Wednesday, April 22, 2020

पृथ्वी दिवस मनाएं हम


आज पृथ्वी दिवस है, अर्थात पृथ्वी के प्रति सम्मान दिखाने का दिवस ! पृथ्वी जो हमारी माँ है, जिसने हमें जीवन दिया है, जो हमारा पोषण करती है, जो हमें सुख देती है. इस अनंत ब्रह्मांड में जहाँ जीवन को खिलने का अवसर मिलता है, उस धरती का हम कितना ही गुणगान करें, कम है. वह पृथ्वी आज घायल है, अपशिष्ट पदार्थों का एक बड़ा भंडार उस पर बोझ बन गया है, वह हर कूड़े को खाद बना देती है पर उसे समय तो मिले. मानव कचरे का ढेर दिन-रात बढ़ाता ही जा रहा है, जल में रसायनों और प्लास्टिक डालता ही जा रहा है. मानव जब अपनी करनी से बाज नहीं आ रहा था तब शायद प्रकृति ने ही कोरोना के रूप में एक विपदा भेजी है. आज जब हम घरों में बैठे हैं, पृथ्वी अपने को स्वच्छ कर रही है अर्थात पृथ्वी अपना दिवस स्वयं ही मना रही है. वेदों में पर्यावरण की सुरक्षा के लिए कितने ही मन्त्र गाये गए हैं. आज आवश्यकता है उन्हें फिर से दोहराने की, जिससे हमारा यह सुंदर ग्रह फिर से अपनी खोयी हुई शांति और सुंदरता को प्राप्त कर सके. हरे-भरे जंगल, उनमें विचरते हुए निःशंक प्राणी और प्रकृति का संरक्षण करता हुआ मानव समाज फिर से अस्तित्त्व में आ सके. 

Sunday, April 19, 2020

हीरा जनम अमोल था


सन्त और शास्त्र कहते हैं मानव जन्म दुर्लभ है. मानव यदि इस बात पर यकीन करता तो अपने जीवन से खिलवाड़ न करता. आज के हालात में देखा जाये तो जो लोग अनुशासन का पालन नहीं कर रहे हैं, अपने जीवन से खिलवाड़ ही कर रहे हैं. आज काल अपना मुख खोले जीवन को ग्रसने के लिए तैयार खड़ा है, जरा सी असावधानी से कोई स्वयं को एक ऐसे रोग से ग्रस्त कर सकता है जिसका कोई इलाज अभी तक ईजाद नहीं हुआ है. यहाँ मेरा तात्पर्य मात्र कोरोना से भी नहीं है, एक और रोग है जिससे मानव ग्रसित है, यह रोग है प्रमाद, जिसका कोई इलाज डॉक्टरों के पास नहीं है, इसका इलाज तो हमें स्वयं ही करना है. प्रमाद का सबसे बड़ा प्रमाण है कि हमें अपने जीवन का मोल नहीं पता, क्या होता यदि हम मानव देह में न होकर किसी अन्य योनि में जन्मते, अथवा तो अभी तक लाखों आत्माओं की तरह देह पाने के लिए प्रतीक्षारत ही रहे होते. मानव देह पाकर इसका मोल समझने का अर्थ है कि हम स्वयं के वास्तविक स्वरूप से परिचित होने की तरफ सजग हों, किसी अन्य योनि में यह सम्भव ही नहीं है. वशिष्ठ मुनि से इसी का ज्ञान पाकर राम, राम हो पाते हैं, अष्टावक्र से ज्ञान पाकर जनक विदेह बनते हैं.  

