Thursday, May 28, 2020

भेद प्रार्थना का जो जाने


हमारी प्रार्थनाएं हमारे मन की गहराई में छिपी आकांक्षाओं को प्रकट करने में अति सहायक होती हैं. हर धर्म में प्रार्थना का बहुत महत्व बताया गया है, जब हम परम श्रद्धा के साथ किसी इष्ट अथवा परमात्मा के सामने बैठकर प्रार्थना करते हैं तो हमें ज्ञात भी नहीं होता कि अगले क्षण भीतर से जो शब्द या वाक्य हम बोलने वाले हैं वह क्या होने वाला है. प्रार्थना सोच-सोच कर नहीं की जाती, न ही किसी रटे रटाये भजन या श्लोक को बोलकर की जाती है. यह तो स्वतः स्फूर्त होती है और हृदय की गहराइयों से निकलती है. हो सकता है वर्षों तक फिर दोबारा वे शब्द हमारे मुख से प्रकट  भी न हों, पर कभी न कभी जब वह पूर्ण होती है तब हमें याद आता है, या नहीं भी आ सकता. किन्तु इससे कोई अंतर नहीं पड़ता. प्रतिदिन हमें कुछ समय प्रार्थना को देना चाहिए, यदि हम कह नहीं सकते तो एक नोटबुक में उसे लिख दें जो भी हमारी दिली इच्छा है, और शेष सब अस्तित्त्व पर छोड़ दें. शुभता की चाह मन में जगे हर प्रार्थना का यही लक्ष्य है.

Monday, May 25, 2020

देने की जो कला सीख ले

हमारा आज कल की देन है तो जाहिर सी बात है कि आने वाला कल आज की देन होने वाला है. आज जो हमने पाया है वह जो कल दिया था उसका परिणाम है तो आज जो हम देने वाले हैं उसी का प्रतिदान कल मिलने वाला है. आज यदि हम केवल अभी की चिंता करते रहे और यह सोचकर देने से चूक गए कि अभी तो मौज कर लें तो भविष्य कैसा होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं. इस देने में हमारे वे सारे कर्म सम्मिलित हो जाते हैं जो निष्काम भाव से हम करते हैं. इसमें वह सारा श्रम भी आ जाता है जो हम स्वयं को तथा अपने आसपास के लोगों के उत्तम स्वास्थ्य, समुचित आजीविका तथा स्वच्छता के लिए करते हैं. उस असीम के प्रति की गयी हमारी अर्चना- वंदन तथा ध्यान-पूजा भी इसमें आ जाती है और इसके साथ ही आता है किसी की जरूरतों को समझ कर बिन मांगे ही उसकी सहायता कर  देना. हम देखते हैं कि सुबह से शाम तक हमारा जीवन कितने रूपों में औरों पर निर्भर है. दूध वाला, पेपर वाला, कामवाली, सफाई कर्मचारी, अख़बार वाला, सब्जी वाला, धोबी, आदि तो हमारे सहायक हैं ही, इसके अतिरिक्त किसान, दर्जी, मोची,  बैंक के कर्मचारी और न जाने कितने व्यक्तियों के योगदान से हमारा जीवन चलता है. ऐसे में यदि हमारे समय और ऊर्जा  का थोड़ा सा भाग भी यदि किसी ऐसे कार्य में लगता है जिससे किसी को लाभ हो तो हमारा भविष्य सुंदर होने ही वाला है.         

