११ फरवरी २०१९
जन्म, आयु व भोग हमें
प्रारब्ध के अनुसार मिलते हैं, इनके द्वारा हमें सुख-दुःख दोनों मिल सकते हैं किन्तु
हम कितना सुख-दुःख भोगते हैं, यह वर्तमान के पुरुषार्थ पर निर्भर करता है. हमें
सुख-दुःख दोनों में जागना है. अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष व अभिनिवेश, ये पांच
क्लेश जब तक हैं, तभी तक कर्म हमें बांधते हैं. हमें क्लेश के संस्कारों को दग्ध
बीज करना है. अविद्या अर्थात अज्ञान का अर्थ है हमें स्वयं के सत्य स्वरूप का
ज्ञान न होना. अस्मिता का अर्थ है स्वयं को बुद्धि के साथ एक मानना. सुख की
अभिलाषा ही राग है और दुःख से बचने की आकांक्षा ही द्वेष है. मृत्यु का भय ही
अभिनिवेश है. यदि हम दुःख का भी स्वागत करें तो उसका प्रभाव कैसे हमें दुखी कर
सकता है. स्वयं को जान कर हम आनंद के स्रोत से जुड़ जाते हैं, सो सुख की चाह अपने
आप ही गिर जाती है. बुद्धि के पार जाकर ही कोई भावना के अमृत को चख सकता है. ऐसे
साधक को मृत्यु का भय भी नहीं सताता.
सत्य है... आनंद स्वयं हमारे अन्दर स्थित है लेकिन हम उसे बाहर ढूँढते रहते हैं...बहुत सटीक चिंतन...
ReplyDeleteस्वागत व आभार कैलाश जी !
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