Wednesday, July 11, 2018

मुक्ति की जब चाह जगे


१२ जुलाई २०१८ 
ब्रह्मांड में इतना कुछ हो रहा है पर करने वाला नजर नहीं आता, जिसकी उपस्थिति में सब कुछ होता है, पर जो खुद कुछ नहीं करता वह परमात्मा है. इसी तरह हमारे शरीर में हर पल कितने ही कार्य हो रहे हैं, मन में कितने ही विचार आ-जा रहे हैं, जिन्हें करने वाला दिखाई नहीं देता, पर जिसके होने से ही सब घट रहा है, वही आत्मा है. भक्त को जगत के कण-कण में परमात्मा के दर्शन होते हैं, ज्ञानी को अपने भीतर आत्मा के रूप में. कर्मयोगी सभी कर्मों को परमात्मा के लिए करता है. मार्ग कोई भी हो लक्ष्य एक ही है, मन राग-द्वेष से मुक्त हो और बुद्धि समता को प्राप्त हो. सारे दुःख राग-द्वेष और मोह से ही उपजते हैं. इन दुखों से मुक्ति ही हर साधना का लक्ष्य है, यही मोक्ष है.

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