प्रेम वहां नहीं होता जहाँ कोई उसका प्रतिदान चाहता है, वहाँ तो व्यापार होता है और जब किसी का मन अपनी ख़ुशी के लिए किसी अन्य पर निर्भर करता है तो वह आजाद नहीं है, वह प्रेम नहीं कर सकता. यह खुबसूरत दुनिया और इसमें बसने वाली हर शै से हमें प्यार तो करना है पर उन पर निर्भर नहीं होना है. आत्मनिर्भरता ही निडरता को जन्म देती है, जब हम किसी पर निर्भर नहीं रहेंगे तो भयभीत होने की भी जरूरत नहीं, एक नाजुक, बेसहारा, कमजोर और आश्रित होकर जीने से कहीं बेहतर है मजबूत आत्मशक्ति के साथ जीना, क्योंकि वह शक्ति कहीं बाहर से मिलने वाली नहीं है, हमारे अंदर ही मौजूद है. जगत में सच का सामना करते हुए निर्भयता पूर्वक अपनी बात कह देने का आत्मविश्वास लिए जीना ही सही मायनों में आजाद होकर जीना कहा जायेगा.
Tuesday, July 13, 2021
Sunday, July 11, 2021
जैसे कर्म करेगा मानव
प्रारब्ध ने हमें जो भी दिया है उसे सहर्ष स्वीकार करके हम जीवन को जीते हैं तो कई मुश्किलों से सहज ही बचे रहते हैं। जो भी बीज हमने अतीत में बोए हैं उनकी फसल हमें ही काटनी होगी। जिस मन में राग जगाया था, उसी में द्वेष की दीवार भी अपने आप खड़ी हो जाती है, जिसे हमें ही पाटना होगा। कोई भी कर्म देर-सवेर अपना फल दिए बिना नहीं मिटता है। जो भी हमें मिला है यदि उसे सबके साथ साझा करने की मंशा के साथ जीवन को जिएँ तो यह स्वतः ही सुंदर बन जाता है। एक परम शक्ति जो परम ज्ञानमयी भी है सदा ही इस सृष्टि का लालन-पालन कर रही है, उसका हाथ सदा ही हमारे सिर पर है, वह हमसे दूर नहीं है, इतना भरोसा मन में रखकर यदि हम जीवन के पथ पर कदम रखते हैं तो हर बाधा अपने आप ही मिट जाती है। अपने अंतर की गहराई में जाकर ही सच्चे जीवन से परिचय होता है और तब यह ज्ञान होता कि दुःख के बीज बोना या सुख के बीज बोना हमारे अपने हाथ में है। सजग होकर जीने की कला जिसने सीख ली है वही योग को प्राप्त हो सकता है।
Thursday, July 8, 2021
करत करत अभ्यास ते
हम प्रतिदिन अपने घर और आसपास की सफ़ाई करते हैं, वस्त्रों को स्वच्छ करते हैं किंतु गंदगी अपने आप ही आ जाती है। इसी तरह देह को स्वस्थ रखने और मन को प्रसन्न रखने का हमें अभ्यास करना होता है, मन में दुःख या चिंता अपने आप ही जाती है। यदि हमने साधना के द्वारा सुखी या संतुष्ट होने का अभ्यास नहीं किया तो मन स्वतः नकार की ओर जाता है। यदि मन में कामना है तो दुःख आने ही वाला है, यदि स्वयं में सुख लेने की कला सीख ली है तो कामनाएँ अपने आप ही सूखे पुष्पों की तरह झर जाती हैं। ज्ञान में स्थिर होने का अर्थ ही यही है कि हर परिस्थिति में मन की समता बनाए रखें। सुख में सुखी और दुःख में दुखी तो सभी होते हैं लेकिन जिसने अभ्यास किया है वही विचलित नहीं होता।
Saturday, July 3, 2021
कर्म यदि निष्काम हो सकें
जब हम अपने भीतर शक्ति के स्रोत से जुड़ जाते हैं तब हमसे सहज ही ऐसे कर्म होते हैं जिनमें कर्ता भाव नहीं होता. निष्काम कर्म अथवा सेवा कर्म ऐसे ही कर्मों को कहते हैं. जगत को सुंदर बनाने के लिए अथवा किसी की सहायता के लिए किये गए ऐसे कर्मों से कोई कर्म बन्धन नहीं होता. आत्मा की शक्ति अनायास ही हमें ऐसे कर्मों को करने के लिए प्रेरित करती है. श्रम की महत्ता को समझकर हम कामगारों व मजदूरों के प्रति सम्मान की भावना भी जगाते हैं. ध्यान के द्वारा स्वयं के वास्तविक स्वरूप का परिचय पाना साधना की पहली सीढ़ी है. इसके बाद जगत कल्याण के लिए उस ऊर्जा का उपयोग अगला पड़ाव है. इससे हम प्रारब्ध से मिलने वाले सुख के प्रभाव से अछूते रह जाते हैं और अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं. सृष्टि के आयोजन में परमात्मा के साथ मिलकर हम भी अपना योगदान दे रहे हैं ऐसी भावना हमें सदा प्रसन्नचित्त रखती है.