Saturday, September 10, 2011

मिलन का क्षण


दिसंबर २००१ 

हमारा मूल तो वही है और वही हमें पोषता है. हमने न जाने कितने लेप खुद पर चढा रखे हैं. कभी बेबस और निरीह होकर सहानुभूति बटोरना चाहते हैं, कभी कुछ करके प्रशंसा बटोरना चाहते हैं. स्वयं राजा होकर मंगता बने बैठे हैं. कल्पना और स्मृति की दुनिया में विचरण करने वाले हम खुद से ही अपरिचित हैं. एक क्षण में ही यदि हम यह मुल्लमा उतार फेंके तो वही क्षण मिलन का क्षण होगा. एक पुकार यदि दिल से उठे तो वह सारे पर्दे खोल कर अपनी झलक दिखाता है. वह हमारा हितैषी हर पल बाट जोहता है कि कब हम भूले-भटके वापस घर लौट आयें.

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