Friday, January 20, 2023

माया के जो पार हुआ है

जब भीतर हलचल हो मानना होगा कि कोई चाह सिर उठा रही है। चाह कुछ पाने की, कुछ बनने की या कुछ पकड़ने की; अर्थात; ‘मैं’ अहंकार से जुड़ गया है। आत्मा को न कुछ पाना है, न कुछ बनना है, न कुछ पकड़ना है, वह पूर्ण है।देह कुदरत से उपहार में मिली है।उसे अपना कर्त्तव्य निभाना है, देखने, सुनने आदि का कार्य, भोजन पचाने, श्वास लेने और चलने-फिरने का हर कार्य देह में प्रकृति द्वारा किया जा रहा है। मन समाज ने दिया है, बचपन से जो भी देखा, सुना, पढ़ा, सीखा, उसी का जोड़ मन है। मन, बुद्धि को अपने अपना नियत कर्म करना है; अर्थात  अपने समय व ऊर्जा का सही उपयोग हो सके इसका चिंतन व मनन करके निर्णय लेना है। बुद्धि में आत्मा का प्रतिबिम्ब पड़ता है, वही स्वयं को ‘मैं’ मानकर एक स्वतंत्र सत्ता का निर्माण कर लेता है।वास्तव में ‘मैं’ जैसा कुछ नहीं है।इस तरह यदि सभी अपना-अपना कार्य ठीक से करें अहंकार का कोई स्थान ही नहीं है। अहंकार सदा अभाव का अनुभव करता है, जो है, उसे न देखकर जो नहीं है। उसकी कल्पना में मन को लगाता है। किंतु यदि उसे सारे संसार का वैभव भी प्राप्त हो जाए तो भी वह अभाव का अनुभव ही करेगा, क्यंकि वह कुछ है ही नहीं। आत्मा के साथ जुड़ने से मैं पूर्णता का अनुभव करता है। हर अभाव एक माया है और हर पूर्णता एक सत्य !  

2 comments:

  1. नमस्ते.....
    आप को बताते हुए हर्ष हो रहा है......
    आप की ये रचना लिंक की गयी है......
    दिनांक 22/01/2023 को.......
    पांच लिंकों का आनंद पर....
    आप भी अवश्य पधारें....

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  2. बहुत बहुत आभार कुलदीप जी !

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