Friday, April 3, 2020

प्रेम की डोर ने बाँधा सबको



जीवन का सार है प्रेम, यह सारा ब्रह्मांड जिस एक तत्व के कारण अस्तित्त्व में आया है वह प्रेम ही है, धरती सूर्य की परिक्रमा करती है, चाँद धरती के चक्कर लगाता है, किस शक्ति के कारण, वैज्ञानिक उसे जो भी नाम दें वह आकर्षण शक्ति प्रेम का ही एक स्वरूप है. हमने प्रेम को एक कृत्य मान लिया था, हाथ मिलाना, गले लगाना, मस्तक या गाल चूमना और उपहार पकड़ाना ही प्रेम के पर्याय हो गए थे, अब इनमें से कुछ भी सम्भव नहीं है, किन्तु क्या दुःख की इस घड़ी में अब मानवीय संवेदना पहले से ज्यादा नहीं बढ़ गयी है. प्रेम कोई कृत्य नहीं है यह तो मानव के हृदय की उस संवेदना का नाम है जो वह अन्यों के प्रति अपने अंतर में महसूस करता है. दूसरे का सुख जब अपना सुख बन जाये उसका दुःख जब हमारी आँखों में अश्रु ले आए उसे ही प्रेम कहते हैं. इस आपदा काल में हम सभी भारतवासी एक ऐसी डोर से बंधे हुए हैं जो यद्यपि पहले भी हम सबको जोड़े हुए थी पर अपनी-अपनी सीमाओं में बंधे हम एक-दूसरे से दूर ही थे. इस आपदा का सामना हम सभी को मिलकर करना है, हमारे भाग्य एक हैं, हमारे कर्म भी यदि एक लक्ष्य को समर्पित हो जायँ तो इस आपदा से मुक्ति हमें शीघ्र ही मिल सकती है.

2 comments: