Monday, July 30, 2018

जामे दो न समाय


३० जुलाई २०१८ 
साधना का लक्ष्य है अहंकार का विसर्जन, अर्थात इस अनंत ब्रह्मांड में स्वयं को एक इकाई न मानकर संम्पूर्ण का अंश मानना. जब तक ‘मैं’ बचा हुआ है, न ज्ञान है, न प्रेम, न भक्ति और न ही आनंद. भीतर जब इस ज्ञान की किरण उतरती है तो ज्ञान ही रह जाता है, ज्ञानी खो जाता है ! जगत के साथ जब भीतर एक्य का अनुभव होता है तभी परमात्मा का आनंद बरसता है, आनंद का अनुभव ही शेष रह जाता है, अनुभव करने वाला खो जाता है. भीतर जब प्रेम की रसधार बहती है तो प्रेम ही रह जाता है, प्रेमी खो जाता है ! इसी तरह परमात्मा से जब मिलन होता है तो भक्त खो जाता है, केवल परमात्मा ही रह जाता है.

Tuesday, July 24, 2018

जीवन कितने भेद छिपाए


२४ जुलाई २०१८ 
जीवन की परिभाषा अनेक लोगों ने अनेक शब्दों में दी है. जीवन इतना विशाल है कि हर परिभाषा छोटी पड़ जाती है. किसी ने यह भी कहा है, जीवन एक पाठशाला है. यहाँ हमें हर दिन एक विद्यार्थी बनकर प्रवेश करना है, यदि कोई यह मानकर बैठा है कि उसने सब कुछ जान लिया है, तो वह मानो जीवन में प्रवेश ही नहीं कर सकता. यदि कोई यह सोचता है कि उसने सब सीख लिया है, उसे तो अब सिखाना है, वह भी जीवन की गहराई से अछूता ही रह जाता है. यहाँ तो अनजान और मासूम बालक बनकर ही प्रवेशद्वार पर पहुँचा जाता है. सृष्टि में हर घड़ी इतना कुछ घट रहा है कि विस्मय से मन ठिठक जाता है. घास की नोक पर टिकी एक छोटी सी बूंद में पडती सूर्य की किरणों का रंग हो या शाम ढलते ही झींगुरों का राग, आत्मीयता से भरा कोई स्पर्श हो या किसी मूक प्राणी की आँखों में उठा कोई भाव, जीवन हर पल कितना कुछ दिखाता है, सिखाता है.

Monday, July 23, 2018

हीरा जनम अमोल था


२३ जुलाई २०१८ 
जब तक हमारे पास समय है, देह में शक्ति है, मन में उत्साह है, तभी तक हम जीवित हैं, ऐसा मानना चाहिए. एक कहानी हम सबने सुनी है कि रात्रि के अंधकार में एक व्यक्ति नदी किनारे बैठकर एक-एककर पत्थर फेंकता रहा, जब प्रभात का प्रकाश जगा तो उसके हाथ में एक ही पत्थर बचा था, जिसे देखकर वह चौंक गया, जो एक कीमती हीरा था. जीवन की शाम ढले और हमें यह महसूस हो कि कीमती घड़ियाँ हाथ से फिसली जा रही हैं, उसके पूर्व ही स्वयं के भीतर छिपे हीरे को पहचान लेना है. शांति और प्रेम का वह अनमोल रत्न जिसकी पहचान मीरा को उसके सद्गुरु ने कराई थी, सभी के भीतर है, और उतना ही सच्चा और अनमोल जितना किसी जागे हुए के भीतर होता है. जिसकी पहचान होते ही जीवन में तृप्ति का अहसास होने लगता है. और जिसकी पहचान न होने तक मन एक तलाश में खोया रहता है. मन जब एकाग्र होकर अपने आप में रुकना सीख जाता है, उसे संतुष्टि का अनुभव होने लगता है, मानो वह हीरा हाथ लग गया जो सदा से अपने ही पास था.

