Thursday, February 28, 2019

फिर से स्वर्ग बने यह धरती


१ मार्च २०१९ 
भारत के उत्तर में स्थित धरती का स्वर्ग कहा जाने वाला काश्मीर अनेक दशकों से भय और आतंक के साये में जी रहा है. जिस काश्मीर के सुंदर शिकारे और बगीचे हमने फिल्मों में देखे हैं, उस काश्मीर में धर्म के नाम पर अलगाव के बीज बोये जा रहे हैं. हजारों सिपाही और आम आदमी इसमें मारे जा चुके हैं. आज पूरी दुनिया इसका कोई न कोई हल चाह रही है. जिस बात को भारत एक लम्बे समय से कहता आ रहा है, आज उसी बात को उसके मित्र देश भी कह रहे हैं. आज किसी से कश्मीर का दर्द छुपा नहीं है. वहाँ बच्चों की पढ़ाई में बाधा पड़ रही है, उनका व्यापार खत्म हो रहा है. आज जरूरत है इस समस्या का हल निकाला जाये. इस समस्या के कितने ही कारण हो सकते हैं, पर सबसे बड़ा कारण है भरोसे की कमी और असली धर्म से अपरिचय. आपसी प्रेम और विश्वास के बिना यह समस्या हल नहीं हो सकती. धर्मान्धता, अहंकार और अविश्वास के कारण ही दो पड़ोसी देश, जो कभी एक थे, भाईचारे और सौहार्द के साथ रह नहीं पा रहे हैं, जिसका खामियाजा निर्दोष नागरिकों को भुगतना पड़ता है. 

Wednesday, February 27, 2019

झुक जाये जो उन चरणों में


२८ फरवरी २०१९ 
संत व शास्त्र हमें बताते हैं अहंकार के पर्दे के पीछे ही छिपा है हमारा शाश्वत स्वरूप, जिसे पहचान कर हम अखंड शांति का अनुभव कर सकते हैं, जो हमें पूर्ण स्वाधीनता का अनुभव कराता है. एक स्वाधीन व्यक्ति सहज ही आनंदित रहता है. हमारी अशांति का कारण क्या है, हम किन-किन बन्धनों को अनुभव करते हैं, और क्या है जो हमें सहज रहने से रोकता है, इन प्रश्नों के उत्तर खोजना अहंकार से मुक्त होने का प्रथम कदम है. कई बार हम स्वाभिमान और अहंकार के भेद को नहीं समझते इसलिए अहंकार को बढ़ाए चले जाते हैं, यह जानते हुए भी कि ऐसा करने से हम अपने लक्ष्य से दूर ही जाते हैं. स्वयं को ऋषियों की परंपरा का वाहक मानना, परमात्मा की सृष्टि का एक अंग मानना और शुद्ध आत्मा मानना स्वाभिमान है, जिसकी रक्षा हमें करनी है. स्वयं को पद, धन, हुनर, जाति, लिंग, पन्थ से जोड़कर एक सामान्य व्यक्ति मानना अहंकार है. यदि हमारा पद बड़ा है, धन ज्यादा है, हम विभिन्न कलाओं को जानते हैं, हम किसी विशिष्ट पन्थ के अनुयायी हैं, तो हम अपने से कम पद वाले, कम धनी व्यक्ति को हीन मानकर स्वयं को विशेष अनुभव करेंगे, यही अहंकार है जो हमें सहजता से दूर रखता है. मानव होने के नाते सभी परमात्मा का अंग हैं, सभी मूलतः शुद्ध आत्माएं हैं, ऐसा भाव भीतर रखते हुए बाहर का व्यवहार चलाना है. ऐसा करने से बाहरी भेद बना ही रहेगा, लेकिन मन सदा एकत्व का अनुभव करेगा और मुक्त रहेगा.

