Monday, September 26, 2011

भक्ति मार्ग


मार्च २००२ 
भक्ति मार्ग सरल है, लेकिन भक्ति उसी के हृदय में पल्लवित होगी जो स्वयं भी सरल है. भगवद् गीता में भगवान कृष्ण का वचन है कि निराकार की अपेक्षा साकार की पूजा करना साधक को शीघ्र प्रगति प्रदान करता है. अचिन्त्य, अव्यक्त, निराकार की अपेक्षा मनमोहन का सुहावना रूप हृदय को शीघ्र एकाग्र करता है. भक्ति मार्ग में हमें कुछ छोड़ना नहीं पड़ता बल्कि इष्ट को मन से जोड़ना होता है. धीरे-धीरे मन स्वयं ही व्यर्थ के कार्यों से विरक्त होता जाता है, आत्म ज्ञान प्रकट होता है. और इस सत्य की अनुभूति भी होती है कि हम नश्वर देह नहीं हैं ईश्वर के अविनाशी अंश हैं. 

2 comments:

  1. भक्ति मार्ग सरल है, जिसको सरल हृदय ही पाता है.
    आपने सुन्दर ढंग से निरूपण किया है.
    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

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  2. आपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
    जय माता दी..

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