Saturday, April 18, 2020

भारत पर जो नाज करेगा


हम भारत के लोग हमारे संविधान में यह पंक्ति सबसे पहले लिखी गयी है, और यही है भारत की असीम शक्ति का स्रोत ! मुझे इस बात का अनुभव् कई बार हुआ है और आज  मैं आपके साथ अपना यह अनुभव साझा कर रही हूँ. मेरा जन्मस्थान उत्तरप्रदेश में है, जीवन के आरंभिक पचीस वर्ष वहाँ के भिन्न शहरों में बीते। सरकारी नौकरी के कारण पिताजी किसी भी स्थान पर तीन या चार वर्ष से अधिक नहीं रहते थे. हर बार नए शहर में, नये घर में जाने पर हमें अपने आस-पास एक ही जैसे लोग मिले. हर जगह राम और कृष्ण की कहानियाँ कहने-सुनने वाले लोग, आपस में मिलकर होली, दीवाली आदि त्योहार मनाने वाले लोग. विवाह के बाद वर्षों असम में रहना हुआ, जहाँ पूरे भारत से आये भिन्न भाषा-भाषी लोगों से मिलने का सौभाग्य मिला. उड़िया, बंगाली, तमिल, तेलगु, कन्नड़, पंजाबी, सिख, नागा, मिजो गढ़वाली सभी प्रदेशों के लोग वहाँ एक साथ रहते हैं. सभी को आपस में जुड़ने के लिए कोई विशेष प्रयत्न नहीं करना पड़ता. सबको जोड़ती है भारत की प्राचीन गौरवशाली संस्कृति ! भारत को एक सूत्र में बाँधा है यहां की नदियों के प्रति आस्था ने, पर्वतों पर बने देव स्थानों ने और परब्रह्म के प्रति अटूट श्रद्धा ने ! हर भारतीय सहज ही श्रद्धावान  है, उसके जीवन में व्रत का स्थान है  तभी वह अनुशासन का पालन कर सकता है. हम केवल भौतिक अस्तित्त्व को ही नहीं देखते उसके परे जो दैविक और आध्यात्मिक है उसे भी साथ लेकर चलते हैं. आपकी तरह मुझे भी भारत पर गर्व है और गर्व है हजारों वर्षों से चली आ रही इसकी अक्षुण्ण सांस्कृतिक धारा पर. आइये हम भारत के लोग मिलकर देश के इस आपद काल में अपना-अपना कर्त्तव्य निभाएं. घर में रहें और स्वस्थ रहें. 

Friday, April 17, 2020

अंतरशक्ति जगायेगा जो


शक्ति का संधान किये बिना राम भी रावण का संहार नहीं कर सके थे. आज कोरोना रूपी रावण का संहार करना है इसके लिए भी सभी देशवासियों को अपने भीतर शक्ति का संधान करना है. सबसे पहले इस लंबी लड़ाई को लड़ने के लिए मन में अनवरत उत्साह बनाए रखना जरूरी है. वैज्ञानिक और स्वास्थ्य कर्मी दिन-रात एक करके इसका निदान खोज रहे हैं, आज नहीं कल इसका वैक्सीन बन ही जायेगा. इस भरोसे को बनाये रखने के लिए सकारात्मक सोच जरूरी है, जो आती है शक्ति की साधना से. हर दिन कुछ न कुछ नया रचना या करना है, चाहे छोटे से छोटा कृत्य ही क्यों न हो. उदारता से भी शक्ति बढ़ती है और मन की गहराई में प्रेम और करुणा की जो भावना सुप्त है उसे जगाने से भी. कृतज्ञतापूर्वक अपने जीवन में मिले साधनों में से कुछ को औरों के लिए त्यागने से भी. विश्व, देश और समाज में आज जो स्थिति है उसको स्वीकार करके ही उसके पार जाने का मार्ग मिल सकता है. 

Thursday, April 16, 2020

ज्ञान का जो सम्मान करे मन


जहाँ ज्ञान का तिरस्कार होता है वहाँ सजगता खो जाती है. वास्तव में बेहोश होकर ही हम अज्ञानी हो सकते हैं. हम जानते हैं कि हमारे लिए क्या अच्छा है, पर चुनते वही हैं जो हमें पसंद है, यह जानते हुए भी कि यह हमारे के लिए सही नहीं है. सन्त कहते हैं यदि हम प्रेय मार्ग को चुनेंगे तो दुःख से बचना असम्भव है, श्रेय मार्ग को चुनेंगे तो जीवन में दुःख का कोई स्थान ही नहीं रहेगा. इसका अर्थ यह नहीं है कि जीवन में कोई दुखद परिस्थिति नहीं आएगी, बल्कि हम हर स्थिति में समता में रहना सीख जायेंगे. प्रेय मार्ग हमें कमजोर बनाता है, हम केवल सुख के अभिलाषी बन जाते हैं. जरा सा दुःख हमें अपने केंद्र से विचलित कर देता है. श्रेय मार्ग का चयन हमें भीतर से दृढ़ता प्रदान करता है. इसके लिए पहला कदम है, राग-द्वेष से मुक्त होना, हम यदि जीवन को जिस रूप में वह मिलता है स्वीकार करना चुनते हैं तो एक स्थिरता भीतर प्रकट होती है.यह स्थिरता हमें सही-गलत में भेद करना सिखाती है और सही का चुनाव करने का बल देती है. श्रेय मार्ग का चयन तब सहज हो जाता है. 