देश के लिए जिए देश के लिए मरे


२७ फरवरी २०१९ 
अन्याय का सामना करना और उसका प्रतिकार करना एक सैनिक का धर्म है. हमारे देश की सेना अपने शौर्य और पराक्रम के लिए सारे विश्व में जानी जाती है. यह सेना संयुक्त राष्ट्र संघ की शांति सेनाओं का अनेक बार अंग रही है और देश में अनेक आपदाओं से नागरिकों की रक्षा करने में इसने अपना योगदान दिया है. आज भारत के इतिहास में एक यादगार दिवस है जब भारतीय वायु सेना ने बड़ी बहादुरी से पड़ोसी देश में स्थित आतंक के ठिकानों को नष्ट किया है. देश आज एक राहत की साँस ले रहा है और यह बात उसे भरोसा देती है कि भविष्य में होने वाली आतंकवादी घटनाओं के स्रोत को ही नष्ट कर दिया गया है. आजादी के बाद से ही कश्मीर को हथियाने के लिए पड़ोसी देश ने कितने युद्ध किये लेकिन एक में भी सफल नहीं हुआ, तब उसने छद्म युद्ध का सहारा लिया और आतंकवादियों के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने लगा. आज भी सारे विश्व में अलग-थलग हुआ वह देश आतंकवादियों के खिलाफ कोई ठोस कदम उठाने से इंकार कर रहा है, इसका अर्थ है कि कहने को वे आतंकवादी हैं वास्तव में वे उसकी सेना का एक भाग ही हैं.   

Monday, February 25, 2019

सकल पदारथ हैं जग माहीं


२६ फरवरी २०१९ 
संत कवि तुलसीदास ने कहा है, ‘सकल पदारथ हैं जग माहीं, कर्महीन नर पावत नाहीं’. इसका एक अर्थ यह भी है कि एक कर्मशील व्यक्ति को, जो भी वह चाहे मिल सकता है. हम सभी ने कभी जो चाहा था वह आज हमें मिला है, यदि हम अपनी वर्तमान स्थति से प्रसन्न नहीं है तो इसका अर्थ हुआ हमने ही कुछ ऐसा चाहा था जो उपयुक्त नहीं था. हमें क्या चाहना है यदि इसकी समझ ही नहीं होगी तो भविष्य में भी हम अपनी प्राप्ति से संतुष्ट नहीं हो सकते. हर मनुष्य के भीतर तीन शक्तियाँ प्रतिपल काम करती हैं, जानने की शक्ति, इच्छा करने की शक्ति और कर्म करने की शक्ति. हमारा बुद्धि पक्ष अर्थात जानने की क्षमता यदि सही नहीं है, तो हम गलत इच्छा का चुनाव कर लेते हैं और फिर उसी दिशा में हमारे कर्म भी होने लगते हैं. जानकारी और सूचना को ही हम यदि ज्ञान समझते हैं तो यह भी भूल है. ज्ञान का अर्थ है सही-गलत का विवेक, सत्य-असत्य का विवेक और शाश्वत–नश्वर का विवेक. हमारी दृष्टि यदि शुभ, सत्य और शाश्वत का वरण करती है तो जीवन में आनंद के फूल सहज ही खिलेंगे.

बुद्धियोग में टिक जाये मन


२५ फरवरी २०१९ 
भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं, कर्म करो किन्तु फल की इच्छा मत करो. बुद्धि को समता में स्थित करके कर्म करो. इस पर अर्जुन ने कहा, यदि बुद्धि का महत्व अधिक है तो हम कर्म ही क्यों करें,  कृष्ण ने कहा क्योंकि कर्म किये बिना कोई पल भर भी नहीं रह सकता. स्वभाव के वशीभूत होकर हर व्यक्ति कोई न कोई कर्म करता ही है, यदि वह अपने कर्म का फल भी चाहता है तो कर्म उसके लिए बंधन बन जाता है. फल मिलने से पूर्व उसका मन समता में स्थित नहीं रह पाता और फल यदि सुखद हुआ तो वह अपने भीतर लोभ जगाता है दुखद हुआ तो शोक करता है. लोभ और शोक दोनों ही मन के विकार हैं. इसके विपरीत फल की इच्छा त्याग कर कर्म करने से मन विकारों से मुक्त होता है, भीतर स्थिरता का अनुभव होता है. भक्त सभी कर्मों को भगवान की पूजा मानकर करता है और ज्ञानी कर्ताभाव से मुक्त होकर कर्म करता है. ज्ञानी स्वयं को आत्मा जानकर अकर्ता भाव में स्थित हो जाता है और प्रकृति में कर्म हो रहे हैं ऐसा जानकर सदा समता में रहता है.

