भगवान बुद्ध कहते हैं हमें धरती से सीखना चाहिए. चाहे मानव इस पर सुगन्धित द्रव्य डालें या दुर्गंधित कचरा कूड़ा, धरती बिना किसी राग-द्वेष के दोनों को स्वीकारती है. जब मन में अच्छे या बुरे विचार आएं तो किसी में भी उलझना नहीं है, उनके गुलाम नहीं बनना है. हम जल से भी सीख सकते हैं, जल से जब गन्दे वस्त्रों या वस्तुओं को धोते हैं तो यह उदास नहीं होता. अग्नि पवित्र या अपवित्र दोनों पदार्थों को बिना किसी भेदभाव के जलाती है. हवा सुगन्ध या दुर्गन्ध दोनों को ही ग्रहण करती है. इन्हीं पांच तत्वों से हमारी देह बनी है. इसी प्रेममयी करुणा से हमें क्रोध को जीतना है. यही करुणा बदले में बिना किसी मांग के दूसरों को ख़ुशी प्रदान करने का साधन हो सकती है. दयालुता से भरा आनंद ही द्वेष को दूर कर सकता है. जब हम दूसरों की ख़ुशी में खुश होते हैं और उनकी सफलता चाहते हैं तभी यह आनंद हमारे भीतर पैदा होता है.
वाह , प्रेरक सुंदर लेख |
ReplyDeleteस्वागत व आभार रेणु जी !
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