Wednesday, September 30, 2020

बुद्धम शरणं गच्छामि

 भगवान बुद्ध कहते हैं हमें धरती से सीखना चाहिए. चाहे मानव इस पर सुगन्धित द्रव्य डालें या दुर्गंधित कचरा कूड़ा, धरती बिना किसी राग-द्वेष के दोनों को स्वीकारती है. जब मन में अच्छे या बुरे विचार आएं तो किसी में  भी उलझना नहीं है, उनके गुलाम नहीं बनना है. हम जल से भी सीख सकते हैं, जल से जब गन्दे वस्त्रों या वस्तुओं को धोते हैं तो यह उदास नहीं होता. अग्नि पवित्र या अपवित्र दोनों पदार्थों को बिना किसी भेदभाव के जलाती है. हवा सुगन्ध या दुर्गन्ध दोनों को ही ग्रहण करती है. इन्हीं पांच तत्वों से हमारी देह बनी है. इसी प्रेममयी  करुणा से हमें क्रोध को जीतना है. यही करुणा बदले में बिना किसी मांग के दूसरों को ख़ुशी प्रदान करने का साधन हो सकती है. दयालुता से भरा आनंद  ही द्वेष को दूर कर सकता है. जब हम दूसरों की ख़ुशी में खुश होते हैं और उनकी सफलता चाहते हैं तभी यह आनंद हमारे भीतर पैदा होता है.

Monday, September 28, 2020

प्रकृति का सम्मान करे जो

 दुनिया में कोरोना से मरने वालों का आंकड़ा बढ़ता ही जा रहा है। मौत की खबर अब किसी को पहले की भांति नहीं कंपाती। मृत्यु एक संख्या बनकर रह गई है। मृत व्यक्तियों का अंतिम संस्कार भी कई बार अस्पताल द्वारा ही अजनबियों के हाथों कर दिया जाता है। सफेद बैगों में बंद वे तन अपनों के अंतिम स्पर्श व दर्शन से भी वंचित हो जाते हैं।कुछ दिन पहले उनके भीतर भी धड़कते दिल थे, उन्हें भी यकीन था कि कोरोना उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा। वे भी शक्ति के एक पुंज थे और उसी अनंत स्रोत से आए थे।  मानव को अब जागकर देखना होगा कि  जीवित रहना कितना सरल है यदि वह हवा को मैला  न करे। मिट्टी से जुड़ा रहे. कीट नाशक दवाओं का अंधाधुंध प्रयोग न करे। दूध में रसायन न मिलाए। सब्जियों और फलों को इंजेक्शन न लगाए।  समुद्री जीवन हो या बर्फीले स्थानों के प्राणी और वनस्पति, कहीं भी मानव की नीतियों का गलत असर न हो। जीवन का स्रोत तो एक ही है, यदि प्रकृति के साथ प्रेमपूर्ण व्यवहार  होगा तो वह देख पाएगा जीवन कितना सुंदर है। झरनों का संगीत, वर्षा  की रिमझिम, हवाओं का स्पर्श, नदियों के तट की सुषमा सभी को अनुभव करके दैवी गुणों का विकास हो तो प्रकृति का शांत रूप ही प्रकट होगा। 


जीवन का जो मर्म जानता

 सृष्टि में प्रतिपल सबकुछ बदल रहा है. वैज्ञानिक कहते हैं जहाँ आज रेगिस्तान हैं वहाँ कभी विशाल पर्वत थे. जहाँ महासागर हैं वहाँ नगर बसते थे. लाखों वर्षों में कोयले हीरे बन जाते हैं. यहाँ सभी कुछ परमाणुओं का पुंज ही तो है. जीवन की धारा में बहते हुए ये सूक्ष्म कण कभी दूर तो कभी निकट आ जाते हैं. किन्तु जीवन नहीं बदलता, वह ऊर्जा है, सत्य है. सदा एक रस रहता हुआ वह इस प्रवाह को जानता है. वह साक्षी है और यह सारा विस्तार उसी से उपजा है. एक दिन उसी में लीन  होता है और पुनः नया रूप धर कर सृजित होता है. पदार्थ ऊर्जा में और ऊर्जा पदार्थ में बदलते रहते हैं. मानव इस बात को भुला देता है और सुख की तलाश में अपने हिस्से में दुखों का इंतजाम कर लेता है. जीवन का अर्थ उसके लिए क्या है ? जन्मना, बड़ा होना, वृद्ध होना और मर जाना, यही तो जीवन की परिभाषा है उसके लिए. उसकी आँख में उपजा हर अश्रु किसी अधूरेपन से उपजा  है. जब तक जीवन के वास्तविक रूप को नहीं जानता पूर्णता की यह तलाश जारी रहती है.

