१३ फरवरी २०१९
कर्म योग, ज्ञान योग
और भक्ति योग तीनों जैसे एक त्रिकोण के तीन कोने, एक दूसरे से जुड़े हुए और एक
केंद्र से समान दूरी पर. पहले के अनुसार कर्म को भगवान की पूजा समझकर करना है,
दूसरे के अनुसार स्वयं को अकर्ता जानकर साक्षी होकर कर्म को प्रकृति के द्वारा
होते हुए देखना है. भक्तियोग के अनुसार सारे कर्म भगवान के लिए करने हैं. कोई किसी
भी पथ को अपनाये अंत में सभी एक ही जगह पर पहुंच जाते हैं. ईश्वर की पूजा समझ कर कर्म
करने से कर्मयोगी की बुद्धि शुद्ध होती जाती है, वह अपने भीतर स्वयं से भिन्न चैतन्य
को अनुभव करने लगता है, अर्थात परमात्मा
का अनुभव उसे हो जाता है. निरंतर साक्षी भाव में रहने से ज्ञान योगी का चैतन्य का
अनुभव दृढ़ होता जाता है. परमात्मा के लिये कर्म करने से भक्तियोगी का अंतःकरण शुद्ध
हो जाता है और वह भी चैतन्य का अनुभव अपने भीतर कर लेता है.
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