तू ही बिगाड़े तू ही संवारे


समय सदा एक सा नहीं रहता. हर सुबह पिछली सुबह से अलग होती है और हर मौसम पिछले बार से कम या ज्यादा गर्म या ठंडा. हमारे इर्दगिर्द का सब कुछ जब बदल रहा हो तब भी हम कई मामलों में स्थायित्व की कामना करते हैं. हमारा खुद का मन भी दिन के हर प्रहर में बदल जाता है, भोर में जो सहज ही शांत था, दोपहर होते-होते उसकी भावदशा बदल जाती है. इस परिवर्तन को यदि हम स्वीकार कर लेते हैं तो अपनी ऊर्जा को बचा लेते हैं. यदि विरोध करते हैं तो भीतर द्वंद्व उतपन्न हो जाता है जिसमें ऊर्जा का अपव्यय तो होता ही है, आसपास का वातावरण भी बदल जाता है. जीवन को वह जैसा-जैसा मिलता है वैसा ही स्वीकारने से हम विराट के साथ एक समन्वय स्थापित कर लेते हैं, हमारे भीतर और बाहर में एक संतुलन स्थापित हो जाता है. यदि कोई भीतर से किसी बात को अस्वीकार करता हो और बाहर से किसी विवशता के कारण मान लेता हो तो उसके मन में एक दरार पड़ जाती है. जगत के साथ उसका संबंध अपनेपन का नहीं रहता. भक्त की महिमा इसीलिए शास्त्रों में गायी गयी है, वह अस्तित्त्व के आगे अपनी इच्छा को प्रमुखता नहीं देता, यदि उसकी और अस्तित्व की कामना एक है तो वह उसे प्रभु की कृपा मानता है और यदि उनमें विरोध है तो वह उसे उनकी दया मानता है. इस तरह वह निर्भार होकर जीने की कला सीख लेता है. 

Saturday, May 23, 2020

दुःख में जो जागना सीखे


जीवन कितने ही रूपों में हमारे सम्मुख आता है. कभी शांत तो कभी रौद्र, कभी सरल तो कभी कठिन. हम उसे किस रूप में ग्रहण करते हैं यह हम पर निर्भर है. जीवन में यदि सब कुछ ठीक चल रहा हो तो हम अपनी ऊर्जा को व्यर्थ ही इधर-उधर के कामों में लगा देते हैं. यदि कोई विपदा आती है तो हम सजग हो जाते हैं और अपना सारा समय और ऊर्जा उस दुःख से बाहर निकलने में लगाते हैं. उस समय जीवन में एक लक्ष्य होता है जीवन धारा एक ओर ही बहती है. आज पूरे विश्व के आगे एक समस्या है, सरकारें सजगतापूर्वक अपने-अपने देशवासियों के लिए नए-नए प्रोजेक्ट आरंभ कर रही हैं. लोग स्वास्थ्य के प्रति सजग हो रहे हैं. धन की दौड़ में जो अपने गांव छोड़कर चले गए थे वे घर लौट रहे हैं. परिवार का जो महत्व खोता जा रहा था, अब वापस स्थापित हो रहा है. दुःख की घड़ी में सब एक हो जाते हैं, शायद इसीलिए प्रकृति कभी-कभी क्रुद्ध होती है. मानव अपने पर्यावरण से जुड़े, लोग आपस में जुड़ें, सभी को अपने कर्त्तव्य पालन का बोध हो, इसका भान कराने के लिए ही महामारी जैसी विपदाएं समय-समय पर युगों से आती हैं. जो समर्थ हैं उन्हें सेवा का अवसर मिले और जो संकट ग्रस्त हैं उन्हें अपनी आंतरिक शक्तियों का भान हो. समाज आपस में जुड़े और अकर्मण्यता का जो दानव मानवता को ग्रस रहा था उसका नाश हो. जीवन में एक गहरा परिवर्तन हो, माता-पिता और बच्चों में संवाद हो, पीढ़ियों का अंतर घटे, भोजन में शुद्धता का ध्यान रखा जाये. स्वच्छता का मानदण्ड बढ़े, ये सारे छोटे-छोटे पर महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं जो आज किसी न किसी रूप में प्राप्त हो रहे हैं. 