Thursday, September 24, 2020

जिसने उसको जान लिया है

 परमात्मा को जानने का क्या अर्थ है ! परमात्मा इस सृष्टि का नियन्ता है पर उसका दावा नहीं करता. वह इसका पालक है पर इसका अभिमान नहीं करता. वह इसका विनाशक है पर इसका दुःख नहीं करता. उसका भक्त क्या वही नहीं होगा जो किसी भी कृत्य का अभिमान न करे, किसी भी वस्तु पर अपना दावा न करे और किसी भी हानि पर दुःख न करे. परमात्मा के लिए सब समान हैं, वह सभी के भीतर आत्म रूप से विद्यमान है. उसका चाहने वाला भी भेदभाव से मुक्त होगा और प्रेम रूप में सबके भीतर स्वयं को पायेगा. परमात्मा सत्य है, चेतन है और आनंद स्वरूप है, उसको वही पा  सकता है जो सत्य पथ का पथिक हो, जिसने अपने भीतर चेतना को बढ़ा लिया हो और जो हर स्थिति में प्रसन्न रहता हो. 


Tuesday, September 22, 2020

दिल का जो रखेगा ध्यान

 हम सुबह से शाम तक न जाने कितनी अच्छी बातें पढ़ते और सुनते हैं. व्हाट्सएप पर  ही जीवन को सुंदर बनाने के लिए संदेश भेजते और प्राप्त करते हैं, किन्तु अपने में व आस-पास अपेक्षित बदलाव नजर नहीं आता. मन सूचनाओं को एकत्र कर लेता है और सोचता है उसे आवश्यक जानकारी हो गयी. इस तरह हमें जानने का अहंकार बढ़ जाता है पर भीतर का वातावरण वैसा ही रहता है. आज ही एक सन्देश पढ़ा, “हृदय एक ऐसी मशीन है जो बिना रुके जीवन भर चलती रहती है, इसे प्रसन्न रखें, यह चाहे अपना हो या दूसरों का”. हृदय प्रसन्न रहे इसके लिए सबसे जरूरी है कि हम सहजता में रहें, सबके साथ सामंजस्य बना कर समझदारी से आगे बढ़ें. किसी भी प्रकार का दुराग्रह या दूसरों का विरोध हमारे हृदय पर असर डालने ही वाला है. हृदय की गहराई में प्रेम और सहृदयता की जो भावनाएं सुप्त हैं, उन्हें जगाएं तो अन्यों के हृदयों को भी सहज ही प्रसन्न रख सकेंगे.

Wednesday, September 16, 2020

खो जायेगा छोटा मन जब

 महामारी  के इस काल में सब कुछ अनिश्चतता के दौर से गुजर रहा है. एक भय और असुरक्षा की भावना पहले से बढ़ गयी लगती है. ऐसे में अध्यात्म का आश्रय लेकर हम सहज ही अपने मन को तनाव से मुक्त रख सकते हैं. ‘मैं’ और ‘मेरा’ के सीमित दायरे से निकाल कर अध्यात्म हमें औरों के प्रति संवेदनशील होना सिखाता है. तनाव होता है स्वयं के बारे में सोचते रहने से, यदि हम अपनी सोच में बदलाव ले आएं और यह विचारें कि क्या इस दौर में हम अन्यों की किसी भी तरह की मदद कर सकते हैं, तो हमें अपनी चिंता करने का समय ही नहीं मिलेगा. जिस परम शक्ति ने इस विराट सृष्टि का निर्माण किया है, उसके प्रति समर्पण करने से भी मन भय मुक्त हो जाता है. सुबह और शाम आधा घण्टा ध्यान करने से भी हम मन में स्थिरता और शांति का अनुभव कर सकते हैं. ध्यान हमें ऊर्जावान बनाता है, हमारा छोटा मन विशाल मन के साथ जुड़ कर गहन विश्राम का अनुभव कर सकता है, जो मन के साथ-साथ तन को भी स्वस्थ रखने में सहायक है. 

