शिव सूत्र में शिव कहते हैं विस्मय योग की भूमिका है. योग में स्थित होने का अर्थ है समता में टिक जाना, जीवन में गहन सन्तुष्टि का अनुभव करना अथवा कृतकृत्य हो जाना. विस्मय से योग की इस यात्रा का आरंभ होता है. जब आकाश में स्थित अरबों तारों को देखकर मन चकित रह जाता है, सागर की गहराई में स्थित अनोखे प्राणी संसार को देखकर आश्चर्य होता है तो कुछ पलों के लिए मन ठहर जाता है. एक बच्चे के लिए सारा जगत ही विस्मय का कारण है इसीलिए वह आनंद से भरा होता है. सुबह का उगता हुआ सूरज, फूलों पर मंडराती तितलियाँ, जुगनुओं का टिमटिमाना उसके लिए विस्मयकारी हैं, पर जैसे -जैसे वह बड़ा होने लगता है किताबों में उनके बारे में पढ़कर उसे वे सब बातें सामान्य ही प्रतीत होती हैं. विज्ञान ने सब प्रश्नों के उत्तर खोज लिए हैं, किन्तु अभी भी प्रकृति के अनेक रहस्यों से वह पर्दा नहीं उठा पाया है. एक छोटा सा वायरस ही उसकी प्रतिष्ठा को धूल-धूसरित करने के लिए काफी है.
वाह!! अनीता जी, विस्मय पर विस्मित करता आपका ये लघु सा लेख बहुत सुंदर, सार्थक है। हार्दिक शुभकामनायें 🙏🙏💐💐🌹🌹💐💐
ReplyDeleteस्वागत व आभार रेणु जी !
ReplyDeleteशिव ही विज्ञान है और विज्ञान ही शिव है या कहें दोनो एक दूसरे में समाहित हैं। सुन्दर।
ReplyDeleteसुंदर वचन ! आभार !
Deleteउपयोगी उपदेश
ReplyDeleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०५-२०२०) को 'विडंबना' (चर्चा अंक-३७०३) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
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अनीता सैनी
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteजो हम समझ नहीं पाते ,हमें विस्मित करता है और मन में प्रश्न जगाता है ,यही जिज्ञासा समाधान खोजने में कुछ नया उपलब्धि पाती है .
ReplyDeleteहाँ,एक अनदेखा वायरस आकर सबके अहम को तोड़ चूका हैं। शिक्षाप्रद लेख ,सादर नमन अनीता जी
ReplyDeleteअचंभित करने वाला/विस्मयकारी लेख !!
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteसही कहा विज्ञान मात खा गया है इस बार...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सार्थक चिन्तनपरक सृजन।