अप्रैल २००२
यदि मन एक ही अवस्था में टिक जाता है यही ध्यान है. यदि हम मन को प्रयास करके नहीं ठहरा रहे हैं, यह स्वतः विश्राम में है, निर्विकल्प बोध ही शेष है, यही ध्यान है और यदि कुछ देर तक मात्र बोध ही शेष रहे कोई संदेह भीतर न हो, और तब भीतर एक सहजता का जन्म होता है जिसे कोई ले नहीं सकता, यही ध्यान है.