Tuesday, September 15, 2020

दिव्य चेतना जिसमें जागे

 संत कहते हैं दिव्यता मानव का स्वभाव है. जीवनी शक्ति दिव्य है, पंच तत्व दिव्य हैं तो फिर उनसे सृजित यह मानव भला दिव्य क्यों नहीं होगा. वैज्ञानिक भी कहते हैं यह सारा विश्व तरंगित है, एक ही ऊर्जा है जो विभिन्न प्रकार से व्यक्त हो रही है. इसका अर्थ हुआ उस परम की चेतन शक्ति ने स्वयं को व्यक्त करने के लिए अनेक नाम और रूप धारण किये हैं. इस जगत का जो भी मूल है वह शक्ति के माध्यम से प्रकट हो रहा है यह बात जब पहले-पहल किसी ऋषि ने जानी होगी,  तभी उसे अपनी दिव्यता का अनुभव हुआ होगा. ध्यान और स्वाध्याय के द्वारा साधक अपनी उसी दिव्य चेतना से जुड़ सकता है और जगत में रहते हुए भी जगत उसे प्रभावित नहीं कर पाता। जैसे अग्नि की दाहिका शक्ति से अग्नि को कोई हानि नहीं पहुँचती, इसी तरह चैतन्य को उसकी शक्ति प्रभावित नहीं कर सकती. साधना का लक्ष्य उस शक्ति को जगाना है, उसे जानकर ही उसके पर जाया जा सकता है.

Monday, September 14, 2020

हिंदी दिवस पर आप सभी को शुभकामनायें


प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंश से ब्रज, अवधी व मैथिली आदि विभिन्न रूपों में परिवर्तित होती हुई हिंदी को आज हम जिस रूप में देखते हैं, उसको यहां तक पहुँचाने में हिंदी भाषा के कवियों  का बहुत बड़ा योगदान है. कबीर, रैदास, सूर, मीरा, तुलसी,  बिहारी, भारतेंदु हरिश्चंद्र से होती हुई हिन्दी की यह धारा मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, निराला, पन्त, महादेवी वर्मा और उनके बाद दिनकर, अज्ञेय, भवानीप्रसाद मिश्र, मुक्तिबोध, नीरज, तथा रघुबीर सहाय जैसे अनेकानेक रचनाकारों के काव्य सृजन से विकसित होती आ रही है. हिंदी कविता के इस विशाल भंडार के प्रति आज की पीढ़ी कितनी सजग है और उससे कितना ग्रहण कर सकती है इस पर ही हिंदी के  भविष्य को आंका जा सकता है. आज आवश्यकता है हम अपनी साहित्यिक धरोहर का सम्मान करें, उसमें से कुछ मोती चुनें और उनकी प्रतिभा से चमत्कृत होकर अपने भीतर सुप्त पड़ी काव्य चेतना को जगाएं.  


