जब हम अध्यात्म के क्षेत्र में कदम रखते हैं, जब हम वास्तव में स्वयं के अनंत रूप से परिचित होना चाहते हैं, सारा जगत हमारा घर बन जाता है. हमारे मन में जब किसी बात के प्रति संदेह उत्पन्न होता है तो हमें जानना चाहिए की यह जहाँ से आया है वहाँ गहरा विश्वास है. मन उसी के आधार पर तर्क करता है जो वह जानता है. यदि हम यह स्वीकार कर लेते हैं कि हमारी छोटी सी बुद्धि जितना जानती है अस्तित्त्व उससे कहीं अधिक है तो हृदय के द्वार खुलने लगते हैं. जब हम किसी भी स्थिति का सामना सहज रूप से कर सकते हैं, मन का संतुलन बना रहता है, तो मानना चाहिए कि उस गहराई से हम जुड़े हैं. जीवन में हम गतिमयता का वरण तभी करते हैं जब जीवन के प्रति हमारा दृष्टिकोण अति विशाल होता है. हमारे भीतर एक ऐसी चेतना का जन्म होता है जो साक्षी रहकर जो भी आवश्यक हो उसे करने की प्रेरणा देती है. हमारी खोज यदि सच्ची है तो प्रकृति हमारा मार्गदर्शन करती है.
प्रेरक आलेख
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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