्रेम को भुला ही बैठते हैं और कर्त्तव्य, ज़िम्मेदारी, जीविकोपार्जन, स्वार्थ, ज़रूरतें, संदेह और न जाने कौन से परत दर परत उस हीरे पर जमने लगती है। वे भूल ही जाते हैं कि प्रेम का दीपक कभी भीतर जगमगाता था, जब उनके दिल सदा रोशन रहते थे और वे ऊर्जा से भरे रहते थे। मीलों दूर रहकर भी वे एक-दूसरे की उपस्थिति को महसूस करते थे। जैसे भक्त भगवान को नहीं भूलता चाहे वे वैकुंठ में हों या कैलाश में ! प्रेम की वह आग धीरे-धीरे राख में बदल जाती है, पर कोई न कोई चिंगारी भीतर तब भी सुलगती है। अंतत: वह भी आग ही है, ज़रा सी हवा देने की देर है। हीरा, हीरा ही है, ज़रा चमकाने की देर है। हर पर्व इसी को याद दिलाने आता है। शिव-पार्वती का प्रेम अमर है। पार्वती बार-बार शिव के लिए जन्म लेती है। वैसे ही प्रेम बार-बार खोकर फिर सजीव होता है। कोई अपनों से कितना भी रुष्ट हो जाए, पुनः-पुनः प्रेम भीतर जागता है। वह अमर है। शिवरात्रि इसी प्रेम को भीतर जगाने की याद दिलाने आती है।प्रेम हमारा अस्तित्व है, इसलिए वह कभी मृत नहीं होता। यदि वह विलीन होता हुआ सा लगे तो कोई पहले दर्पण में अपनी आँखों में झांके फिर अपने प्रियजन की आँखों में, केवल एक वही नज़र आएगा, क्योंकि उसके सिवा कुछ है ही नहीं। सद्गुरू उसी प्रेम को सारे विश्व में बाँटने के लिए सारा आयोजन कर रहे हैं; क्योंकि प्रेम ही जग को चलाता है।
Wednesday, February 8, 2023
जिसने उसको देखा भीतर
संतजन कहते हैं, परमात्मा का मिलना कठिन नहीं है, जो वस्तु हमारे निकट है उसको देखने के लिए कहीं जाना नहीं है, बल्कि उसके प्रति सजग होने की आवश्यकता है. हम अनुष्ठान, जप, तप आदि के द्वारा उसे पाना चाहते हैं, जो हमें मिला ही हुआ है।इनके द्वारा सद्गुरु हमें अहंकार तजने की कला सिखाते हैं, शरणागत होना सिखाते हैं और भीतर ही वह प्रकट हो जाता है जो सदा से ही वहाँ था. वह आत्मा के प्रदेश में हमारा प्रवेश करा देते हैं. आत्मा के रूप में परमात्मा सदा मन को सम्भाले रहता है, उसे रोकता है, टोकता है और परमात्मा के आनंद को पाने योग्य बनाता है, उसको पाने के बाद कुछ पाना शेष नहीं रहता. वह सुह्रद है, हितैषी है, वह नितांत गोपनीय है उसे गूंगे का गुड़ इसीलिए कहा गया है. वह आनंद जो साधक को मिलता है सभी को मिले ऐसे प्रेरणा भी तब भीतर वही जगाता है.भक्ति का आरम्भ वहाँ है जहाँ हमें ईश्वर में जगत दिखता है और चरम वह है जहाँ जगत में ईश्वर दिखता है. पहले पहल ईश्वर के दर्शन हमें अपने भीतर होते हैं, फिर सबके भीतर उसी के दर्शन होते हैं. ईश्वर कण-कण में है पर प्रेम से उसका प्राकट्य होता है. सद्गुरु हमें वह दृष्टि प्रदान करते हैं जिससे हम परम सत्ता में विश्वास करने लगते हैं. ईश्वर का हम पर कितना उपकार है यह तो कोई सद्गुरु ही जानता है और बखान करता है. शब्दों की फिर भी कमी पड़ जाये ऐसा वह परमात्मा आनंद का सागर है.