Friday, September 11, 2020

सत्यम परम अनंतं ज्ञानम

  अद्वैत के ग्रन्थों में रज्जु और सर्प का उदाहरण दिया जाता है. अँधेरे में हम रस्सी को सांप समझ लेते हैं और व्यर्थ ही भयभीत हो जाते हैं. प्रकाश होने पर जब ज्ञान होता है तो खुद पर ही हँसी आती है. इसी तरह चमकती हुई सीपी को देखकर चाँदी का व पीतल में स्वर्ण का भ्रम भी हो सकता है.  जीवन में हम मोह को प्रेम समझ लेते हैं. मोह से होने वाले दुःख को अनुभव करते हैं तब लगता है  प्रेम  दुखदायी है, जब ज्ञान होता है तभी समझ में आता है यह प्रेम था ही नहीं. प्रेम तो एक विशुद्ध भावना है, इसमें समर्पण है, हम अन्यों पर अधिकार चाहते हैं और उन्हें झुकाना चाहते हैं. देह, मन, बुद्धि  को आत्मा समझ लेते हैं और इनके रोगी होने या मिटने पर दुखी होते हैं, जबकि शाश्वत तो केवल आत्मा है, देह तो मरणशील है ही. धीरे-धीरे अद्वैत का सिद्धांत हमें इस सत्य की ओर ले जाता है कि जिसे हम जगत समझ रहे हैं वह परमात्मा ही है. परमात्मा सत्य, अनंत, ज्ञान और परम है, यह सृष्टि भी अनादि काल से है. परमात्मा को हम अनुभव कर सकते हैं, उसे पा नहीं सकते वह कभी भी वस्तु बनकर हमें नहीं मिल सकता, वैसे ही यह जगत कभी पकड़ में नहीं आता. न वस्तु शाश्वत है, न पकड़ने वाला ही. यह उस बाजार की तरह है जिसमें से हमें इसकी शोभा देखते हुए गुजर भर जाना है.   


Thursday, September 10, 2020

दुःख से जो भी चाहे मुक्ति

 जीवन से परिचय पाना हो तो नींद से जागना होगा. एक नींद तो वह है जो हम रात्रि में विश्राम के लिए लेते हैं और सुबह जाग जाते हैं, एक और नींद है जो हम अधूरे ज्ञान की चादर ओढ़ कर ले रहे हैं. हमारी छोटी सी बुद्धि इस अनंत सृष्टि के एक कण का राज भी नहीं जानती पर उसे लगता है वह सब कुछ जानती है. एक छोटा सा उपकरण भी हो उसके साथ एक किताब आती है जो उसके बारे में सम्पूर्ण जानकारी देती है, पर अफ़सोस की इस  देह, मन, बुद्धि के साथ कोई पुस्तक नहीं आती. हम जितना ज्ञान किताबों से और बड़ों से, विद्यालय से प्राप्त कर लेते हैं, सोचते हैं उतना इसे चलाने के लिए पर्याप्त है. एक दिन ऐसा आता है जब अपनी ही देह रोगी होकर, मन उदास होकर, बुद्धि भ्रमित होकर हमारे दुःख का कारण बन जाते हैं. इसका अर्थ हुआ कि हमारे ज्ञान में कुछ तो कमी है, ऐसे में किसी सदगुरू का जीवन में पदार्पण अथवा सन्त वाणी का श्रवण ही उस ज्ञान से हमारा परिचय कराता है जो हर दुःख से मुक्त कराके सुख की सौगात देता है. 


Monday, September 7, 2020

शुभ पथ का जो भी राही है

 महाभारत  युद्ध के पश्चात युधिष्ठिर भीष्म पितामह से ज्ञान प्राप्त करने जाते हैं, जो शरीर शय्या पर लेटे हुए उत्तरायण की प्रतीक्षा कर रहे थे. एक प्रश्न में उन्होंने मोक्ष प्राप्ति का उपाय पूछा. भीष्म जी बोले - जो मार्ग पूर्व की तरफ जाता है, वह पश्चिम की ओर नहीं जा सकता. इसी प्रकार मोक्ष का भी एक ही मार्ग है; सुनो, इस मार्ग के पथिक को चाहिए कि क्षमा से क्रोध का, संकल्प त्याग से कामनाओं का, सात्विक गुणों से अधिक निद्रा का, अप्रमाद से भय का, आत्मा के चिंतन से श्वास की अस्थिरता  का, धैर्य से द्वेष का नाश करे. शास्त्र और गुरु वचनों के द्वारा भ्रम, मोह और  संशय  रूप आवरण को हटाये. ज्ञान के अभ्यास से अपने लक्ष्य को विस्मृत न होने दे. रोगों का हितकारी, सुपाच्य और परिमित आहार से, लोभ और मोह का सन्तोष से तथा विषयों का एक तत्व के ध्यान से नाश करे. अधर्म को दया से, आशा को भविष्य चिंतन का त्याग करके, और अर्थ को आसक्ति के त्याग से जीते. वस्तुओं की अनित्यता का चिंतन करके मोह युक्त स्नेह का, योगाभ्यास से क्षुधा का, करुणा के द्वारा अभिमान का और सन्तोष से तृष्णा का त्याग करे. यही मोक्ष का शुद्ध और निर्मल मार्ग है. 


