११ फरवरी २०१९
जीवन पल-पल बदल रहा है, अभी अभी जो फूल खिला था, देखते ही देखते
मुरझाने की तैयारी करने लगता है. अभी-अभी मन उत्साह से भरा था, किसी छोटी सी बात
से कुम्हलाने लगता है. हम इस खिलने और मुरझाने को ही सत्य मानकर कभी सुखी और कभी
दुखी होते रहते हैं. संत कहते हैं, जैसे सपने में कोई दुर्घटना का शिकार होता है
तो जगते ही राहत की श्वास लेता है. ऐसे ही जीवन के स्वप्न से जब कोई जग जाता है,
तो पहली बार राहत से भर जाता है. धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष इन चार पुरुषार्थों में
पहले और अंतिम दो पुरुषार्थ इसी जागरण की ओर ले जाने के लिए हैं. यदि साधक का
लक्ष्य उसके सम्मुख स्पष्ट हो, तब अर्थ और काम भी इसमें सहायक हो सकते हैं. यदि
कोई धर्म और मोक्ष को अपने जीवन में कोई स्थान ही न दे तो उसका सारा जीवन ही सुख-दुःख
से भरे एक स्वप्न की तरह भी बीत सकता है.
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