Friday, February 22, 2019

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी

२३ फरवरी २०१८ 
अंतर में प्रेम हो, बुद्धि में ज्ञान हो हाथों में शक्ति हो तो जीवन संवरने लगता है. आज भारत का हर नागरिक एक नये विश्वास के साथ अपने भविष्य को गढ़ रहा है. नर हो या नारी सभी के भीतर देशभक्ति का दैवीय गुण जाग रहा है. उसके ‘मैं’ का विस्तार हो रहा है. वह एक बड़े धरातल पर खड़ा होकर सोचने की ताकत अपने भीतर महसूस कर रहा है. उसकी बात सुनी जा रही है और उसके पास कहने के लिए कुछ है इसकी उसे खबर भी लग रही है. दुनिया जब दिखावे की ओर बढ़ रही है भारत में सेवा और सत्य की राह पर चलने का संदेश पहुंचाया जा रहा है. आतंकवाद यहाँ जड़ें नहीं फैला सकता, यहाँ की मिट्टी में अद्वैत की खुशबू आती है, सेना का हर नौजवान भी यहाँ पहले दुश्मन को चेतावनी देता है, उसके बाद ही गोली चलाता है. हमें अपने पूर्वजों से एक महान संस्कृति का उपहार मिला है और हर भारतीय उसकी रक्षा करने में सक्षम है.  

दृष्टिकोण बदल जाये जब



कर्म किये बिना कोई एक क्षण भी नहीं रह सकता. हमारे कर्म ही हमारा परिचय देते हैं. किसान खेती का कर्म करता है और कवि लिखने का, दोनों ही अपने कर्म को अहंकार को पोषने के लिए भी कर सकते है और पूजा स्वरूप भी. सभी के जीवन में कोई न कोई महत्वपूर्ण वस्तु, व्यक्ति या स्थिति होती है, जिसको वे चाहते हैं. हमारा श्रद्धा पात्र जब सारा अस्तित्त्व बन जाता है तब उपासना घटित होती है. एक शिशु भी जानना चाहता है और एक वृद्ध भी अपने आस-पास के परिवेश के बारे में सजग रहना चाहता है, यदि ज्ञान का बिंदु अपने भीतर केन्द्रित हो जाये तो स्वयं का ज्ञान अपने आप घटित होने लगता है. कर्म, उपासना और ज्ञान स्वयं को जानने के तीन साधन हैं. साधक के कर्म उपासना बन जाते हैं और वही भक्ति एक दिन ज्ञान में बदल जाती है. जब भीतर ज्ञान मात्र रह जाता है, उसी क्षण आत्म अनुभव घटित होता है.

Wednesday, February 20, 2019

खुद से एक हुआ जो साधक


२१ फरवरी २०१९ 
ब्रह्मांड से एकत्व की अनुभूति साधक का लक्ष्य है और स्वयं से एकत्व पहला कदम है. स्वयं से जुड़े बिना यह सम्भव ही नहीं हो सकता कि हम जगत से जुड़ा हुआ महसूस करें. आज समाज में जो बिखराव और संबंधों में दूरियां नजर आ रही हैं इसका कारण है मानव खुद से ही दूर होता जा रहा है. प्रदर्शन और विज्ञापन के इस युग में हर कोई कृत्रिमता को अपना रहा है. सत्य और समर्पण जैसे मूल्य उसके जीवन से विस्थापित हो गये हैं. जो लोग एक स्थान पर टिके रहकर काम नहीं कर सकते, संस्था और व्यक्तियों के प्रति उनके मन में लगाव या निष्ठा ही जन्म नहीं ले पाती. परिवर्तन तो संसार का नियम ही है, लेकिन लोग हर कहीं इतनी शीघ्रता से बदलाव कर रहे हैं कि स्वयं के भीतर जाकर अपने उस मूल स्वभाव को जान ही नहीं पाते जो सदा एक सा है. ध्यान और योग के द्वारा हमें पहला कदम उठाना है और शेष प्रकृति व उसके नियंता के हाथों में छोड़ देना है. इस मार्ग पर चलना आरम्भ करते ही मंजिल से खबर आने ही लगती है.