Sunday, September 6, 2020

ॐ भूर्भुवः स्वः

 हम सभी गायत्री मन्त्र का पाठ करते हैं और उसके महत्व को स्वीकार करते हैं. कई बार सामूहिक रूप से उस गाते भी हैं. गायत्री मन्त्र  से होने वाले लाभ और प्रभाव का भी वर्णन एक-दूसरे से करते हैं.  किन्तु इसके वास्तविक अर्थ से सम्भवतः हममें से अधिक लोग परिचित नहीं हैं. अर्थ की भावना करके यदि कोई प्रार्थना की जाती है तो उसका प्रभाव मन, बुद्धि के साथ पूरे स्नायुतंत्र पर पड़ता है. ॐ भूर्भुवः स्वः तत् सवितुर्वरेण्यं। भर्गोदेवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्। ॐ परमेश्वर का एक नाम है. भू: अर्थात जो जगत का आधार, प्राणों से प्रिय व स्वयंभू है. भुवः- सब दुखों से छुड़ाने वाला. स्व: - जो सुखस्वरूप है और अपने उपासकों को भी सुख देने वाला है. तत्सवितु- वह जगत का प्रकाशक और ऐश्वर्य प्रदाता. वरेण्यम - ग्रहण करने योग्य अति श्रेष्ठ. भर्गो- सब दुखों को नष्ट करने वाला. देवस्य- कामना करने योग्य, विजय दिलाने वाला. धीमहि - धारण करें. य: जो सूर्य देव परमात्मा. न :- हमारी. धिय :- बुद्धि. प्रचोदयात- उत्तम गुण-कर्म-स्वभाव में प्रेरित करें. एक साथ यदि सम्पूर्ण मन्त्र का अर्थ देखें तो कुछ इस प्रकार होगा - जो परमेश्वर, स्वयंभू है, सबका प्रिय है, अतिश्रेष्ठ है, सब दुखों को दूर करने वाला है, वह प्रकाश रूप परमात्मा हमारी बुद्धि को सत्कर्मों की तरफ ले जाये.  


Wednesday, September 2, 2020

सजग हुआ जो भीतर देखे

 संकल्प से ही सृष्टि का निर्माण होता है. सृष्टि परमात्मा की सुंदर कल्पना है. प्रकृति का सौंदर्य जहाँ-जहाँ अक्षुण्ण है, वहां देवों का वास है. मानव ने जिसे कुरूप कर दिया है वहाँ दानव बसते हैं. मन जब सुकल्पना के प्रांगण में विचरता है, मोर की तरह नृत्य करता प्रतीत होता है, उसके सौंदर्य की झलक भी मन में मिलती है. मोर जिनकी सवारी है वह देव क्या स्वतः ही वहां प्रकट नहीं हो जाते होंगे. जहाँ मन चिंताओं और कटुता  से भर जाता है, भूत-प्रेत वहाँ अड्डा जमा लेते हैं. सुंदर कल्पनाएं और भाव आत्मा की ही शक्ति है. भाषा का जन्म आत्मा की गहराई में होता है फिर शब्दों का चुनाव मन पर निर्भर करता है. वहां क्रोध भी है और करुणा भी, वहां असजगता भी है और जागरूकता भी. साधक को भीतर जाकर देखना होगा और चुनना होगा करुणा को अपने लिए , छोड़ देना होगा क्रोध. अनेक जन्मों में उसे ही तो चुना था और अपने लिए कर्मों का जाल बुना था.