Monday, July 16, 2018

सुख सपना दुःख बुलबुला


१७ जुलाई २०१८
सुख की तलाश जब तक बाहर है, दुःख मिलने ही वाला है. सुख-दुःख दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक के साथ दूसरा मुफ्त में मिलता है. सुख जब अपने होने में ही मिलने लगता है, तब उसका कोई प्रतिद्वंदी नहीं होता, क्योंकि अपने होने में तो किसी को आज तक संदेह नहीं हुआ. हमारी तकलीफ यह है कि हम कभी भीतर जाकर अपने सही स्वरूप को खोजते नहीं. जगत के साथ हमारा जो संबंध है, उसी के नाते हम स्वयं को दी गयी उपाधियों से ही जानते हैं. कोई हमसे हमारी पहचान पूछे तो झट हमारा उत्तर होगा, अपना नाम, जबकि वह तो बदला जा सकता है, राष्ट्रीयता अथवा धर्म भी बदला जा सकता है, व्यवसाय भी बदल सकता है, रिश्ते भी जो आज हैं कल बदल  सकते हैं. स्वयं को हम जब तक शुद्ध रूप में पहचान नहीं लेते अपने होने का स्वाद हमें नहीं मिल सकता. तब तक सुख की तलाश बाहर ही जारी रहेगी और पीछे-पीछे दुःख भी मिलता रहेगा.

Sunday, July 15, 2018

निर्मल बोध जगे जब भीतर


१६ जुलाई २०१८ 
मन के भीतर चल रहे द्वंद्व को हम जितना-जितना मिटाने का प्रयत्न करते हैं, उतना ही उसे पोषित करते चले जाते हैं. हमारा ध्यान जहाँ भी होगा, ऊर्जा उधर ही बहेगी और उस स्थिति को समाप्त करने के बजाय उसे और भी बढ़ाएगी. इससे तो बेहतर होता कि हम प्रार्थना में बैठ जाते, अथवा ध्यान स्वयं की तरफ ले जाते, निज स्वरूप में ही शांति का अनुभव किया जा सकता है. मन की दुविधा को मन भला कैसे शांत कर सकता है, कोई अपनी ही बनाई हुई मूर्ति को जिस तरह नहीं तोड़ना चाहता, वैसे ही मन स्वयं के बनाये हुए मनोराज्य को ध्वंस नहीं कर सकता. उसे तो बोध के द्वारा ही समझाया जा सकता है. भीतर के मौन में टिक कर ही उस शांत अवस्था का अनुभव किया जा सकता है जहाँ कोई द्वंद्व नहीं है. परमात्मा से प्रार्थना, उसकी स्तुति, और उपासना के द्वारा हम इस निर्मल बोध को अनुभव कर सकते हैं.  

Thursday, July 12, 2018

उठ जाग मुसाफिर भोर भयी


१३ जुलाई २०१८ 
बचपन से हम सुनते आये हैं, सुबह जल्दी उठना चाहिए, ब्रह्म मुहूर्त में उठने से बहुत प्रकार के लाभ होते हैं. संत और शास्त्र कहते हैं, उस समय आकाश में देवता भ्रमण करते हैं. सूर्योदय से दो घंटे पूर्व का समय ब्रह्म मुहूर्त माना गया है. इस बात में कितनी सच्चाई है, इसका अनुभव तो जल्दी उठकर ही हो सकेगा. जब आकाश में तारे भी निकले हों और पूर्व दिशा अभी श्रृंगार की तैयारी ही कर रही हो. उस समय हवा शीतल होती है, और एक शांत मौन सब ओर पसरा होता है. पंछियों का कलरव उस मौन को नवीन आभा से भर रहा होता है. ऐसे वातावरण में परमात्मा का स्मरण अपने आप ही होने लगता है. उस वक्त की गयी प्रार्थना सीधे दिल से उपजती है और तत्क्ष्ण देवों के द्वारा ग्रहण कर ली जाती है. वर्तमान पीढ़ी के लिए सुबह जल्दी उठना संभव ही नहीं हो पाता क्योंकि उनकी रात देर से आरम्भ होती है. किन्तु जिनके लिए यह संभव है, वे भी यदि इस अनमोल समय के साक्षी नहीं बनते तो अवश्य ही अपना परम हित नहीं कर रहे हैं.

