संकल्प से ही सृष्टि का निर्माण होता है. सृष्टि परमात्मा की सुंदर कल्पना है. प्रकृति का सौंदर्य जहाँ-जहाँ अक्षुण्ण है, वहां देवों का वास है. मानव ने जिसे कुरूप कर दिया है वहाँ दानव बसते हैं. मन जब सुकल्पना के प्रांगण में विचरता है, मोर की तरह नृत्य करता प्रतीत होता है, उसके सौंदर्य की झलक भी मन में मिलती है. मोर जिनकी सवारी है वह देव क्या स्वतः ही वहां प्रकट नहीं हो जाते होंगे. जहाँ मन चिंताओं और कटुता से भर जाता है, भूत-प्रेत वहाँ अड्डा जमा लेते हैं. सुंदर कल्पनाएं और भाव आत्मा की ही शक्ति है. भाषा का जन्म आत्मा की गहराई में होता है फिर शब्दों का चुनाव मन पर निर्भर करता है. वहां क्रोध भी है और करुणा भी, वहां असजगता भी है और जागरूकता भी. साधक को भीतर जाकर देखना होगा और चुनना होगा करुणा को अपने लिए , छोड़ देना होगा क्रोध. अनेक जन्मों में उसे ही तो चुना था और अपने लिए कर्मों का जाल बुना था.
सार्थक सन्देश।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDelete