Monday, February 18, 2019

गुह्यतम ज्ञान सुनो भई साधो


१९ फरवरी २०१९ 
भगवद गीता में कृष्ण अर्जुन को पहले गुह्य ज्ञान देते हैं, फिर गुह्यतर ज्ञान देते हैं और अंत में गुह्यतम ज्ञान देते हैं. ये तीनों ज्ञान क्रमश हमारे भौतिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास के लिए अति आवश्यक हैं. ईमानदारीपूर्वक जीवन यापन करने वाला एक सामान्य व्यक्ति जो भले ही किसी व्रत, उपासना आदि को नहीं करता हो, इस गुह्य ज्ञान का अधिकारी है, उसे कर्मयोगी कहा जा सकता है.  वह अपने सभी दायित्वों को भली प्रकार निभाए, कोई ऐसा कार्य न करे, जिससे उसके यश की हानि हो, कोई भी निषिद्ध कर्म कभी न करे. गुह्यतम ज्ञान का अधिकारी वह है, जो व्यक्ति अपने लाभ के लिए ईश्वर की भक्ति करता है, उसकी किसी परम शक्ति में आस्था है और उसका विश्वास है कि व्रत, उपासना, ध्यान, जप, तप आदि के करने से उसकी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं, वह भक्ति योगी है. गुह्यतम ज्ञान ज्ञानी के लिए है, जिसे अपने शाश्वत स्वरूप का अनुभव हो गया है, जो स्वयं को मन, बुद्धि अहंकार से पृथक आत्मा के रूप में जानना चाहता है. ज्ञानी के भीतर भक्ति और कर्म दोनों समाहित हैं, भक्त के भीतर कर्मयोगी समाहित है और कर्मयोगी के भीतर भक्ति और ज्ञान का बीज पड़ा है जो समय आने पर अंकुरित होगा.

No comments:

Post a Comment