Friday, May 15, 2020

स्वयं को जिसने जान लिया है


अध्यात्म का अर्थ है आत्मा का अध्ययन, आत्मा यानि अपने भीतर की शुद्ध चेतना का अध्ययन. हम देह को जानते हैं, उसकी देख-रेख करते हैं, व्यायाम करके उसे स्वस्थ रखने का प्रयास करते हैं, सन्तुलित भोजन ग्रहण करके दीर्घ आयु पाना चाहते हैं. मन से सोच-विचार करते हैं, संकल्प उठाते हैं, उन्हें पूरा करने का प्रयत्न करते हैं, मन जब थक जाता है, उसका रंजन करने के लिए पुस्तकें पढ़ते हैं, टीवी देखते हैं और घूमने जाते हैं. बुद्धि के द्वारा धन और यश कमाते हैं, बुद्धि हमें सदा लाभ की तरफ ले जाती है, सदा यही समझाती है कि जितना हो सके संग्रह करें जितना हो सके संबंध बनाएँ ताकि हम सुरक्षित हो सकें. अपनी सुरक्षा के लिए हम जीवन भर प्रयत्नशील रहते हैं क्योंकि हम स्वयं को मरणशील देह ही मानते हैं, जिसे बनाये रखने के लिए धन चाहिए. इस मन-कायिक अस्तित्त्व को ही हम अपना स्वरूप जानते हैं. ‘मै कहकर हम इसे ही प्रस्तुत करते हैं, समाज इसका एक नाम देता है, हम उस नाम को ही अपना परिचय मानकर सन्तुष्ट हो जाते हैं. यदि कभी किसी शास्त्र या सन्त के वचन हमें सुनने को मिलते हैं तो ज्ञात होता है, जो हम स्वयं को मानते हैं वह हैं ही नहीं, हम तो इस देह-मन के पीछे स्थित वह चेतना हैं, जिसे न दीर्घायु के लिए प्रयत्न करना है क्यों कि वह अजर है और न ही रंजन करने के लिए उसे कुछ चाहिए क्योंकि वह स्वयं आनंद स्वरूप है. अध्यात्म इसी चेतना से जुड़ने का नाम है.

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