Tuesday, April 14, 2020

आशावादी मन जो होगा


उन्नीस दिनों में लिए सरकार ने लॉक डाउन की अवधि को बढ़ा दिया है. यह अभूतपूर्व काल है, पिछले सौ वर्षों के इतिहास में मानव इतनी भीषण महामारी से पहली बार जूझ रहा है. कोई इसे संकट काल  कहेगा और अवसाद से घिर जायेगा, कोई इसे अनुशासन पर्व कहेगा और जीवन को उन्नत बनाएगा. समय की कमी का बहाना  करके जो कार्य हम वर्षों तक टालते रहे हैं उनके आरंभ के लिए यह सुवर्ण काल है. गहन चिंतन, मनन और श्रवण के लिए एक साधक को जितना एकांत और समय चाहिए उसका प्रबन्ध प्रकृति ने इस प्रकोप के बहाने कर दिया है. कुदरत भी इस समय स्वयं को सेहतमंद कर रही है, तो हमारा भी कर्त्तव्य बनता है कि इस समय को सुंदर बनाएं. हमारा वर्तमान अतीत के कर्मों का फल है और भविष्य आज के कृत्यों का फल होगा. यदि आज मन में निराशा, हताशा या अस्वीकार की भावना प्रमुख रही तो कल भी इससे भिन्न परिणाम लेकर नहीं आएगा. जीवन तो सबको एक जैसा ही मिलता है उसे देखने वाली दृष्टि भिन्न -भिन्न होती है. आशावादी दृष्टिकोण से देखें तो हर घटना के पीछे छिपे बोध पर हमारी नजर जाएगी. घटना बाहर रहेगी और वह बोध हमें उसके असर से अछूता ही छोड़ देगा. 

Monday, April 13, 2020

तन-मन दोनों स्वस्थ रहें जब


अब जबकि यह तय हो ही चूका है कि ताला बंदी की अवधि बढ़ायी जाएगी तो हमें भी भविष्य के लिए तैयार हो जाना चाहिए. अपने समय का सदुपयोग उसमें सबसे पहली प्राथमिकता है. घर में जो भी सामान समाप्त हो रहा हो उसकी सूची बनाकर अगले एक महीने के लिए एक साथ लेकर रख लेना भी ठीक रहेगा. सुबह उठकर नियमित योग-साधना और घर में थोड़ा सा भ्रमण भी अति आवश्यक है. पूजा के समय रामायण, भगवद गीता या किसी अन्य धर्म ग्रन्थ अथवा  किसी सन्त की वाणी का एक पृष्ठ पढ़ने की आदत भी दिन भर मन को सजग और प्रफ्फुलित बनाये रखने के लिए अच्छी है. भोजन बनाते समय यह ध्यान रखना है कि सुपाच्य हो यानि ज्यादा भारी न हो, व ताजा हो. गर्मी का मौसम है इसलिए भुने जीरे के साथ रोज मठ्ठे का सेवन लाभदायक है. कोई न कोई पुस्तक पढ़ना या पढ़कर बच्चों को सुनाना, बोर्ड गेम खेलना और हास्य कार्टून या फिल्म देखना भी इस कठिन समय में मन को खुश रखने में सहायक है. कोरोना से बचकर रहने के लिए घर में रहना ही जब एकमात्र उपाय है तो क्यों न हम अपने घर में ही वह सब आयोजन कर लें जिसके लिए बाहर जाते हैं. सबसे पहले तो घर के सारे पर्दे धो डालें, कुशन कवर, चादरें सब अच्छी वाली बिछाएँ, जैसे मेहमानों के आने पर बिछाते हैं. हॉल के एक कोने में स्कूल, एक में लाइब्रेरी, एक में थियेटर बना लें. किचन को ही आलीशान रेस्ट्रां और छत, आंगन या बरामदे को ही बगीचा. संभाल कर रखी हुई अच्छी क्राकरी और बर्तन भी निकालें, हर दिन नए तरीके से भोजन परोसें. अब अगले कुछ हफ्तों या कौन जाने महीनों तक हमारा घर ही हमारा संसार रहने वाला है, सो आइये इस घर को इस तरह सजाएं और सँवारे कि बाहर जाने का मन ही न करे.