Thursday, February 2, 2023
कौन देश के वासी हैं हम
धर्म के मूल में तीन बाते हैं, हम कहाँ से आये हैं, हम कहाँ हैं और कहाँ जाने वाले हैं? इनकी खोज ही हमें धर्म की ओर ले जाती है. संतों की वाणी सुनकर हमारे भीतर अपनी वास्तविक स्थिति का बोध जगता है. जिस क्षण कोई अपने सामने पहली दफा खड़ा हो जाता है, आमने-सामने..उसी क्षण वह सत्य को जान जाता है. उस क्षण उसके भीतर संसार से ऊपर उठने, जगने और व्यर्थ कामनाओं से मुक्त होने की चाह जगती है. वास्तव में हम उसी एक तत्व से आये हैं, उसी में हैं और उसी में लौट जाने वाले हैं. लेकिन लौटने से पूर्व हमें देखना है कि भीतर सुई की नोक के बराबर भी द्वंद्व न बचे, उसका मार्ग बहुत संकरा है, उसमें से एक गुजर सकता है। दुई मिटते ही सारा अस्तित्व हमारी सहायता को आ जाता है, आया ही हुआ है. बाहर से संत, शास्त्र व भीतर से दैवीय प्रेरणा मिलने लगती है और हम उसकी ओर बढ़ते चले जाते हैं. जहां वह है वहाँ सभी ऐश्वर्य हैं। वह हितैषी है, अकारण दयालु है, वह ही तो है जिसने यह खेल रचा है. अंतत: वह स्वयं ही तो इस सीमित जगत के रूप में दिखायी दे रहा है। जबकि वास्तव में वह अलिप्त है और अनंत है।
Sunday, January 29, 2023
डरना जिसने छोड़ दिया है
भय से मुक्ति मिले बिना मानव को विश्रांति प्राप्त नहीं हो सकती। जो कुछ उसके पास है, वह छिन जाने का भय, रिश्तों के टूट जाने का भय अथवा उनके सदा एक सा न बने रहने का भय। दूसरों के मन में अपने प्रति स्नेह व सम्मान को खो देने का भय। समाज में अकेले रह जाने का भय और दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इसका भय। असुंदर, अयश, निर्धन, अपकीर्ति, असफल होने का भय; और भी न जाने कितने भय हैं जिनसे मन घिरा रहता है। सबसे बड़ा भय रोग अथवा मृत्यु का है, यह भी मानव मन को जकड़े रहता है। जहाँ भय है वहाँ प्रेम खो जाता है। संत जब ईश्वर से प्रेम करने की बात कहते हैं तो भयभीत व्यक्ति उसका अनुभव नहीं कर पाता, अथवा तो उन क्षणों में नहीं कर पाता जब इनमें से कोई भय मन की ऊपरी सतह पर आ गया है।अधिकतर समय तो ये भय अवचेतन में दबे रहते हैं और इनका भास नहीं होता। कोई परिस्थिति आने पर यदि मन डावाँडोल हो रहा है तो कोई न कोई भय सिर उठा रहा है। ऐसे में एक ही उपाय है इनसे मुक्ति का, साक्षी हो जाना। ये भय हमारे सत्य स्वरूप को छू भी नहीं पाते। जब कोई स्वयं की अनंतता को अनुभव कर लेता है तो सारे भय खो जाते हैं। साधना के द्वारा बार-बार अपने आप में स्थित होना सीखना है, एक दिन जब सारे भय अवचेतन से निकल कर सामने आ जाएँगे और मन में हलचल नहीं होगी उस क्षण हम इनसे सदा के लिए मुक्त हो जाएँगे।
Monday, January 23, 2023
जीवन इक उपहार सरीखा
Friday, January 20, 2023
माया के जो पार हुआ है
Thursday, January 19, 2023
पूर्णमद: पूर्णमिदं
