एक मुठ्ठी अन्न, अंजुरी भर जल और थोड़ी सी प्राणवायु क्या इतना ही पर्याप्त नहीं एक जीव को मानव की देह धारण के लिए. धरती पर वायु का अकूत भंडार है पर हम एक बार में कितनी श्वास ले सकते हैं ? जल के कितने स्रोत हैं पर प्यास बुझाने के लिए एक बार में अल्प ही चाहिए. इसी तरह धरती पर अनाज के भंडार भरे पड़े हैं पर थोड़ा सा भोजन ही प्राणी की भूख मिटाने के लिए पर्याप्त है. सन्त कहते हैं जीव परमात्मा का अविनाशी अंश है, जब वह मानव देह लेता है तो उससे क्या सिद्ध करना चाहता है. हर कोई ख़ुशी ही तो चाहता है, जो परमात्मा का स्वभाव है, अर्थात परमात्मा के गुणों का प्रकाश उसके माध्यम से फैले, उसका प्रेम और आनंद जगत में प्रकाशित व प्रसारित हो, इतना ही तो उसका अभिप्राय है. सनातन धर्म में चार पुरुषार्थ कहे गए हैं, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष. धर्म की स्थापना के लिए अर्थ हो और मोक्ष की कामना जगे यही उनका अभिप्राय है. धर्म का अर्थ है किसी को दुःख देने की तिलमात्र भी भावना भीतर न हो, बल्कि दूसरों का भला चाहें. मोक्ष का अर्थ है तन या मन की गुलामी न करें. आत्मा जब धर्म के पथ पर होगी यानि मन का भाव शुद्ध होगा तो स्वतन्त्रता का अनुभव करेगी, यही तो मोक्ष है और हर जीव की यही आंतरिक पुकार है. हम थोड़े में सन्तुष्ट रहना सीखें, इस विपदा से यही सीखना है और यह समय बीत जाने पर भी इसी का पालन करना है, तब कोई भारतवासी गरीब नहीं रहेगा.
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल गुरुवार (08-04-2020) को "मातृभू को शीश नवायें" ( चर्चा अंक-3665) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
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डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत बहुत आभार !
Deleteहनुमान जंयती के शुभ पर्व की अनेकानेक मंगलकामनाएं
ReplyDeleteआपको भी !
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