Tuesday, February 19, 2019

मन को साध लिया है जिसने


२० फरवरी २०१९ 
जैन धर्म में प्रतिक्रमण का बहुत महत्व है. इसका अर्थ है अपनी भूल का प्रायश्चित करना. मन में जिस क्षण भी कोई राग-द्वेष जगता है, अथवा क्रोध, मोह, मान, माया या दर्प का क्लेश मन को सताता है, उसी क्षण आत्मा से क्षमा प्रार्थना कर लेना ही प्रतिक्रमण है. मन जब खाली होता है, एकाग्र रहता है. मन में विकार जगते ही विचारों की बाढ़ आ जाती है. प्रतिपल विचारों की गुणवत्ता बनाये रखना भी इसी साधना का अंग है. हमारे भीतर यदि कोई क्लेश देने वाला विचार आता भी है तो उसे स्वयं से पृथक ही जानना है. इसी तरह कोई अच्छा विचार आता है तो वह भी स्वयं से पृथक है, ऐसा जानना है. इस प्रकार हम अहंकार से ग्रसित नहीं होते और सहज ही शुद्ध स्वरूप में टिकने लगते हैं.

Monday, February 18, 2019

गुह्यतम ज्ञान सुनो भई साधो


१९ फरवरी २०१९ 
भगवद गीता में कृष्ण अर्जुन को पहले गुह्य ज्ञान देते हैं, फिर गुह्यतर ज्ञान देते हैं और अंत में गुह्यतम ज्ञान देते हैं. ये तीनों ज्ञान क्रमश हमारे भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अति आवश्यक हैं. ईमानदारीपूर्वक जीवन यापन करने वाला एक सामान्य व्यक्ति जो भले ही किसी व्रत, उपासना आदि को नहीं करता हो, इस गुह्य ज्ञान का अधिकारी है, उसे कर्मयोगी कहा जा सकता है.  वह अपने सभी दायित्वों को भली प्रकार निभाए, कोई ऐसा कार्य न करे, जिससे उसके यश की हानि हो, कोई भी निषिद्ध कर्म कभी न करे. गुह्यतम ज्ञान का अधिकारी वह है, जो व्यक्ति अपने लाभ के लिए ईश्वर की भक्ति करता है, उसकी किसी परम शक्ति में आस्था है और उसका विश्वास है कि व्रत, उपासना, ध्यान, जप, तप आदि के करने से उसकी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं, वह भक्ति योगी है. गुह्यतम ज्ञान ज्ञानी के लिए है, जिसे अपने शाश्वत स्वरूप का अनुभव हो गया है, जो स्वयं को मन, बुद्धि अहंकार से पृथक आत्मा के रूप में जानना चाहता है. ज्ञानी के भीतर भक्ति और कर्म दोनों समाहित हैं, भक्त के भीतर कर्मयोगी समाहित है और कर्मयोगी के भीतर भक्ति और ज्ञान का बीज पड़ा है जो समय आने पर अंकुरित होगा.

Friday, February 15, 2019

प्रकृति सिखा रही है पल पल


१६ फरवरी २०१९ 
प्रकृति की अपनी एक भाषा है, उसे सुनने की कला यदि कोई सीख ले तो सारी कायनात उसके साथ संवाद करती हुई प्रतीत होती है. प्रकृति के पास अनंत धैर्य है, एक पत्थर हजार वर्ष तक पड़ा रह सकता है और एक दिन रेत का एक महीन कण बन जाता है, फिर किसी खेत में उसका रूप बदल कर वनस्पति बन जाता है, वह वनस्पति किसी पशु के पेट में जाकर उसका रक्त  भी बन सकती है और वही एक दिन मानव योनि में भी जन्म सकता है. पत्थर से मानव बनने में कितना समय लगेगा यह कोई नहीं जानता. किन्तु हम देख सकते हैं जो आज पत्थर है वह भविष्य का मानव है, यानि जो आज मानव है वह कभी पत्थर था. दोनों आज भी मौजूद हैं. जो दोनों को एक साथ देख सकती है वह चेतना है, जो न कभी जन्मती है न बदलती है, जो सदा एक सी है.   