परमात्मा सर्वत्र है, हर काल में है; इस तरह वह हमारे भीतर भी है और बाहर भी, इस समय भी है। वह सर्वशक्तिमान है। अनंत प्रेम का सागर है। हमारा मन यदि उसमें से कुछ ग्रहण कर भी ले तो भी उसका कुछ घटेगा नहीं, यदि हम उसे अपना सारा प्रेम दे भी दें तो उसमें कुछ बढ़ेगा नहीं।अनादि काल से इस सृष्टि में हज़ारों जीव आए और उसके प्रेम के भागी बने पर वह ज्यों का त्यों है। हमारा मन यदि संकुचित है, लघु है, संकीर्ण है तो उसमें कम ही समाएगा। छोटा मन अहंकार का प्रतीक है और विशाल मन आत्मा का। संतों का मन विशाल होता है, वे मन को अनंत कर लेते हैं और सारा का सारा अनंत उसमें समा जाता है, फिर भी अनंत में कुछ घटता नहीं। वेदों में कहा गया है, संकीर्णता में दुःख है, विशालता में सच्चा विश्राम है। ऐसा ही शान्ति, शक्ति, सुख, ज्ञान, पवित्रता व आनंद के साथ है। वह इन सबका अजस्र स्रोत है और मानव को देने को तत्पर है। मन में यदि उन्हें पाने की चाह हो तो आत्मा के ये गुण अपने आप प्रकट होने लगते हैं।
Sunday, January 15, 2023
चेतन, अमल, अजर अविनाशी
संत कहते हैं “मैं कौन हूँ” इस सवाल का जवाब खोजने जाएँ तो भीतर एक गहन शांति के अतिरिक्त कुछ जान नहीं पड़ता। एक ऐसा भान होता है, जो अनंत है, विस्तीर्ण है, जो होना मात्र है, केवल शुद्ध चिन्मय तत्व है। वहाँ भौतिकता का लेश मात्र भी नहीं।जो मात्र जानने वाला है। न कर्ता है न भोक्ता , न उसे कुछ चाहिए, न उसे निज सुख के लिए कुछ करना है। जो स्वयं पूर्ण है, आनंद स्वरूप है, जो परमात्मा का अंश है। जो हर जगह है, हर काल में है। जिसका कभी नाश नहीं होता। जो सहज ही उपलब्ध है पर जिसके प्रति हम आँख मूँदे हैं। जो मन का आधार है। जो मन को विश्राम देता है। जो प्रेम, शांति, शक्ति व ज्ञान का स्रोत है। वही आत्मा, परमात्मा और गुरू है।
Friday, January 13, 2023
हर उत्सव यह याद दिलाता
सत्संग, सेवा, साधना और स्वाध्याय इन चार स्तम्भों पर जब जीवन की इमारत खड़ी हो तो वह सुदृढ़ होने के साथ-साथ सहज सौन्दर्य से सुशोभित होती है. उत्सव बार-बार इसी बात को याद दिलाने आते हैं. हर उत्सव का एक सामाजिक पक्ष होता है और धार्मिक भी, यदि उसमें आध्यात्मिक पक्ष भी जोड़ दिया जाये तो उसमें चार चाँद लग जाते हैं. मकर संक्रांति ऐसा ही एक उत्सव है. इस समय प्रकृति में आया परिवर्तन हमें जीवन के इस अकाट्य सत्य की याद दिलाता है कि यहाँ सब कुछ बदल रहा है, भीषण सर्दी के बाद वसंत का आगमन होने ही वाला है. छोटे-बड़े, धनी-निर्धन आदि सब भेदभाव भुलाकर जब एक साथ लोग अग्नि की परिक्रमा करते हैं तो सामाजिक समरसता का विकास होता है. तिल, अन्न आदि के दान द्वारा भी सेवा का महत कार्य इस समय किया जाता है. जीवन की पूर्णता का अनुभव उत्सव के माहौल में ही हो सकता है. कृषकों द्वारा नई फसल को प्रकृति की भेंट मानकर उसका कुछ अंश अग्नि को समर्पित करने की प्रथा हमें निर्लोभी होना सिखाती है. मकर संक्रांति का त्यौहार पूरे देश में भिन्न-भिन्न नामों से मनाया जाता है, हर उत्सव पर हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, उसके करीब जाते हैं, मन के उल्लास को जगाते हैं, उत्सव हमें मन को इतर कार्यों से खाली करने का प्रयास है, अथवा तो जो भी अच्छा-बुरा जीवन में हो उसे समर्पण करके पुनः नए हो जाने का संदेश देता है. उत्सव में एक साथ मिलकर जब आनंद मनाते हैं, तो ऊर्जा का संचार होता है, भीतर एक नया जोश भर जाता है. क्षण भर के लिए ही भौतिक देह का भाव मिटने लगता है, सारे भेद गिर जाते हैं और उस अव्यक्त की झलक मिल जाती है.