Saturday, April 11, 2020

स्वयं को जो जन सबल बनाये


धरती की आयु अरबों वर्ष की है, मानव को धरती पर आये भी लाखों वर्ष बीत गये हैं. हमारे पास मानव सभ्यता का जो ज्ञात इतिहास है उसमें अनेक महामारियों का जिक्र आता है, अर्थात यह कोई नयी बात नहीं है. आज विज्ञान का युग है इसलिए इस महामारी का असर कम हुआ है, जी, हाँ, पिछली महामारी में जो लगभग सौ वर्ष पूर्व आयी थी, उसमें करोडों जानें गयी थीं. आज हमारे पास साधन हैं और बचाव के बेहतर उपाय हैं. जो लोग कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं, वे ठीक भी हो रहे हैं और दुर्भाग्यवश जो बच नहीं पाए उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम थी. अब सबसे पहली आवश्यकता है हम जो अभी तक बचे हुए हैं, स्वयं को मजबूत बनाएं. मानसिक रूप से सबल व्यक्ति की रोग से लड़ने की ताकत ज्यादा होती है. एक न एक दिन तो हमें अपने घरों से बाहर जाना ही है, और जब तक इस रोग की कोई वैक्सीन नहीं आती, इससे बचने का उपाय एक ही है कि हम सामाजिक दूरी बनाये रखें. कोरोना का वायरस हर मौसम में जिन्दा रह सकता है, सो यह कहीं चला जायेगा इसकी उम्मीद करना व्यर्थ है. हमें स्वयं को सुरक्षित रखने के लिए आने वाले छह-आठ महीनों तक नाक-मुख को ढक कर ही बाहर निकलना होगा. इसी तरह बार-बार हाथ धोने की आदत तो तब तक स्वभाव में ही बदल चुकी होगी. अति आवश्यक कार्य होने पर ही हमें घर से बाहर जाना होगा. धीरे-धीरे ताला-बंदी में ढील दी जाएगी लेकिन नागरिकों को किसी भी प्रकार के संक्रमण से सतर्क रहने की अपनी आदत को स्वयं ही विकसित करना होगा. 

Friday, April 10, 2020

बदल रहा चलन दुनिया का

अब हम अपने जीवन के इतिहास को बताने के लिए समय को दो भागों में बाँट कर कहेंगे, पहला कोरोना वायरस के आने के पहले का काल और दूसरा उसके आगमन के बाद का. उदाहरण के लिए हम कहेंगे, जब वायरस नहीं पनपा था तब हम विदेश घूमने गए थे। उन दिनों हम सब एक साथ घूमने जाते थे, घरों में सामूहिक भोज का आयोजन करते थे. वर्तमान में हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते. लॉक डाउन खुलने के बाद भी हमारा जीवन पहले का सा नहीं रह जायेगा. अगले कई वर्षों तक हमें पूरी सावधानी रखनी होगी, हममें से जो भी बुजुर्ग हैं या किसी न किसी रोग से ग्रसित हैं, उन्हें तो विशेष रूप से घर पर रहने के लिए ही कहा जायेगा. बच्चे स्कूल जाने की अपेक्षा ऑन लाइन पढ़ना ज्यादा पसन्द करेंगे. पहले की तरह हम सामान्य रूप से मॉल, बाजार और प्रदर्शनियों में जाकर खरीदारी नहीं कर सकेंगे. बाहर निकलते समय मास्क पहनना सामान्य बात हो जाएगी. फ़िल्में भी सिनेमाघरों की बजाय ऑन लाइन ही रिलीज होंगी. घरों व सड़कों की सफाई  पर ज्यादा ध्यान दिया जायेगा. मन्दिरों में अब पहले की तरह भीड़ नहीं होगी, लोग नेट पर ही दर्शन करेंगे और घरों में पूजा करेंगे. योग और ध्यान जीवन का एक अभिन्न अंग बन जायेगा. विदेश यात्रा का मोह कम हो जायेगा और छात्रों में अपने ही देश में रहकर पढ़ने को बेहतर कहेंगे. पारिवारिक मूल्य फिर से स्थापित होंगे और अनावश्यक घूमना-खरीदारी बंद हो जायेंगे. लोगों में दूसरों की मदद करने की प्रवृत्ति बढ़ेगी और जीवन सरल और सादा होगा. 

