Monday, May 25, 2020

देने की जो कला सीख ले

हमारा आज कल की देन है तो जाहिर सी बात है कि आने वाला कल आज की देन होने वाला है. आज जो हमने पाया है वह जो कल दिया था उसका परिणाम है तो आज जो हम देने वाले हैं उसी का प्रतिदान कल मिलने वाला है. आज यदि हम केवल अभी की चिंता करते रहे और यह सोचकर देने से चूक गए कि अभी तो मौज कर लें तो भविष्य कैसा होगा इसकी कल्पना हम सहज ही कर सकते हैं. इस देने में हमारे वे सारे कर्म सम्मिलित हो जाते हैं जो निष्काम भाव से हम करते हैं. इसमें वह सारा श्रम भी आ जाता है जो हम स्वयं को तथा अपने आसपास के लोगों के उत्तम स्वास्थ्य, समुचित आजीविका तथा स्वच्छता के लिए करते हैं. उस असीम के प्रति की गयी हमारी अर्चना- वंदन तथा ध्यान-पूजा भी इसमें आ जाती है और इसके साथ ही आता है किसी की जरूरतों को समझ कर बिन मांगे ही उसकी सहायता कर  देना. हम देखते हैं कि सुबह से शाम तक हमारा जीवन कितने रूपों में औरों पर निर्भर है. दूध वाला, पेपर वाला, कामवाली, सफाई कर्मचारी, अख़बार वाला, सब्जी वाला, धोबी, आदि तो हमारे सहायक हैं ही, इसके अतिरिक्त किसान, दर्जी, मोची,  बैंक के कर्मचारी और न जाने कितने व्यक्तियों के योगदान से हमारा जीवन चलता है. ऐसे में यदि हमारे समय और ऊर्जा  का थोड़ा सा भाग भी यदि किसी ऐसे कार्य में लगता है जिससे किसी को लाभ हो तो हमारा भविष्य सुंदर होने ही वाला है.         

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