Tuesday, January 10, 2023
तीन गुणों के पार हुआ जो
यह सृष्टि तीन गुणों से संचालित होती है। जब तीनों गुण साम्यावस्था में आ जाते हैं तब सृष्टि अव्यक्त हो जाती है। हमारे भीतर भी ये तीन गुण हर क्षण अपना कार्य करते रहते हैं। जब सत गुण की प्रधानता होती है, मन के भीतर हल्कापन, स्पष्टता व सहज आनंद की अनुभूति होती है। रजोगुण हमें क्रियाशील बनाता है, इसकी अधिकता मन के चंचल व अस्थिर होने का कारण है। तमोगुण प्रमाद, आलस्य, निद्रा को लाता है। तीनों गुणों के सामंजस्य से जीवन भली भाँति चलता है। यदि प्रातः काल सतो गुण प्रधान हो, दिन में रजो तथा रात्रि के आगमन के साथ तमो गुण बढ़ जाये तो साधना, कर्म व विश्राम तीनों होते रहेंगे और स्वास्थ्य बना रहेगा। दिन में तमो गुण बढ़ने से कार्य नहीं होगा, रात्रि में रजो बढ़ जाए तो नींद नहीं आएगी। इन गुणों का आपसी ताल-मेल सधना योग का फल है। योग साधना क्रियाशील होने के साथ-साथ हमें पूर्ण विश्राम करना भी सिखाती है। साक्षी की अवस्था में आत्मा इन तीनों गुणों के पार चला जाता है, वह इनसे प्रभावित नहीं होता। वह परम विश्राम की अवस्था है जिससे लौटकर बुद्धि प्रज्ञावान हो जाती है, जिसे कृष्ण स्थितप्रज्ञ कहते हैं।
Wednesday, January 4, 2023
मन जो अमन हुआ टिक जाए
Tuesday, January 3, 2023
मुक्ति की जो करे कामना
सुख यानि शुभ आकाश, अपने आसपास का वातावरण जब सकारात्मक तरंगे लिए हुए हो, उसमें कोई विकार न हो। किंतु जहाँ शुभ है, वहाँ अशुभ भी हो सकता है, चाहे उस समय प्रकट नहीं हो रहा। जहाँ सकरात्मकता है, वहीं नकारात्मकता भी छिपी है। इसलिए सुख की कामना का त्याग ही मुक्ति है। इस वर्ष हमारा मूलमंत्र सुख के स्थान पर मुक्ति होना चाहिए। मुक्ति का अर्थ है, पूर्ण स्वतंत्रता, दो के द्वन्द्व से पूरी आज़ादी ! अब न सुख की तलाश है न शुभ-अशुभ का भय ! मुक्ति का अर्थ है मन के पूर्वाग्रहों, धारणाओं, कल्पनाओं, आशंकाओं से मुक्ति ! एक ऐसे स्थान में रहने की कला जहाँ पूर्ण रिक्तता है। जहाँ इस जगत का स्रोत है। जहाँ से आवश्यक ज्ञान सभी जीवों को प्राप्त होता है, क्योंकि वह ज्ञान का भी स्रोत है। आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी पाँच तत्व भी वहीं से उपजे हैं। मुक्ति की कामना हमारे शास्त्रों का मूल मंत्र है। मोक्ष की अवधारणा केवल भारत में ऋषियों द्वारा की गयी है, यह परम कामना है। इसका अर्थ है छोटे संकीर्ण मन की दासता से मुक्ति और विशाल मन के साथ एक होने की कला या विज्ञान; यह व्यक्ति को पूर्ण बनाती है।