Thursday, April 9, 2020

सदा रहेगा यदि कृतज्ञ मन


जीवन में कृतज्ञता का भाव जगे, इससे बढ़कर कुछ भी नहीं, दुःख से बचने का यह एक सरलतम उपाय है. जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया उनके प्रति तथा अपने पूर्वजों के प्रति जिसके हृदय में कृतज्ञता का भाव रहता है वह उनके आशीष बिन मांगे ही पाता है. हमारे भीतर उनका अंश है, हमारी जड़ें उनमें ही हैं, जितना -जितना हम भावनात्मक रूप से उनसे जुड़े रहेंगे उतना -उतना हम दूरदर्शी भी होंगे. इसके बाद अपने शिक्षकों व गुरुजनों के प्रति हृदय से आभारी होना है. जीवन के पथ पर चलने के लिए पग-पग पर हमें किसी न किसी की सहायता चाहिए, जिससे भी जितना भी सीखा है, उस हर आत्मा के प्रति कृतज्ञ होना है. कभी मित्रों ने हमने राह दिखाई, कभी पुस्तकों ने, कभी किसी घटना ने अथवा  किसी अनजान व्यक्ति ने ही अपने कृत्य या शब्दों से कुछ सिखाया, कभी-कभी उन सभी का आदर पूर्वक स्मरण करके आभार व्यक्त करना है. प्रकृति से भी हम कितना कुछ पाते हैं, सीखते हैं. इस जगत में सुबह से शाम तक हम अपने जीवन के लिए जिन-जिन पर आश्रित रहते हैं उन सभी के हम ऋणी हैं. जो व्यापारी हमें पदार्थ उपलब्ध कराते हैं तथा जो कृषक वे अन्न व वस्त्र उपजाते हैं, दोनों ही धन्यवाद के पात्र हैं. जो सफाई कर्मचारी सड़कें तथा हमारे घर साफ करते हैं, जो चिकित्सक हमारा इलाज करते हैं, जो सैनिक व सिपाही हमारी रक्षा करते हैं, जो अधिकारी व राजनीतिज्ञ देश की नीतियों का निर्धारण करते हैं, जो हमें  जीवनयापन के लिए नौकरी देते हैं, वे सभी हमारी कृतज्ञता के अधिकारी हैं. अपनी प्रार्थना में हर रोज उनमें से कुछ को शामिल करके हम अपने जीवन को सहज ही दुःख से मुक्त कर सकते हैं. 

Wednesday, April 8, 2020

साध सके जो मन का मौन


आज जबकि हम घरों में बंद हैं, एक कार्य जो हमारे शास्त्र, आचार्य और संत कहते आये हैं, बखूबी कर सकते हैं. वह कार्य है मौन की साधना. दिन भर में चाहे एक घन्टा ही सही, यदि हम पुरे मौन का पालन करें, तो अपनी बहुत सी ऊर्जा को बचा सकते हैं. उस एक घण्टे में हमें न केवल किसी अन्य से वार्तालाप नहीं करना है वरन अपने आप से भी नहीं करना है. जो मन सदा ही कुछ न कुछ योजना बनाता है अथवा पुरानी बात को सामने लाकर उस पर टीका-टिप्पणी करता है, उसे पूरा मौन करना सिखाना है. जो बात वह कई बार सोच चुका है, उसे जुगाली करने की उसकी आदत को तोड़ना है. किसी अप्रिय बात को स्मरण करके जो वह झुंझला जाता है, उसे भी छोड़ना है. वास्तव में अतीत में गया मन एक छाया के सिवा कुछ भी नहीं है, छाया को यदि मिटाना है तो प्रकाश की तरफ आना होगा, वर्तमान के प्रकाश में सारी छायाएं मिट जाती हैं. जो कहीं है ही नहीं हम उससे परेशानी खड़ी कर लेते हैं. जो अभी घटा ही नहीं उसकी आशंका मन जगाये तो फिर उसे वर्तमान में ले आना है और उसका सबसे सरल उपाय है, अपनी श्वास पर ध्यान देना. श्वास सदा वर्तमान में रहती है, वह परमात्मा से जोड़े रखने वाली डोरी है. डोरी भी ऐसी कि यदि श्वास एकतार हो जाये तो परमात्मा की सुवास उसमें से बहकर आने लगती है. शांति का एक बादल हमारे चारों ओर छाने लगता है. हाथ में आये इस समय में से नियमित मौन का अभ्यास करके हम आने वाले दिनों के लिए स्वयं को तैयार रख सकते हैं.  

