प्राकृत से अपभ्रंश और अपभ्रंश से ब्रज, अवधी व मैथिली आदि विभिन्न रूपों में परिवर्तित होती हुई हिंदी को आज हम जिस रूप में देखते हैं, उसको यहां तक पहुँचाने में हिंदी भाषा के कवियों का बहुत बड़ा योगदान है. कबीर, रैदास, सूर, मीरा, तुलसी, बिहारी, भारतेंदु हरिश्चंद्र से होती हुई हिन्दी की यह धारा मैथिलीशरण गुप्त, जयशंकर प्रसाद, निराला, पन्त, महादेवी वर्मा और उनके बाद दिनकर, अज्ञेय, भवानीप्रसाद मिश्र, मुक्तिबोध, नीरज, तथा रघुबीर सहाय जैसे अनेकानेक रचनाकारों के काव्य सृजन से विकसित होती आ रही है. हिंदी कविता के इस विशाल भंडार के प्रति आज की पीढ़ी कितनी सजग है और उससे कितना ग्रहण कर सकती है इस पर ही हिंदी के भविष्य को आंका जा सकता है. आज आवश्यकता है हम अपनी साहित्यिक धरोहर का सम्मान करें, उसमें से कुछ मोती चुनें और उनकी प्रतिभा से चमत्कृत होकर अपने भीतर सुप्त पड़ी काव्य चेतना को जगाएं.
शुभकामनाएं हिन्दी दिवस की।
ReplyDeleteआपको भी !
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