Friday, May 22, 2020

बीज ध्यान का बोया जिसने


ध्यान एक बीज के रूप में हमारे भीतर प्रकृति द्वारा प्रदान किया जाता है. जन्म के साथ ही शिशु  को यह उपहार मिलता है, इसमें वह संभावनाएं छुपी होती हैं जिन्हें वह भविष्य में प्राप्त कर सकता है. इस बीज को जब मन की भूमि में बोया जाता है, इसे श्रद्धा का जल मिलता है और विश्वास की धूप तो यह अंकुरित होने लगता है. धीरे-धीरे यह पौधे से वृक्ष बनता है एक दिन इस पर प्रेम और भक्ति के पुष्प लगते हैं, जिनकी सुवास से मन का कोना-कोना भर जाता है. ध्यान का यह बीज अनेकों के जीवन में बिना अंकुरित हुए ही रह जाता है, तब जीवन रूखा-सूखा ही रहता है. हो सकता है ऐसे लोग बुद्धि के द्वारा श्रेष्ठ पदों को प्राप्त कर लें पर उनके अंतर में बसंत नहीं आता, बाहर से उसे लाने के उपाय करने पड़ते हैं. जीवन में कृत-कृत्यता का अनुभव नहीं होता, वह सन्तोष नहीं आता जिसे पाकर सब धन फीके लगते हैं. गुरुजन ध्यान की इतनी महिमा इसीलिए करते हैं, इसके नियमित अभ्यास से हमारे भीतर के द्वार खुलने लगते हैं, एक गहन शांति और स्थिरता का अनुभव मन को होता है. इस अनिश्चतता भरे वातावरण में यदि मन सदा डांवाडोल होता रहे तो मानव को चैन कैसे मिल सकता है. इसलिए क्यों न आज से ही हम ध्यान को हम अपने जीवन का एक हिस्सा बनाएं.  

Thursday, May 21, 2020

जीने की जो कला सीख ले


जीवन एक अवसर है, प्रकृति की तरफ से मिला एक उपहार है, वही प्रकृति कभी-कभी अपना रौद्र रूप दिखाती है और लगता है जीवन समाप्त हो रहा है. कोविड का कहर क्या कम था जो अम्फन नामक भीषण समुद्री तूफान उड़ीसा व पश्चिम बंगाल में तबाही मचाने आ गया. तेज वर्षा और तेज हवाओं के कारण जान-माल का कितना नुकसान हुआ इसका पता तो बाद में चलेगा. अभी जो तस्वीरें देखने को मिल रही हैं उससे ज्ञात होता है तूफान का काफी असर हुआ है. उड़ीसा में लगभग हर साल ही तूफान आते हैं, वहाँ लोगों का मनोबल इनकी वजह से घटता नहीं है. तूफ़ान के बाद गुलाबी आकाश की तस्वीरें इसकी गवाही देती हैं. जीवन का क्रम फिर पहले की तरह चलने लगता है. वास्तव में मानव इस विशाल आयोजन में एक छोटा सा पुर्जा ही तो है, उसे अपने अस्तित्त्व के लिए हजारों वर्षों से कितना संघर्ष करना पड़ा है. यह बात और है कि इस संघर्ष में वह अपने आप से ही दूर होता चला गया है, वह जीना तो चाहता है पर जीने की कला भूल गया है. साहित्य, कला, संगीत, दर्शन जैसे विषयों को आज का युवा पढ़ना नहीं चाहता, वह तो अधिक से अधिक धन कमाने के लिए वाणिज्य और विज्ञान ही पढ़ना चाहता है. इसका प्रभाव यह हुआ है कि उसकी बुद्धि प्रखर हो गयी है पर भावना विकसित नहीं हुई है. भावनात्मक रूप से जो प्रबल है वही किसी भी संकट में अपना धैर्य बनाये रख सकता है. 