Monday, April 6, 2020

अल्प से ही जो तुष्ट रहेगा


एक मुठ्ठी अन्न, अंजुरी भर जल और थोड़ी सी प्राणवायु क्या इतना ही पर्याप्त नहीं एक जीव को मानव की देह धारण के लिए. धरती पर वायु का अकूत भंडार है पर हम एक बार में कितनी श्वास  ले सकते हैं ? जल के कितने स्रोत हैं पर प्यास बुझाने के लिए एक बार में अल्प ही चाहिए. इसी तरह धरती पर अनाज के भंडार भरे पड़े हैं पर थोड़ा सा भोजन ही प्राणी की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त है. सन्त कहते हैं जीव परमात्मा का अविनाशी अंश है, जब वह मानव देह लेता है तो उससे क्या सिद्ध करना चाहता है. हर कोई ख़ुशी ही तो चाहता है, जो परमात्मा का स्वभाव है, अर्थात परमात्मा के गुणों का प्रकाश उसके माध्यम से फैले, उसका प्रेम और आनंद जगत में प्रकाशित व प्रसारित हो, इतना ही तो उसका अभिप्राय है. सनातन धर्म में चार पुरुषार्थ कहे गए हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. धर्म की स्थापना के लिए अर्थ हो और मोक्ष की कामना जगे यही उनका अभिप्राय है. धर्म का अर्थ है किसी को दुःख देने की तिलमात्र भी भावना भीतर न हो, बल्कि दूसरों का भला चाहें. मोक्ष का अर्थ है तन या मन की गुलामी न करें. आत्मा जब धर्म के पथ पर होगी यानि मन का भाव शुद्ध होगा तो स्वतन्त्रता का अनुभव करेगी, यही तो मोक्ष है और हर जीव की यही आंतरिक पुकार है. हम थोड़े में सन्तुष्ट रहना सीखें, इस विपदा से यही सीखना है और यह समय बीत जाने पर भी इसी का  पालन करना है, तब कोई भारतवासी गरीब नहीं रहेगा. 

Sunday, April 5, 2020

आओ मिलकर दीप जलाएं


दीप जलाकर हम पूजा करते हैं, अतिथियों का स्वागत करते हैं, दीपावली मनाते हैं पर आज रात्रि जो दीपक हम जलाने जा रहे हैं उसके पीछे कितने ही कारण छुपे हैं. सबसे पहला कारण है भारत के नागरिकों की एकता और अखंडता की शक्ति का जागरण. संगठन में कितनी शक्ति है यह सर्वविदित है, जब हम सभी एक ही संकल्प लेकर दीपदान करेंगे तो उस संकल्प की शक्ति कितने गुणा बढ़ जाएगी, इसका अंदाजा अभी हम नहीं लगा सकते. मन एक ऊर्जा है, इसे सकारात्मक भी बनाया जा सकता है और नकारात्मक भी, जैसे एक ही विद्युत शक्ति से हम हीटर भी चलाते हैं कूलर भी, इसी तरह हमारे मन की शक्ति का उपयोग दोनों प्रकार से किया जा सकता है. सकारात्मकता और उत्साह आज हम सबकी सबसे बड़ी आवश्यकता है. जिस आपदा का सामना हम कर रहे हैं, उसे देख नहीं सकते, कब तक और कैसे उस पर विजय मिलेगी यह किसी को भी ज्ञात नहीं, ऐसे अनिश्चय के वातावरण में यदि हमारे मन सकारात्मक विचारों और शुभ भावनाओं से संयुक्त रहेंगे तभी हम अपना और अपने परिवार, समाज और राष्ट्र का तथा अंततः इस विश्व का कुछ भला कर सकते हैं. हर नकारात्मक विचार हमारी ऊर्जा को व्यर्थ ही नहीं करता उसे काटता भी है. अतः आज रात्रि नौ बजे हम सभी एक शुभ संकल्प हृदय में लेकर परमात्मा से प्रार्थना करेंगे और स्वयं की शक्ति को जगायेंगे. इसका सुखद परिणाम हमें निकट भविष्य में शीघ्र ही देखने को मिलेगा. 