Thursday, February 14, 2019

जो लौट के फिर न आये


१५ फरवरी २०१९ 
पुलवामा में हुए आतंकी हमले से पूरा राष्ट्र व्यथित है. देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राणों को बलिदान करने वाले इन बहादुर सनिकों को हर कोई सारे भेदभाव भुलाकर हृदय से श्रद्धांजलि दे रहा है. क्रूरता की इस घटना ने सबके हृदयों को झकझोर कर रख दिया है. ऐसे में यह विचार कि उन परिवारों पर क्या बीत रही होगी जिनके प्रिय जन वैमनस्य की इस आग में झुलस गये, भीतर पीड़ा को गहरा कर जाता है. कल की रात उनके लिए कितनी भारी पड़ी होगी, और न जाने कितनी आने वाली रातों को उन्हें जागना पड़ेगा. हर भारतवासी इस दुःख की घड़ी में शहीदों के परिवारों के साथ है. अब समय आ गया है कि इस छद्म युद्ध को आमने-सामने लड़ा जाये, इस अपरोक्ष युद्ध की बजाय मामला आर-पार की लड़ाई से हल किया जाये. भारत ने कभी युद्ध के लिए पहले कदम नहीं उठाया, किन्तु जब दुश्मन को दूसरी भाषा नहीं आती हो तो उसे उसकी ही भाषा में जवाब देना होगा.

Tuesday, February 12, 2019

जड़-चेतन का भेद जगे जब


१३ फरवरी २०१९ 
कर्म योग, ज्ञान योग और भक्ति योग तीनों जैसे एक त्रिकोण के तीन कोने, एक दूसरे से जुड़े हुए और एक केंद्र से समान दूरी पर. पहले के अनुसार कर्म को भगवान की पूजा समझकर करना है, दूसरे के अनुसार स्वयं को अकर्ता जानकर साक्षी होकर कर्म को प्रकृति के द्वारा होते हुए देखना है. भक्तियोग के अनुसार सारे कर्म भगवान के लिए करने हैं. कोई किसी भी पथ को अपनाये अंत में सभी एक ही जगह पर पहुंच जाते हैं. ईश्वर की पूजा समझ कर कर्म करने से कर्मयोगी की बुद्धि शुद्ध होती जाती है, वह अपने भीतर स्वयं से भिन्न चैतन्य को अनुभव करने लगता है, अर्थात  परमात्मा का अनुभव उसे हो जाता है. निरंतर साक्षी भाव में रहने से ज्ञान योगी का चैतन्य का अनुभव दृढ़ होता जाता है. परमात्मा के लिये कर्म करने से भक्तियोगी का अंतःकरण शुद्ध हो जाता है और वह भी चैतन्य का अनुभव अपने भीतर कर लेता है.

Monday, February 11, 2019

जरा जाग कर देखे कोई


११ फरवरी २०१९ 
जीवन पल-पल बदल रहा है, अभी अभी जो फूल खिला था, देखते ही देखते मुरझाने की तैयारी करने लगता है. अभी-अभी मन उत्साह से भरा था, किसी छोटी सी बात से कुम्हलाने लगता है. हम इस खिलने और मुरझाने को ही सत्य मानकर कभी सुखी और कभी दुखी होते रहते हैं. संत कहते हैं, जैसे सपने में कोई दुर्घटना का शिकार होता है तो जगते ही राहत की श्वास लेता है. ऐसे ही जीवन के स्वप्न से जब कोई जग जाता है, तो पहली बार राहत से भर जाता है. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में पहले और अंतिम दो पुरुषार्थ इसी जागरण की ओर ले जाने के लिए हैं. यदि साधक का लक्ष्य उसके सम्मुख स्पष्ट हो, तब अर्थ और काम भी इसमें सहायक हो सकते हैं. यदि कोई धर्म और मोक्ष को अपने जीवन में कोई स्थान ही न दे तो उसका सारा जीवन ही सुख-दुःख से भरे एक स्वप्न की तरह भी बीत सकता है.   