Wednesday, July 11, 2018

मुक्ति की जब चाह जगे


१२ जुलाई २०१८ 
ब्रह्मांड में इतना कुछ हो रहा है पर करने वाला नजर नहीं आता, जिसकी उपस्थिति में सब कुछ होता है, पर जो खुद कुछ नहीं करता वह परमात्मा है. इसी तरह हमारे शरीर में हर पल कितने ही कार्य हो रहे हैं, मन में कितने ही विचार आ-जा रहे हैं, जिन्हें करने वाला दिखाई नहीं देता, पर जिसके होने से ही सब घट रहा है, वही आत्मा है. भक्त को जगत के कण-कण में परमात्मा के दर्शन होते हैं, ज्ञानी को अपने भीतर आत्मा के रूप में. कर्मयोगी सभी कर्मों को परमात्मा के लिए करता है. मार्ग कोई भी हो लक्ष्य एक ही है, मन राग-द्वेष से मुक्त हो और बुद्धि समता को प्राप्त हो. सारे दुःख राग-द्वेष और मोह से ही उपजते हैं. इन दुखों से मुक्ति ही हर साधना का लक्ष्य है, यही मोक्ष है.

Tuesday, July 10, 2018

जब आवे संतोष धन


११ जुलाई २०१८ 
संत कहते हैं, जैसे सागर में मछलियाँ और हवा में पंछी सहज ही निवास करते हैं, हमारी चेतना परम चैतन्य के महासागर में सदा ही स्थित है. हम मन के द्वारा विचार करते हैं, इन्द्रियों के द्वारा इस जगत का अनुभव करते हैं. अनुभव और जिसका अनुभव किया अर्थात यह जगत हमें इतना प्रभावित करता है कि हम इस बात पर कभी ध्यान ही नहीं देते कि अनुभव करने वाला कौन है. अनुभव करने वाली चेतना सदा ही परम में स्थित है. पहले ध्यान के द्वारा मन से सारे अनुभवों से मुक्त करना है, उस क्षण में अनुभव कर्ता स्वयं का अनुभव करेगा, और जब दीर्घ काल तक चेतना स्वयं में ठहरना सीख जाएगी, शुद्ध चैतन्य का अनुभव भी होगा. संत और शास्त्र कहते हैं, इस अनुभव के बाद जो सहज शांति और संतुष्टि मन को मिलती है, वह किसी कारण से विलुप्त नहीं होती, क्योंकि वह परम से उपजी है जो अजर और अमर है.

Monday, July 9, 2018

सृजनशील जब मन हो जाये


९ जुलाई २०१८ 
जीवन ऊर्जा हर क्षण बंट रही है. कहीं नक्षत्रों का निर्माण हो रहा है तो कहीं पुष्पों का सृजन. इस धरती पर हर क्षण कितना कुछ नया बन रह है और पुराना विनष्ट हो रहा है. मानव मन में भी असंख्य विचारों का सृजन होता है, विशाल पुस्तकालय उन विचारों की ही देन हैं. जाने-अनजाने हम सभी सृष्टिकर्ता के इस कार्य में उसके सहायक बन जाते हैं. उसने मानव को ही नित नूतन सृजन की क्षमता दी है. मन की गहराई में न जाने कहाँ से किसी कवि और लेखक के भीतर भावनाओं और विचारों का जखीरा चला आता है, जिसे वह रचना के रूप में बाहर उलीच देता है. भाषा और व्याकरण का सीमित ज्ञान ही इसका कारण है ऐसा नहीं लगता, अवश्य ही उसका मन किसी अनंत स्रोत से जुड़ा है, जो ताजे कूप की तरह सदा भरा रहता है. कभी ऐसा भी देखा गया है जिस भाषा का इस जन्म में अध्ययन ही नहीं किया, किन्हीं पलों में उसके शब्द भी भीतर से फूटने लगते हैं. तब विश्वास हो जाता है, यह यात्रा सिर्फ इसी जन्म की तो नहीं है.

