संत कहते हैं, मन में श्रद्धा स्थायी हो जाये तो आनंद स्वभाव में बस जाता है. मीरा के पैरों में ही घुंघरू नहीं बंधे थे, उसके दिल के भीतर भी बजे थे। सागर की गहराई में एक ऐसी दुनिया है जहाँ सौंदर्य बिखरा हुआ है, हमें उस पर यक़ीन नहीं होता। आश्चर्य की बात है कि इतने संतों और सद्गुरुओं रूपी गोताखोरों को देखकर भी नहीं होती. कोई-कोई ही उसकी तलाश में भीतर जाता है, जबकि भीतर जाना अपने हाथ में है, अपने ही को तो देखना है, अपने को ही तो बेधना है परत दर परत जो हमने ओढ़ी है उसे उतार कर फेंक देना है. हम नितांत जैसे हैं वैसे ही रह सकें तो सदा सहजता ही है। हम सोचते हैं कि बाहर कोई कारण होगा तभी भीतर ख़ुशी फूटी पड़ रही है पर सन्त कहते हैं भीतर ख़ुशी है तभी तो बाहर उसकी झलक मिल रही है हमें भीतर जाने का मार्ग मिल सकता है पर उसके लिए उस मार्ग को छोड़ना होगा जो बाहर जाता है एक साथ दो मार्गों पर हम चल नहीं सकते. बाहर का मार्ग है अहंकार का मार्ग, कुछ कर दिखाने का मार्ग भीतर का मार्ग है, समर्पण का मार्ग, स्वयं हो जाने का मार्ग !
Tuesday, January 16, 2024
Friday, January 12, 2024
उसके पथ का राही है जो
हमारे पास हर पल एक पथ होता है, जिस पर चलकर हम उस परम से एक हो सकते हैं। वह सदा सर्वदा उपलब्ध है। हम स्वभाव वश, संस्कार वश या अपने प्रारब्ध के अनुसार कहीं और चल देते हैं। वह हमसे कभी बिछुड़ा नहीं, उसे अपने से जुदा मान लेते है, फिर व्यर्थ ही अन्धेरों में ठोकर खाते हैं। ध्यान की वह ज्योति नित्य निरंतर भीतर है। कर्मशील मन हो तो उसके लिए कुछ भी असंभव नहीं है।जीवन में कैसी भी परिस्थति हो, ईश्वर का वरदान है। जैसे कुम्हार मिट्टी के पात्र को आकार देते समय कभी सहलाता है कभी आहत करता है; ईश्वर भी ‘स्वयं’ को गढ़ने के लिए हर उपाय अपनाता है। वह ‘स्वयं’ को अपने सुंदरतम रूप में देखना चाहता है। कोई उसके साथ सहयोग करता है तो उसे फूलों के पथ से ले जाता है और जो विरोध करता है उसे काँटों के पथ से ! मंज़िल पर दोनों मिल जाते हैं, क्योंकि लक्ष्य सभी का एक ही है। एक न एक दिन सभी को वह लक्ष्य पाना है।
Monday, January 8, 2024
जिस पल जागा मन मतवाला
परमात्मा ने इस सृष्टि का निर्माण अपने अनंत आनंद को बाँटने के लिए ही तो किया है। गुरु जब शक्तिपात करते हैं मन के भीतर से जन्मों के कितने ही संस्कार बह कर निकल जाते हैं। अश्रु के सहारे हमारे सुख-दुख का अतिरेक बह जाता है। मन जब शांत होता है तब आत्मा का प्रतिबिंब उसमें स्पष्ट दिखता है, वह अनंत का अनुभव करता है। वह आनंद बँटना चाहता है। स्वप्न में हम सुख-दुख दोनों का अनुभव करते हैं। मन एक मायानगरी का निर्माण कर लेता है। सुख का आभास होता रहे तो स्वप्न चलता रहता है, समय का भान नहीं होता, फिर अचानक कुछ ऐसी बात घटती है जो हमें विचलित कर देती है तो हम जाग जाते हैं और राहत की श्वास लेते हैं कि यह मात्र स्वप्न ही था। इसके बावजूद भी स्वप्न का असर कुछ देर तक बना रह सकता है। जागृत में भी यदि सब कुछ ठीक चल रहा है, हमारे अनुकूल है तब तक हम हम भीतर नहीं मुड़ते हैं। परमात्मा को नहीं पुकारते, जब दुख बढ़ जाये तब आर्त्त पुकार उठती है और आत्मशक्ति बढ़ाने की तरफ़ कदम बढ़ता है। जैसे स्वप्न मिथ्या है, वैसे ही जागृत भी मिथ्या है। इसे देखने वाला साक्षी सत्य है, जो सदा जागृत है, नित्य है, मुक्त है। वह स्वयं को भूल जाता है और और कभी देह, मन, बुद्धि के साथ एक होकर स्वयं को वही मानने लगता है। देह के पास अपनी शक्ति है, मन के पास मनन की व बुद्धि के पास निश्चय की शक्ति है पर आत्मा के होने से ही वे इसका अनुभव कर पाते हैं।