Thursday, October 3, 2019

मौन से ही वह द्वार खुलेगा



संत कहते हैं, शब्दों का इतना ही कार्य है कि भीतर मौन को उत्पन्न कर दे. मौन लक्ष्य है, शब्द साधन हैं. जैसे यदि कोई व्यक्ति एक प्रश्न पूछता है, फिर जवाब की प्रतीक्षा में रुक जाता है, उस क्षण भीतर मौन है. जवाब देने वाला व्यक्ति शब्दों के माध्यम से ही उत्तर देता है, पर सुनने वाला यदि उत्तर से संतुष्ट नहीं होता, तो भीतर एक अन्य प्रश्न का जन्म होता है, मौन खंडित हो जाता है. यदि उत्तर उसे स्वीकार्य है तो फिर एक क्षण के लिए मौन का अनुभव उसे हो सकता है. मौन का यह क्षण इतना छोटा होता है कि हम उसे चूक ही जाते हैं. उस मौन से ही अस्तित्त्व का द्वार खुलता है. शास्त्रों का प्रयोजन इतना ही है कि हमें भीतर के उस मौन से परिचित करा दे, विचार का जन्म किसी न किसी इच्छा के कारण होता है, इसीलिए मन से इच्छाओं के त्याग पर इतना जोर दिया गया है. भीतर जब मौन होता है, तब मन खो जाता है, चेतना केवल अपने शुद्ध स्वरूप में स्थित रहती है.

Wednesday, October 2, 2019

शब्दों के वह पार मिलेगा



समय परिवर्तन का ही दूसरा नाम है. जब मन थम जाता है, भीतर एक शांति और स्थिरता का अनुभव होता है, लगता है समय ठहर गया है. सारी सृष्टि मन से ही उत्पन्न होती है. मन में विचार जब तेजी से चल रहे हों, लगता है समय भी भाग रहा है. मन द्वारा किया गया परमात्मा का चिंतन हमें परमात्मा से दूर ही करता है, उसके निकट जाना हो तो हर चिंतना का त्याग करना होगा. शब्दों से जिसे जाना ही नहीं जा सकता ऐसा वह परम अस्तित्त्व है. इसीलिए वह समयातीत भी है और शब्दातीत भी, और उसका होना या न होना शब्दों द्वारा सिद्ध भी नहीं किया जा सकता और खंडित भी नहीं किया जा सकता.

Tuesday, October 1, 2019

थम कर पल भर बैठा हो जो



हम साध्य और साधन का भेद नहीं कर पाते इसलिए सदा असंतुष्ट बने रहते हैं. हमारे लिए जगत साध्य है और परमात्मा उसे प्राप्त करने का साधन, जबकि संसार को साधन बनाकर हमें स्वयं और परमात्मा के पास पहुँचना है. इस जगत में हम जो कुछ भी करते हैं वह कुछ न कुछ बनने अथवा पाने के लिए करते हैं. जो हमारे पास है, जैसे हम हैं, वह पर्याप्त नहीं है. यह दौड़ कभी खत्म होती नजर नहीं आती, संत कहते हैं यदि कोई थम जाये और जैसा वह है, जो उसके पास है, उसका मूल्यांकन करे अथवा तो कुछ भी न करे बस तटस्थ होकर रहे तो धीरे-धीरे वह प्रकट होने लगता है जो उसका मूल स्वभाव है. अपने स्वभाव में विश्राम पाते ही लगता है वह तो पहले से ही मिला हुआ है, जिसकी उसे तलाश है. इस ठहरने में एक बात और घटती है जो आवश्यक बदलाव है वह अपनेआप ही होने लगता है.