Wednesday, April 8, 2020

साध सके जो मन का मौन


आज जबकि हम घरों में बंद हैं, एक कार्य जो हमारे शास्त्र, आचार्य और संत कहते आये हैं, बखूबी कर सकते हैं. वह कार्य है मौन की साधना. दिन भर में चाहे एक घन्टा ही सही, यदि हम पुरे मौन का पालन करें, तो अपनी बहुत सी ऊर्जा को बचा सकते हैं. उस एक घण्टे में हमें न केवल किसी अन्य से वार्तालाप नहीं करना है वरन अपने आप से भी नहीं करना है. जो मन सदा ही कुछ न कुछ योजना बनाता है अथवा पुरानी बात को सामने लाकर उस पर टीका-टिप्पणी करता है, उसे पूरा मौन करना सिखाना है. जो बात वह कई बार सोच चुका है, उसे जुगाली करने की उसकी आदत को तोड़ना है. किसी अप्रिय बात को स्मरण करके जो वह झुंझला जाता है, उसे भी छोड़ना है. वास्तव में अतीत में गया मन एक छाया के सिवा कुछ भी नहीं है, छाया को यदि मिटाना है तो प्रकाश की तरफ आना होगा, वर्तमान के प्रकाश में सारी छायाएं मिट जाती हैं. जो कहीं है ही नहीं हम उससे परेशानी खड़ी कर लेते हैं. जो अभी घटा ही नहीं उसकी आशंका मन जगाये तो फिर उसे वर्तमान में ले आना है और उसका सबसे सरल उपाय है, अपनी श्वास पर ध्यान देना. श्वास सदा वर्तमान में रहती है, वह परमात्मा से जोड़े रखने वाली डोरी है. डोरी भी ऐसी कि यदि श्वास एकतार हो जाये तो परमात्मा की सुवास उसमें से बहकर आने लगती है. शांति का एक बादल हमारे चारों ओर छाने लगता है. हाथ में आये इस समय में से नियमित मौन का अभ्यास करके हम आने वाले दिनों के लिए स्वयं को तैयार रख सकते हैं.  

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