परिस्थितियां कितनी भी दूभर हों, वे बाहर हैं. उनसे प्रभावित होकर सुख-दुखी होना भीतर है. बाहर की परिस्थिति पर हमारा वश नहीं चलता, मन की स्थिति कैसी हो इसका सारा उत्तरदायित्व हमारा है. मन यदि दुःख का निर्माण करेगा तो अपनी ही शक्ति का ह्रास होगा, उसका व्यवहार अपने ही विरुद्ध कहा जायेगा. मन यदि सुख का निर्माण करेगा तो समस्या का समाधान खोजने की शक्ति बनी रहेगी, समाधान न भी मिला तो भी वह अपना मित्र बना रहेगा. मन को इतना सबल बनाना हो तो बुद्धि को शुद्ध करना होगा, बुद्धि तभी निर्मल होगी जब वह अपने स्रोत से जुड़ी रहेगी. भगवद्गीता में कृष्ण कहते हैं, जो मन-बुद्धि से युक्त होकर मेरा स्मरण करता है वह सहज ही आनंद को उपलब्ध होता है. यदि मन में श्रद्धा हो तो उसका स्मरण सहज ही होता है और यह विश्वास बना रहता है कि एक न एक दिन यह आपदा भी गुजर जाएगी. उस दिन तक जो भी सहयोग हमसे बन पड़े करना है और एक क्षण के लिए भी स्वयं को बेबस नहीं मानना है. हर देशवासी की शुभेच्छा ही इस समय सबसे बड़ा उपाय है.
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDeleteमन अपना मित्र रहे। बहुत ही बड़ी बात कही है आपने...
ReplyDeleteमन और बुद्धि का सामजस्य ही सम्बल प्रदान करता है
ज्ञान वर्धक सृजन हेतु धन्यवाद आपका।
स्वागत व आभार सुधा जी !
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