Wednesday, May 20, 2020

सदा जानने को उत्सुक जो


मानव सुख का आकांक्षी है, किंतु ऐसा सुख वह नहीं चाहता जो बिना किसी श्रम के उसे उपलब्ध हो जाये. वह अपने सुख का निर्माण भी स्वयं ही करना चाहता है. छोटा बच्चा पालने में आराम से पड़ा है, पर वह स्थिर नहीं बैठता, जितना हो सके हाथ-पैर हिलाता है, यदि ऊपर कोई खिलौना लटका हुआ है, उसे पकड़ना चाहता है. कुछ पाने की उसकी दौड़ पालने से ही आरंभ हो जाती है. करवट बदलना आते ही वह बैठना शुरू कर देता है और चलना सीखते ही जल्दी भागने भी लगता है. मानव के भीतर जो चेतना है वह अग्नि की भांति ऊपर ही ऊपर जाना चाहती है. कुछ वैज्ञानिक अंतरिक्ष का रहस्य खोजने में लगे हैं और कई सागर की अतल गहराइयों का. हमारे ऋषि भी एक वैज्ञानिक की भांति वर्षों तक प्रयोग करते थे, उन्होंने भी कई खोजें की, साथ ही वे उस चेतना को भी जानना चाहते थे जो सदा ही उन्हें आगे बढ़ने की प्रेरणा देती थी. यही खोज भारत को अन्य राष्ट्रों से अलग करती है. जो हमें चैन से बैठने नहीं देता आखिर भीतर वह क्या है? कौन विचारता है ? कौन चाहता है ? कौन कर्म के लिए प्रेरित करता है ? इन प्रश्नों के उत्तर पाने के लिए ही सम्भवतः अध्यात्म शास्त्र की रचना हुई होगी.  

Friday, May 15, 2020

स्वयं को जिसने जान लिया है


अध्यात्म का अर्थ है आत्मा का अध्ययन, आत्मा यानि अपने भीतर की शुद्ध चेतना का अध्ययन. हम देह को जानते हैं, उसकी देख-रेख करते हैं, व्यायाम करके उसे स्वस्थ रखने का प्रयास करते हैं, सन्तुलित भोजन ग्रहण करके दीर्घ आयु पाना चाहते हैं. मन से सोच-विचार करते हैं, संकल्प उठाते हैं, उन्हें पूरा करने का प्रयत्न करते हैं, मन जब थक जाता है, उसका रंजन करने के लिए पुस्तकें पढ़ते हैं, टीवी देखते हैं और घूमने जाते हैं. बुद्धि के द्वारा धन और यश कमाते हैं, बुद्धि हमें सदा लाभ की तरफ ले जाती है, सदा यही समझाती है कि जितना हो सके संग्रह करें जितना हो सके संबंध बनाएँ ताकि हम सुरक्षित हो सकें. अपनी सुरक्षा के लिए हम जीवन भर प्रयत्नशील रहते हैं क्योंकि हम स्वयं को मरणशील देह ही मानते हैं, जिसे बनाये रखने के लिए धन चाहिए. इस मन-कायिक अस्तित्त्व को ही हम अपना स्वरूप जानते हैं. ‘मै कहकर हम इसे ही प्रस्तुत करते हैं, समाज इसका एक नाम देता है, हम उस नाम को ही अपना परिचय मानकर सन्तुष्ट हो जाते हैं. यदि कभी किसी शास्त्र या सन्त के वचन हमें सुनने को मिलते हैं तो ज्ञात होता है, जो हम स्वयं को मानते हैं वह हैं ही नहीं, हम तो इस देह-मन के पीछे स्थित वह चेतना हैं, जिसे न दीर्घायु के लिए प्रयत्न करना है क्यों कि वह अजर है और न ही रंजन करने के लिए उसे कुछ चाहिए क्योंकि वह स्वयं आनंद स्वरूप है. अध्यात्म इसी चेतना से जुड़ने का नाम है.

Thursday, May 14, 2020

चकित हुआ जो मन देखेगा

शिव सूत्र में शिव कहते हैं विस्मय योग की भूमिका है. योग में स्थित होने का अर्थ है समता में टिक जाना, जीवन में गहन सन्तुष्टि का अनुभव करना अथवा कृतकृत्य हो जाना. विस्मय से योग की इस यात्रा का आरंभ होता है. जब आकाश में स्थित अरबों तारों को देखकर मन चकित रह जाता है, सागर की गहराई में स्थित अनोखे प्राणी संसार को देखकर आश्चर्य होता है तो कुछ पलों के लिए मन ठहर जाता है. एक बच्चे के लिए सारा जगत ही विस्मय का कारण है इसीलिए वह आनंद से भरा होता है. सुबह का उगता हुआ सूरज, फूलों पर मंडराती तितलियाँ, जुगनुओं का टिमटिमाना उसके लिए विस्मयकारी हैं, पर जैसे -जैसे वह बड़ा होने लगता है किताबों में उनके बारे में पढ़कर उसे वे सब बातें सामान्य ही प्रतीत होती हैं. विज्ञान ने सब प्रश्नों के उत्तर खोज लिए हैं, किन्तु अभी भी प्रकृति के अनेक रहस्यों से वह पर्दा नहीं उठा पाया है. एक छोटा सा वायरस ही उसकी प्रतिष्ठा को धूल-धूसरित करने के लिए काफी है. 

