यह सृष्टि तीन गुणों से संचालित होती है। जब तीनों गुण साम्यावस्था में आ जाते हैं तब सृष्टि अव्यक्त हो जाती है। हमारे भीतर भी ये तीन गुण हर क्षण अपना कार्य करते रहते हैं। जब सत गुण की प्रधानता होती है, मन के भीतर हल्कापन, स्पष्टता व सहज आनंद की अनुभूति होती है। रजोगुण हमें क्रियाशील बनाता है, इसकी अधिकता मन के चंचल व अस्थिर होने का कारण है। तमोगुण प्रमाद, आलस्य, निद्रा को लाता है। तीनों गुणों के सामंजस्य से जीवन भली भाँति चलता है। यदि प्रातः काल सतो गुण प्रधान हो, दिन में रजो तथा रात्रि के आगमन के साथ तमो गुण बढ़ जाये तो साधना, कर्म व विश्राम तीनों होते रहेंगे और स्वास्थ्य बना रहेगा। दिन में तमो गुण बढ़ने से कार्य नहीं होगा, रात्रि में रजो बढ़ जाए तो नींद नहीं आएगी। इन गुणों का आपसी ताल-मेल सधना योग का फल है। योग साधना क्रियाशील होने के साथ-साथ हमें पूर्ण विश्राम करना भी सिखाती है। साक्षी की अवस्था में आत्मा इन तीनों गुणों के पार चला जाता है, वह इनसे प्रभावित नहीं होता। वह परम विश्राम की अवस्था है जिससे लौटकर बुद्धि प्रज्ञावान हो जाती है, जिसे कृष्ण स्थितप्रज्ञ कहते हैं।
आध्यात्म भाव से सृजित ज्ञान दायिनी पोस्ट ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार मीना जी !
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ReplyDeleteआदरणीया नमस्कार !
आपको लोहड़ी,सक्रांति,पोंगल एवं बिहू पर्वों की अनेक शुभकामनाएं !
जय श्री कृष्ण जी !
जय भारत ! जय भारती !
आपको भी सभी पर्वों की शुभकामनाएँ, स्वागत व आभार!
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