भय से मुक्ति मिले बिना मानव को विश्रांति प्राप्त नहीं हो सकती। जो कुछ उसके पास है, वह छिन जाने का भय, रिश्तों के टूट जाने का भय अथवा उनके सदा एक सा न बने रहने का भय। दूसरों के मन में अपने प्रति स्नेह व सम्मान को खो देने का भय। समाज में अकेले रह जाने का भय और दूसरे हमारे बारे में क्या सोचते हैं, इसका भय। असुंदर, अयश, निर्धन, अपकीर्ति, असफल होने का भय; और भी न जाने कितने भय हैं जिनसे मन घिरा रहता है। सबसे बड़ा भय रोग अथवा मृत्यु का है, यह भी मानव मन को जकड़े रहता है। जहाँ भय है वहाँ प्रेम खो जाता है। संत जब ईश्वर से प्रेम करने की बात कहते हैं तो भयभीत व्यक्ति उसका अनुभव नहीं कर पाता, अथवा तो उन क्षणों में नहीं कर पाता जब इनमें से कोई भय मन की ऊपरी सतह पर आ गया है।अधिकतर समय तो ये भय अवचेतन में दबे रहते हैं और इनका भास नहीं होता। कोई परिस्थिति आने पर यदि मन डावाँडोल हो रहा है तो कोई न कोई भय सिर उठा रहा है। ऐसे में एक ही उपाय है इनसे मुक्ति का, साक्षी हो जाना। ये भय हमारे सत्य स्वरूप को छू भी नहीं पाते। जब कोई स्वयं की अनंतता को अनुभव कर लेता है तो सारे भय खो जाते हैं। साधना के द्वारा बार-बार अपने आप में स्थित होना सीखना है, एक दिन जब सारे भय अवचेतन से निकल कर सामने आ जाएँगे और मन में हलचल नहीं होगी उस क्षण हम इनसे सदा के लिए मुक्त हो जाएँगे।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 31 जनवरी 2023 को साझा की गयी है
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत बहुत आभार यशोदा जी!
Deleteबहुत सार्थक सन्देश
ReplyDeleteस्वागत व आभार शास्त्री जी!
Deleteसाधना ही वह साधन है जो हमें भयमुक्त कर सकती है।
ReplyDeleteबहुत ही सारगर्भित सृजन।
स्वागत व आभार सुधा जी!
Deleteजी सही कहा , साधना और संयम से भय पर विजय पायी जा सकती है । सार्थक अभिव्यक्ति आदरणीय ।
ReplyDeleteस्वागत व आभार दीपक जी!
Deleteविचारणीय तथ्य । 🙏
ReplyDeleteस्वागत व आभार संगीता जी!
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