रस का स्रोत मिलेगा भीतर


११ फरवरी २०१९ 
जन्म, आयु व भोग हमें प्रारब्ध के अनुसार मिलते हैं, इनके द्वारा हमें सुख-दुःख दोनों मिल सकते हैं किन्तु हम कितना सुख-दुःख भोगते हैं, यह वर्तमान के पुरुषार्थ पर निर्भर करता है. हमें सुख-दुःख दोनों में जागना है. अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष व अभिनिवेश, ये पांच क्लेश जब तक हैं, तभी तक कर्म हमें बांधते हैं. हमें क्लेश के संस्कारों को दग्ध बीज करना है. अविद्या अर्थात अज्ञान का अर्थ है हमें स्वयं के सत्य स्वरूप का ज्ञान न होना. अस्मिता का अर्थ है स्वयं को बुद्धि के साथ एक मानना. सुख की अभिलाषा ही राग है और दुःख से बचने की आकांक्षा ही द्वेष है. मृत्यु का भय ही अभिनिवेश है. यदि हम दुःख का भी स्वागत करें तो उसका प्रभाव कैसे हमें दुखी कर सकता है. स्वयं को जान कर हम आनंद के स्रोत से जुड़ जाते हैं, सो सुख की चाह अपने आप ही गिर जाती है. बुद्धि के पार जाकर ही कोई भावना के अमृत को चख सकता है. ऐसे साधक को मृत्यु का भय भी नहीं सताता.

Sunday, February 10, 2019

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला


१० फरवरी २०१९ 
माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि से वसंत ऋतु का आगमन होता है. इसी दिन को माँ सरस्वती का आविर्भाव दिवस भी माना जाता है और इनकी पूजा का आयोजन भी किया जाता है. यह विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं, जिन्हें शारदा, वीणापाणि, भारती आदि नामों से भी सम्बोधित किया जाता है. शब्दब्रह्म के रूप में अपने मूलस्थान प्रकाशपुंज से पचास अक्षरों के रूप में यह निरंतर ज्ञानामृत प्रवाहित करती हैं. वे सौम्यगुणों की दात्री भी हैं. इनकी उत्पत्ति सत्त्वगुण से हुई है, इसलिए इनकी आराधना एवं पूजा में प्रयुक्त होने वाली उपचार सामग्रियों में अधिकांश श्वेत वर्ण की होती हैं. सद्ग्रंथों का पाठ करने से भी देवी सरस्वती की पूजा हो जाती है.

Thursday, February 7, 2019

सहज सधे जो वही सार्थक


८ फरवरी २०१९ 
आलस्य, प्रमाद और निद्रा साधक के लिए बाधक हैं. सुबह जल्दी उठना, प्रातः भ्रमण, व्यायाम, योग साधना आदि नियमित रूप से तभी सम्भव है जब कोई आलस्य पर विजय प्राप्त कर ले. प्रमाद का अर्थ है भूल को जानकर भी उसे दोहराना, जैसे कोई जानता है कि क्रोध करना बुरा है पर जरा सी प्रतिकूल परिस्थिति आते ही अथवा थोड़ी सी असुविधा होते ही वह क्रोध कर बैठता है. आवश्यक निद्रा स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है लेकिन रात को देर तक जगना और सुबह देर तक सोते रहना शरीर व मन दोनों के लिए ठीक नहीं है. प्रकृति के नियमों का पालन करने से ही हम स्वस्थ रह सकते हैं, स्वस्थ अर्थात स्व में स्थित रह सकते हैं. स्व में स्थित रहना अर्थात जीवन के साथ एक होकर रहना या मूलभूत मूल्यों को धारण करना. सत्य और अहिंसा आत्मा के स्वाभाविक गुण हैं, इन्हें स्व में स्थित होकर सहज ही जीया जा सकता है.  