Wednesday, May 13, 2020

जो गुरुवाणी पर करे मनन


भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं संशय आत्मा विनश्यति, अर्थात जिस व्यक्ति में संशय करना  उसका स्वभाव ही बन गया है वह कभी सुख को उपलब्ध नहीं हो सकता. संसार विश्वास पर चलता है, उसके बिना जीवन में एक ठहराव आ जाता है. संशय बुद्धि करती है और श्रद्धा भावना का क्षेत्र है. अपने-अपने स्थान पर जीवन में दोनों की आवश्यकता है. यदि भीतर श्रद्धा और संशय ऊपर-ऊपर है तो व्यक्ति किसी दिन ज्ञान को उपलब्ध हो सकता है. श्रद्धा के बिना केवल संशय करना अपने जीवन को आगे बढ़ने से रोकना ही है. श्रद्धावान को ही ज्ञान मिलता है, ऐसा ज्ञान जिसके आने से भीतर शांति का अनुभव होता है.  ठहरी हुई झील में भी कुछ तरंगें होती हैं पर ज्ञान की उपलब्धि से ऐसी चिर शांति भीतर उत्पन्न  हो जाती है जो कभी नष्ट नहीं होती.

Monday, May 11, 2020

समता में जो मन टिक जाये

अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय और आनंदमय इन पांच कोशों के भीतर हमारा वास है. जब चेतना अन्नमय कोष से जुड़ी होती है उसे जरा-मरण का भय लगता है, प्राणमय कोष में रहकर भूख-प्यास का अनुभव होता है. मनोमय कोष के कारण हम शोक-मोह का अनुभव करते हैं, विज्ञानमय कोष ही हमारे सुख-दुःख के अनुभव का कारण है. आनंदमय कोष आत्मा का निकटस्थ है, इसमें ब्रह्म का आनन्द है किन्तु यह सदा उपलब्ध नहीं होता. जब साधक साधना के द्वारा अन्य चार कोशों के पार चला जाता है तब इसका अनुभव करता है. यहाँ असीमता का अनुभव होता है तथा विषाद और भय का लोप हो जाता है. ध्यान और समाधि के द्वारा इसमें टिकने का सामर्थ्य बढ़ता है, तब सुख-दुःख में समता प्राप्त होती है, जिसे कृष्ण योग में स्थित होना कहते हैं. मानव जीवन में ही इस समता को प्राप्त करना सम्भव है. 

Sunday, May 10, 2020

ममता की जो मूरत है


धरती को हम माँ कहकर बुलाते हैं. नदियों को भी माँ का दर्जा  देते हैं. बच्चा जो भाषा सर्वप्रथम सीखता है, उसे भी मातृ भाषा कहा जाता है. भारत की महान संस्कृति में माँ को बहुत सम्मान दिया गया है. गौरी-शंकर, सीता-राम हो या राधा-श्याम - पहले माँ का नाम आया है. ज्ञान की देवी सरस्वती माँ, धन की देवी लक्ष्मी माँ और शक्ति की देवी पार्वती माँ की पूजा देवता भी करते हैं. सृष्टि के सृजन में तथा उसके पालन में माँ के योगदान को कौन नकार सकता है. माँ का प्रेम उस आकाश की तरह विशाल होता है जो सबको आधार देता है और उस सागर की तरह गहरा होता है जिसकी गहराई को कोई माप नहीं सकता. माँ संतान से कुछ नहीं चाहती, वह केवल उसे प्रसन्न देखना चाहती है. संतान कितना भी नाम, धन कमा ले पर माँ उसकी आवाज सुनकर ही जान जाती है कि वह सुखी है या किसी बात से चिंतित. अवश्य ही परमात्मा ने उसके हृदय में कोई सूक्ष्म यंत्र लगाया है जिससे वह बच्चे की आँखों को पढ़ लेती है, दूर होने पर उसकी आवाज को पढ़ लेती है और दुआओं का एक दरिया उसके अंतर से सहज ही बहने लगता है. मातृ दिवस पर माँ होने के उस अहसास को नमन जो हर कोई अपने दिल में जगा सकता है. प्रेम का वह स्रोत यदि भीतर जाग जाये तो उसकी झलक पा सकता है. 