Friday, July 6, 2018

देना जिसने सीख लिया है


६ जुलाई २०१८ 
तेन त्यक्तेन भुञ्जीथाः! इस छोटे से सूत्र में कितनी गहरी सच्चाई छुपी है. बादल जल का ग्रहण करते हैं फिर त्याग देते हैं, धरती बीजों को धारण करती है फिर हजार गुना करके लौटा देती है. सूर्य तो लाखों वर्षों से प्रकाश का दान कर ही रहा है. पुष्प बाँट रहे हैं, मधु लेकर जाती हुई मधुमक्खी पुनः उसे लौटा देती है. प्रकृति में सभी त्याग भाव से ही भोग कर रहे हैं. पहले मानव भी इसी रीति को अपनाता था, अन्न दान, वस्त्र दान, ज्ञान दान तथा अन्य प्रकार के दान जीवन का एक सहज अंग थे. पहली रोटी गाय की, दूसरी कुते की, तीसरी चिड़िया की और फिर अपने लिए. जब देने का भाव भीतर जगता है देवत्व भी साथ-साथ ही पल्लवित होता है, आत्मा का सहज स्वभाव है प्रसन्नता को बांटना, बांटने से ही वह बढ़ती है. अहंकार सब कुछ खुद के लिए संभाल कर रखना चाहता है, इसलिए दुखी होता है. किसी संत कवि ने कितना सही कहा है, ‘जो जल बाढ़े नाव में, घर में बाढ़े दाम, दोनों हाथ उलीचिये, यही सयानो काम’.

Thursday, July 5, 2018

जिन खोजा तिन पाइयाँ


५ जुलाई २०१८ 
हमारे जीवन में बाहर की परिस्थतियाँ कैसी भी हों, हरेक के भीतर परमात्मा एक सा समाया है. जैसे आकाश सबको एक सा दीखता है, सूर्य रश्मियाँ, हवा और जल किसी के प्रति भेदभाव नहीं करते वैसे ही सबके भीतर चेतना का स्रोत एक ही है. जैसे सागर देखने सब जाते हैं, पर कोई लहरों से भयभीत होकर उसके निकट तक नहीं जाता, कोई गोता लगाकर मोती खोज लाता है, उसी तरह हम अपने विचारों और भावनाओं की लहरों को देखकर ही खुद को जान लिया समझ लेते हैं, और कोई संत गहरे जाकर सत्य का मोती खोज लेता है. जैसे सागर सब नदियों का स्वागत करता है और खारे  जल को मुक्त करके मीठा बनाकर पुनः उन्हें लौटा देता है, परमात्मा हमारे विचारों और भावों को समा लेता है और परिवर्तित कर नये रूप में लौटा देता है.

Tuesday, July 3, 2018

जीवन चलने का नाम


३ जुलाई २०१८ 
जीवन एक यात्रा है, यह वाक्य हमने न जाने कितनी बार सुना है. संत कहते हैं, हम इस जगत में कहीं और से आये हुए यात्री हैं, दो-चार दिन यहाँ गुजार कर हमें वापस जाना है. इन बातों में एक गहरी सच्चाई है, इसका अनुभव किसी को तब होता है जब वह कोई यात्रा कर रहा होता है. घर से दूर किसी नये शहर में जाकर हम कितनी सजगता से वहाँ के दर्शनीय स्थलों को देखते हैं, आने वाली तकलीफों को भी मुस्कुराते हुए झेल लेते हैं. मित्रों के यहाँ जाने पर कितना प्रेम जताते हैं. मन सदा ही एक ‘मगन भयो’ की भाव मुद्रा में रहता है. हम यहाँ घूमने आये हैं, रहने नहीं, यह भाव जगा रहता है तो न कोई राग सताता है न ही द्वेष, कोई असुविधा भी हो तो यह याद आ जाता है, कौन सा हमें यहाँ सदा रहना है, एक यात्री का मन सदा उत्सुकता से भरा होता है, जंगल घूमने गया हो तो एक चिड़िया या एक हिरन की झलक भी उसे ख़ुशी से भर जाती है. इन सबके पीछे कारण होता है कि मन में मोह व ममता नहीं होती. यह जगत भी ऐसे ही हमारे विहरने का स्थान मात्र है, यह हमारा कोई स्थायी पता नहीं है. मोह-ममता के बिना मन कितना हल्का रहेगा, इसकी कल्पना ही कितनी सुखद जान पडती है.