Saturday, April 4, 2020

मन में जगे कामना शुभ की



परिस्थितियां कितनी भी दूभर हों, वे बाहर हैं. उनसे प्रभावित होकर सुख-दुखी होना भीतर है. बाहर की परिस्थिति पर हमारा वश नहीं चलता, मन की स्थिति कैसी हो इसका सारा उत्तरदायित्व हमारा है. मन यदि दुःख का निर्माण करेगा तो अपनी ही शक्ति का ह्रास होगा, उसका व्यवहार अपने ही विरुद्ध कहा जायेगा. मन यदि सुख का निर्माण करेगा तो समस्या का समाधान खोजने की शक्ति बनी रहेगी, समाधान न भी मिला तो भी वह अपना मित्र बना रहेगा. मन को इतना सबल बनाना हो तो बुद्धि को शुद्ध करना होगा, बुद्धि तभी निर्मल होगी जब वह अपने स्रोत से जुड़ी रहेगी. भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं, जो मन-बुद्धि से युक्त होकर मेरा स्मरण करता है वह सहज ही आनंद को उपलब्ध होता है. यदि मन में श्रद्धा हो तो उसका स्मरण सहज ही होता है और यह विश्वास बना रहता है कि एक न एक दिन यह आपदा भी गुजर जाएगी. उस दिन तक जो भी सहयोग हमसे बन पड़े करना है और एक क्षण के लिए भी स्वयं को बेबस नहीं मानना है. हर देशवासी की शुभेच्छा ही इस समय सबसे बड़ा उपाय है.

Friday, April 3, 2020

प्रेम की डोर ने बाँधा सबको



जीवन का सार है प्रेम, यह सारा ब्रह्मांड जिस एक तत्व के कारण अस्तित्त्व में आया है वह प्रेम ही है, धरती सूर्य की परिक्रमा करती है, चाँद धरती के चक्कर लगाता है, किस शक्ति के कारण, वैज्ञानिक उसे जो भी नाम दें वह आकर्षण शक्ति प्रेम का ही एक स्वरूप है. हमने प्रेम को एक कृत्य मान लिया था, हाथ मिलाना, गले लगाना, मस्तक या गाल चूमना और उपहार पकड़ाना ही प्रेम के पर्याय हो गए थे, अब इनमें से कुछ भी सम्भव नहीं है, किन्तु क्या दुःख की इस घड़ी में अब मानवीय संवेदना पहले से ज्यादा नहीं बढ़ गयी है. प्रेम कोई कृत्य नहीं है यह तो मानव के हृदय की उस संवेदना का नाम है जो वह अन्यों के प्रति अपने अंतर में महसूस करता है. दूसरे का सुख जब अपना सुख बन जाये उसका दुःख जब हमारी आँखों में अश्रु ले आए उसे ही प्रेम कहते हैं. इस आपदा काल में हम सभी भारतवासी एक ऐसी डोर से बंधे हुए हैं जो यद्यपि पहले भी हम सबको जोड़े हुए थी पर अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हम एक-दूसरे से दूर ही थे. इस आपदा का सामना हम सभी को मिलकर करना है, हमारे भाग्य एक हैं, हमारे कर्म भी यदि एक लक्ष्य को समर्पित हो जायँ तो इस आपदा से मुक्ति हमें शीघ्र ही मिल सकती है.