हम प्रतिदिन अपने घर और आसपास की सफ़ाई करते हैं, वस्त्रों को स्वच्छ करते हैं किंतु गंदगी अपने आप ही आ जाती है। इसी तरह देह को स्वस्थ रखने और मन को प्रसन्न रखने का हमें अभ्यास करना होता है, मन में दुःख या चिंता अपने आप ही जाती है। यदि हमने साधना के द्वारा सुखी या संतुष्ट होने का अभ्यास नहीं किया तो मन स्वतः नकार की ओर जाता है। यदि मन में कामना है तो दुःख आने ही वाला है, यदि स्वयं में सुख लेने की कला सीख ली है तो कामनाएँ अपने आप ही सूखे पुष्पों की तरह झर जाती हैं। ज्ञान में स्थिर होने का अर्थ ही यही है कि हर परिस्थिति में मन की समता बनाए रखें। सुख में सुखी और दुःख में दुखी तो सभी होते हैं लेकिन जिसने अभ्यास किया है वही विचलित नहीं होता।
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