Monday, February 24, 2020

जगे प्रार्थना ऐसी मन में


शास्त्र शुद्ध बुद्ध, मुक्त आत्मा का संदेश देते हैं. तन-मन से अशुद्धियाँ निकल जाएँ, यह प्रार्थना  ही हर कोशिका को जीवंत कर देती है जीवन से हर विकार दूर हो, प्रमाद, आलस्य और तमस की नींद से जाकर हम जीवन में नया सवेरा लाएं.परमात्मा की दी हुई शक्तियों को इस्तेमाल कर स्वयं से व्यक्त होने का उन्हें मौका दें. अध्यात्म का अर्थ है आत्मा हमसे प्रकटे, तन और मन उसमें बाधा न बनें तो वह स्वयं प्रकाशित है जैसे कोई खिड़की का पट उढ़का ले तो सूरज का प्रकाश रुक जाता है. प्रकाश के लिए सूरज बनाना तो नहीं है, न ही कहीं से लाना है,आत्मा है, हमने रोक हुआ है उसका मार्ग. देह स्थूल है, मन भी स्थूल है, देह प्रकृति है, मन भी प्रकृति का अंग है, जो पल-पल बदल रही है, आत्मा सदा एक सी  स्वयं में पूर्ण है, उसको मार्ग दें तो वह अपनी मुस्कान से भर देगी तन, मन दोनों को जैसे सूर्य प्रकाशित करता है घर की हर शै को ! 

Wednesday, February 19, 2020

सुख की फसल उगाए जो



सृष्टि का बीज भीतर है, जिसका विस्तार बाहर है. बाहर जो कर्म हमने किये, उनके फल-रूप में सुख-दुःख मिले. हर सुख-दुःख के फल में छिपे थे बीज. हम अनजाने में विषैले बीज बोते रहते हैं. जब बाहर क्रोध, वैमनस्य और घृणा की फसल लहलहाती है, तब दुःख मनाते हैं. भीतर दुःख रूपी फल से निकले उदासी के बीज हैं, कुछ पीड़ा के भी. हर बार दुखी होने पर द्वेष या घृणा करने पर हम बोते रहे उन्हीं के बीज, और हर बार सुखी होने पर मुस्कानों के. तभी अकारण ही कभी-कभी मुस्कानें भी फूटती हैं भीतर से, किन्तु दो दुखों के मध्य एक छोटा सा सुख तृप्ति तो नहीं दे पाता. हम यदि सचेत होकर  सुख, शांति, करुणा और प्रेम  के बीज ही बोयें तो क्या जीवन में वही नहीं पनपेंगे। 

Sunday, February 9, 2020

ज्ञान का दीपक सदा जल रहा



उत्तर में हिमालय से दक्षिणी तट के अंतिम छोर तक भारत बसता है, प्रान्त-प्रान्त में अपनी अनोखी संस्कृति के साथ भारत हँसता है. वाकई सारी दुनिया में सबसे अनोखा है भारत, जो हजारों वर्षों से अपनी छवि को बरकरार रखे हुए है. इसके पीछे एक ही कारण नजर आता है, यहां की माटी में अध्यात्म रचा-बसा है. वेद मन्त्रों का गायन, यज्ञ, होम, हवन और अंतर को निर्मल करने वाले उपनिषदों का अध्ययन इसे शाश्वतता प्रदान करता है. ऋषि-मुनियों की अंतर्दृष्टि से उपजे सृष्टि के अनोखे रहस्यों को उजागर करते महान ग्रन्थ आज भी यहाँ मौजूद हैं. भले ही आक्रांताओं द्वारा पुस्तकालयों को नष्ट कर दिया गया हो, ज्ञान की वह मशाल जो एक बार किसी ज्ञानी के अंतर में जल जाती है, दुनिया के किसी जल से बुझाई नहीं जा सकती. राम हों या कृष्ण, बुद्ध हों या महावीर, कबीर हों या मीरा, सभी ने भारत भूमि को गौरवान्वित किया है, कर रहे हैं और करते रहेंगे. यहाँ शिव की पूजा शिव होकर की जाती है, भगवान को अपने से दूर नहीं बल्कि स्वयं में ही देखना सिखाया जाता है. मस्ती भरी एक उदासीनता, एक फक्कड़पन यहाँ की जलवायु में घुला-मिला है. भारत के इस गौरव को बनाये रखने और बढ़ाने में हर भारतीय अपना योगदान दे सकता है. पर्यावरण के प्रति सजग होकर, अपने नियत कार्य को भली प्रकार करके, एक नागरिक के कर्त्तव्यों को निभाकर और सबसे आवश्यक आने वाली पीढ़ी को इसके प्राचीन अनमोल साहित्य से परिचित कराकर हम सभी यह कार्य कर सकते हैं.

Monday, February 3, 2020

समझबूझ कर चलना होगा



युद्ध के प्रति जहाँ मन में उन्माद जगाया जाता हो. हिंसा के प्रति आकर्षण को वीरता का प्रतीक मान लिया जाता हो, अहंकार का झूठा प्रदर्शन किया जाता हो. ये सभी एक दिशाहीन समाज की निशानियाँ हैं. जहाँ नेतृत्व खोखला है, कोई आदर्श भी सम्मुख नहीं है, अजीब सी रिवायतें और दकियानूसी विचारधारा को प्रश्रय दिया जाता हो, वह समाज दया का पात्र है. भारत की हजारों साल पुरानी संस्कृति और अनमोल साहित्य का अकूत भंडार होते हुए भी जब सत्य और अहिंसा को भुलाकर नफरत की आग को हवा दी जाती हो तो उसे विडंबना ही कहा जा सकता है. हजार दरिया भी मिलकर नफरत की आग को बुझा नहीं सकते, जब समझ का पानी सूख जाता है तो वहां कोई चमत्कार ही अमन की बारिश कर सकता है. जब मंशा सँवारने की होती है तो लोग व्यर्थ पड़े पत्थरों और ठीकरों से भी बगीचे बना लेते हैं लेकिन जहाँ इरादा ही अलगाव का हो तो अमृत भी विष बन जाता है. जब रिश्तों की बुनियाद ही खोखली होती है तो तथाकथित मित्रों को शत्रु बनते देर नहीं लगती. आज आवश्यकता है  आपसी सौहार्द को जगाने के लिए सार्थक संवाद हो, विश्वास कायम करने के लिए भावनाओं की जगह समझदारी को प्राथमिकता दी जाये.