Thursday, May 7, 2020

स्वयं को जिसने जान लिया है


आज बुद्ध पूर्णिमा है. भारत के इतिहास में बुद्ध का आगमन एक अभूतपूर्व घटना है. अपने जीवन और उपदेशों से उन्होंने लाखों लोगों को जीवन का मार्ग दिखाया और आज भी दिखा रहे हैं. वह अपने साधकों से कहते थे, स्वयं को जानो, देह किन तत्वों से बनी है उन्हें भी जानो. मनसा, वाचा और कर्मणा अपने कर्मों के प्रति सजग रहो, अर्थात मन, वाणी अथवा शरीर से जो भी कार्य उनसे दिन भर में होते हैं, वे करने योग्य थे या नहीं, इसकी परीक्षा करते रहो. अपने हृदय को क्रोध, राग-द्वेष और आसक्ति से दूर रखो. नेत्र, नासिका, कर्ण, त्वचा जिह्वा तथा मन को व्यर्थ शक्ति का अपव्यय न करने दो. ज्ञान की शक्ति के द्वारा उन्हें नियंत्रित करके अपने साथियों को भी प्रेरित करो. धन, यश और इन्द्रियों के सुख के पीछे मत भागो. ध्यान के अभ्यास द्वारा उस आंतरिक सुख और शांति का अनुभव करो जो तुम्हारा स्वभाव है. 

Tuesday, May 5, 2020

ज्योति जलेगी जिस पल मन में

जब हम अध्यात्म के क्षेत्र में कदम रखते हैं, जब हम वास्तव में स्वयं के अनंत रूप से परिचित होना चाहते हैं, सारा जगत हमारा घर बन जाता है. हमारे मन में जब किसी बात के प्रति संदेह उत्पन्न होता है तो हमें जानना चाहिए की यह जहाँ से आया है वहाँ गहरा विश्वास है. मन उसी के आधार पर तर्क करता है जो वह जानता है. यदि हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि हमारी छोटी सी बुद्धि जितना जानती है अस्तित्त्व उससे कहीं अधिक है तो हृदय के द्वार खुलने लगते हैं. जब हम किसी भी स्थिति का सामना सहज रूप से कर सकते हैं, मन का संतुलन बना रहता है, तो मानना चाहिए कि उस गहराई से हम जुड़े हैं. जीवन में हम गतिमयता का वरण तभी करते हैं जब जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण अति विशाल होता है. हमारे भीतर एक ऐसी चेतना का जन्म होता है जो साक्षी रहकर जो भी आवश्यक हो उसे करने की प्रेरणा देती है. हमारी खोज यदि सच्ची है तो प्रकृति हमारा मार्गदर्शन करती है. 

चाह मिटी चिंता गयी

बुद्ध कहते हैं, तृष्णा दुष्पूर है, अर्थात मन में उठी इच्छा को तृप्त करना असम्भव है. एक इच्छा यदि पूर्ण हो गयी तो तत्क्षण दूसरी सिर उठा लेती है. यह इच्छा किसी भी तरह की हो. धन, यश, संतान, सुख, सुविधा प्राप्ति की अथवा भ्रमण करने, ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा कभी भी तृप्त नहीं की जा सकती. जैसे अग्नि का स्वभाव जलाना है, अतृप्त रहना इच्छा का स्वभाव है. मानव इस सत्य को भूल जाता है और इस असंभव कार्य को पूरा करने में अपना सारा जीवन लगा देता है. हमारे भीतर जानने की शक्ति, क्रिया शक्ति तथा इच्छा करने की शक्ति तीनों हैं, हम शेष दो शक्तियों को इस तीसरी के लिए ही लगा देते हैं. जानने की शक्ति से हम सृष्टि का सत्य भी जान सकते हैं, जिसे कृष्ण ज्ञान योग कहते हैं और क्रिया शक्ति को कर्मयोग में बदल सकते हैं. 

