Saturday, July 3, 2021

कर्म यदि निष्काम हो सकें

 जब हम अपने भीतर शक्ति के स्रोत से जुड़ जाते हैं तब हमसे सहज ही ऐसे कर्म होते हैं जिनमें कर्ता भाव नहीं होता. निष्काम कर्म अथवा सेवा कर्म ऐसे ही कर्मों को कहते हैं. जगत को सुंदर बनाने के लिए अथवा किसी की सहायता के लिए किये गए ऐसे कर्मों से कोई कर्म बन्धन नहीं होता. आत्मा की शक्ति अनायास ही हमें ऐसे कर्मों को करने के लिए प्रेरित करती है. श्रम की महत्ता को समझकर हम कामगारों व मजदूरों के प्रति सम्मान की भावना भी जगाते हैं. ध्यान के द्वारा स्वयं के वास्तविक स्वरूप का परिचय पाना साधना की पहली सीढ़ी है. इसके बाद जगत कल्याण के लिए उस ऊर्जा का उपयोग अगला पड़ाव है. इससे हम प्रारब्ध से मिलने वाले सुख के प्रभाव से अछूते रह जाते हैं और अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं. सृष्टि के आयोजन में परमात्मा के साथ मिलकर हम भी अपना योगदान दे रहे हैं ऐसी भावना हमें सदा प्रसन्नचित्त रखती है. 


2 comments:

  1. सुफल चिंतन ,साधुवाद !!

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