Tuesday, February 5, 2019

जब सौंप दिया इस जीवन को


६ फरवरी २०१९ 
संत कहते हैं परमात्मा हमारे पल-पल की खबर रखता है. हम उसकी ओर एक कदम बढ़ाते हैं तो वह हजार कदम बढ़ाकर हमें अपनी छाया से ढक लेता है. जीवन की धूप में तब हम क्लान्ति का अनुभव नहीं करते, सहज ही हर परिस्थिति का सामना करने के लिए तत्पर हो जाते हैं. हर हाल में पहला कदम हमें ही उठाना होता है. बड़ी सावधानी से अपनी प्राथमिकताओं को तय करना होता है, जो भी उसके मार्ग पर चलने में बाधक है, उसे काटते-छांटते जाना होता है. जब आत्मा को पूर्ण निश्चय हो जाता है कि शुभता और सम्पूर्णता ही उसका लक्ष्य है, तब अदृश्य की ओर से सहायता मिलने लगती है. गैर-जरूरी हटने लगता है और श्रद्धा को बल मिलता है. यह जगत उसकी ही कृति है, वह इसकी रग-रग से वाकिफ है, इसलिए साधक स्वयं को अस्तित्त्व को सौंप कर निश्चिन्त हो जाता है. जो भी उसके जीवन में होगा वह उसके विकास में सहायक ही होगा, ऐसा मानकर वह सहजता पूर्वक अपने कर्म का निष्पादन करता है.  

बना साक्षी जो हर पल का


५ फरवरी २०१९ 
जीवन में हम चार अवस्थाओं में रहते हैं. पहली अवस्था जागृत है, दूसरी स्वप्न, तीसरी सुषुप्ति और चौथी का कोई नाम नहीं है. जब स्वप्न चलता है तब जागृत का कोई भान नहीं रहता और सुषुप्ति की अवस्था में न जागृत और न ही स्वप्नावस्था का भान रहता है. जागृत के सुख-दुःख स्वप्न तक अपना असर दिखाते हैं पर सुषुप्ति में उनका कोई जोर नहीं चलता. आत्मा तब अक्रिय होती है पर उसमें शक्ति छिपी रहती है. चौथी अवस्था में हम न सोये हैं, न जगे हैं, न स्वप्न देख रहे हैं. निर्विकल्प समाधि के पार की वह अवस्था है. जागृत व स्वप्न सबकी अलग-अलग है, शेष दोनों हरेक के लिए एक सी हैं. हमारा नियन्त्रण केवल जागृत पर है. साधना का लक्ष्य है इन चारों अवस्थाओं के साक्षी हो जाना, अर्थात स्वयं को पूर्ण रूप से जान लेना.


Sunday, February 3, 2019

स्मृति लब्ध्वा...याद रहे जब पल पल उसकी


४ फरवरी २०१९ 
जो हमें मिला हुआ है पर उस तक जाने का मार्ग हम भूल गये हैं वही हमारा परम लक्ष्य है. जैसे कोई अपनी बहुमूल्य वस्तु कहीं रख दे और भूल जाये. वह वस्तु उसकी ही थी, उसे मिली ही हुई थी पर उसकी स्मृति नहीं रह गयी तो न मिले के बराबर हो गयी, और भीतर एक बेचैनी भी भर जाती है, उसकी तलाश जारी रहती है. इसी तरह आत्मा जो परमात्मा से मिली ही हुई है, जब उसे खो देती है तो एक बेचैनी सी भीतर छायी रहती है. मानव की सारी तलाश उसी अखंड आनन्द को, उसी एकरस सुख को पाने की ही तो है जो उसे अपने इर्द-गिर्द सुख-सुविधा के अम्बार लगाने को प्रेरित करती है. यह अलग बात है कि धन के अम्बार भी उसे वह सुख नहीं दे पाते क्योंकि वह सुख उसे मिला ही हुआ है मात्र उसकी याद ही खो गयी है.