Monday, May 4, 2020

पंचम वेद कहाता है जो


टीवी पर आजकल 'महाभारत' दिखाया जा रहा है. पहले भी देखा है पर रामायण की तरह यह कथा भी इतनी अनोखी है कि बार-बार देखने पर भी नई जैसी लगती है. कहते हैं जो महाभारत में नहीं है वह कहीं नहीं है अर्थात इस दुनिया में जो कुछ भी है उसका जिक्र कहीं न कहीं महाभारत में हो चुका है. एक लाख से अधिक श्लोकों के द्वारा चन्द्रवंशी राजाओं की यह कथा भारत के भव्य इतिहास को भी बताती है और विश्व का प्रथम महाकाव्य होने का गौरव भी रखती है. इसे पंचम वेद भी कहते हैं और पुराण भी कहा जाता है. वेद व्यास ने इस अद्भुत ग्रन्थ को लिखवाने का कार्य गणपति को सौंपा था. भगवद्गीता महाभारत का ही एक भाग है, जो भारत का प्रमुख धार्मिक ग्रन्थ है. वर्तमान पीढ़ी को इसे मूल रूप में पढ़ने का अवसर तो नहीं मिलेगा पर धारावाहिक के रूप में ही वे इससे परिचित हो रहे हैं और अपनी प्राचीन गौरवशाली परंपरा पर गर्व कर रहे हैं. इसके विभिन्न पात्रों पर कितने ही नाटकों व उपन्यासों की रचना हो चुकी है. भारत के कण-कण में इन प्राचीन गाथाओं की गन्ध बसी है. मानव मन की कितनी ही गाँठों को खोलती हैं इसकी कथाएं. कोरोना के कारण घरों में रहने को विवश नागरिकों के लिए अपने अतीत से परिचित होने का यह एक सुअवसर भी है. 

Sunday, May 3, 2020

विपदा में जो हाथ बढ़ेगा

विश्व के अन्य कई देशों की तरह भारत में भी लॉक डाउन अभी  खत्म नहीं हुआ है, कोरोना ने पूरी दुनिया में मजबूती से अपने पैर पसार लिए हैं और वह जल्दी विदा लेने के मूड में नजर आता नहीं दिख रहा है. वैज्ञानिक अभी तक कोई वैक्सीन नहीं खोज पाए हैं, हमें ही इससे बचाव करते हुए जीना सीखना होगा. अनावश्यक घर से बाहर न निकलना पहला नियम है. भीड़भाड़ से बचाव इससे स्वतः ही हो जायेगा. सरकार ने जिन्हें छूट दी है वे दुकानें तथा प्रतिष्ठान खुल रहे हैं किन्तु उनमें जाने से पहले हरेक को सजगता बरतनी है. मास्क का उपयोग तथा सेनिटाइजर का बार-बार प्रयोग स्वभाव में ही शामिल कर  लेना होगा. जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक है, उन्हें बेशर्त दूसरों की सहायता के लिए आगे आना होगा. इतिहास में ऐसे अवसर कभी-कभी ही आते हैं जब पूरी मानवता का अस्तित्त्व ही खतरे में पड़ जाता है, तब दुनिया समर्थ और सक्षम का आश्रय लेती है. जिस तरह से भी हो सके हमें मदद के लिए हाथ बढ़ाना है. हर धर्म में दान धर्म का बहुत महत्व बताया गया है. सरकार ने अपने भंडार असमर्थों के लिए खोल दिए हैं, हमें भी उसकी सहायता के लिए तत्पर रहना होगा.