बुद्ध कहते हैं, तृष्णा दुष्पूर है, अर्थात मन में उठी इच्छा को तृप्त करना असम्भव है. एक इच्छा यदि पूर्ण हो गयी तो तत्क्षण दूसरी सिर उठा लेती है. यह इच्छा किसी भी तरह की हो. धन, यश, संतान, सुख, सुविधा प्राप्ति की अथवा भ्रमण करने, ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा कभी भी तृप्त नहीं की जा सकती. जैसे अग्नि का स्वभाव जलाना है, अतृप्त रहना इच्छा का स्वभाव है. मानव इस सत्य को भूल जाता है और इस असंभव कार्य को पूरा करने में अपना सारा जीवन लगा देता है. हमारे भीतर जानने की शक्ति, क्रिया शक्ति तथा इच्छा करने की शक्ति तीनों हैं, हम शेष दो शक्तियों को इस तीसरी के लिए ही लगा देते हैं. जानने की शक्ति से हम सृष्टि का सत्य भी जान सकते हैं, जिसे कृष्ण ज्ञान योग कहते हैं और क्रिया शक्ति को कर्मयोग में बदल सकते हैं.
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 06 मई 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteसार्थकता के विभिन्न आयाम दर्शाती सुंदर प्रस्तुति आदरणीय दीदी.
ReplyDeleteसादर