Monday, September 28, 2020

जीवन का जो मर्म जानता

 सृष्टि में प्रतिपल सबकुछ बदल रहा है. वैज्ञानिक कहते हैं जहाँ आज रेगिस्तान हैं वहाँ कभी विशाल पर्वत थे. जहाँ महासागर हैं वहाँ नगर बसते थे. लाखों वर्षों में कोयले हीरे बन जाते हैं. यहाँ सभी कुछ परमाणुओं का पुंज ही तो है. जीवन की धारा में बहते हुए ये सूक्ष्म कण कभी दूर तो कभी निकट आ जाते हैं. किन्तु जीवन नहीं बदलता, वह ऊर्जा है, सत्य है. सदा एक रस रहता हुआ वह इस प्रवाह को जानता है. वह साक्षी है और यह सारा विस्तार उसी से उपजा है. एक दिन उसी में लीन  होता है और पुनः नया रूप धर कर सृजित होता है. पदार्थ ऊर्जा में और ऊर्जा पदार्थ में बदलते रहते हैं. मानव इस बात को भुला देता है और सुख की तलाश में अपने हिस्से में दुखों का इंतजाम कर लेता है. जीवन का अर्थ उसके लिए क्या है ? जन्मना, बड़ा होना, वृद्ध होना और मर जाना, यही तो जीवन की परिभाषा है उसके लिए. उसकी आँख में उपजा हर अश्रु किसी अधूरेपन से उपजा  है. जब तक जीवन के वास्तविक रूप को नहीं जानता पूर्णता की यह तलाश जारी रहती है.

5 comments:

  1. सादर नमस्कार ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (29-9 -2020 ) को "सीख" (चर्चा अंक-3839) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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    कामिनी सिन्हा

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  2. जीवन सत्य के सार का बहुत सुंदर विवेचन ।

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  3. शायद यही जीवन का सत्य है ! बहुत सुंदर

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